Hindi Essay on “Punjab Kesari-Lala Lajpatrai”, “पंजाब केसरी-लाला लाजपत राय” Complete Essay, Paragraph, Speech for Class 7, 8, 9, 10, 12 Students.
पंजाब केसरी–लाला लाजपत राय
Punjab Kesari-Lala Lajpatrai
लाला लाजपत राय का परिवार लुधियाना जिला में जगराओं नामक कस्बे में रहता था। इनका जन्म जिला मोगा के दडीके नामक गाँव में अपने ननिहाल में 28 जनवरी 1865 में हुआ। इनके पिता लाला राधा कृष्ण एक सरकारी स्कूल में अध्यापक थे। बालक लाजपतराय प्रारम्भ से ही एक प्रतिभा सम्पन्न छात्र थे। मैट्रिक की परीक्षा में उनको छात्रवृत्ति प्राप्त हुई। इसके बाद 1881 में आपने उच्च शिक्षा के लिए राजकीय महाविद्यालय में प्रवेश किया और शीघ्र ही आपने इन्टरमीडिएट की परीक्षा पास की। फिर आपने वकालत की पढ़ाई की और एक जूनियर वकील बन गए। उसके बाद 1883 में जब आपको मुखतारी में लाइसैंस मिल गया तो आपने जगराओं काश्नी तौर पर अपनी वकालत शुरू कर दी। थोड़े ही दिनों में आपकी वकालत चमक उठी। इससे लाला जी को खूब प्रसिद्धि मिली।
वकालत पास करने के बाद कुछ देर तक लाला जी जगराओं में ही रहे। फिर वे हिसार आकर काम करने लगे। वहां वे तीन साल तक म्यूनिसिपल कमेटी के सेक्रेटरी रहे। इसके बाद लाला जी लाहौर आ गए जहां इनकी मुलाकात आर्य समाज के प्रमुख नेता दयानन्द से हुई जिनके विचारों से वह बहुत प्रभावित हुए। लाला जी ने कहा था कि मैं आर्य समाज का ऋणि हूँ क्योंकि आज मैं जो भी बन पाया हैं वह आर्य समाज की ही देन है। उनका सबसे पहला महान कार्य था डी.ए.वी. कालेज को स्थापना। महात्मा हँसराज तथा गुरुदत्त भी इनके साथ थे। इसके अतिरिक्त राय शिवनाथ, दीवान नरेन्द्र माथ और प्रोफैसर रूथि राम साहनी भी इनके साथ थे जिन्होंने लाला जी को राजनीति और समाज सेवा के कार्यों में आगे लाने के लिए एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। रावलपिण्डी केस में लाला जी ने वहाँ के लोगों की पैरवी की। इसी प्रकार नहरी पानी के टैक्स पर किसानों में जब बेचैनी छाई तो उनका नेतृत्व भी लाला जी ने किया। हिसार और कांगड़ा के अकाल और भूकम्प में आपने दिन रात पीड़ितों की सेवा की।
1907 में कांग्रेस के दो दल बन गए-गर्म दल और नर्मदल। नर्मदल का यह विचार था अंग्रेजों से संवैधानिक ढंग से स्वतन्त्रता प्राप्त करें। महात्मा गांधी इस दल के अग्रणी नेता थे। गर्म दल का यह विचार था कि अंग्रेज़ उस धातु से नहीं बने हुए जो चुपचाप अपना राज्य हमें दे देंगे। इसलिए आज़ादी भीख माँगने से नहीं, बल्कि अंग्रेजों के विरूद्ध विद्रोह करके उन्हें यहां से भगाया जा सकता है। इस दल के मुख्य रूप से तीन नेता थे— बाल, पाल, लाल। बाल से बाल गंगाधर तिलक, पाल से विपिनचन्द्र पाल और लाल से लाला लाजपतराय। जब तक तिलक जीवित रहे तब तक नर्म दल उभर नहीं पाया परन्तु 1920 में तिलक जी की मृत्यु के पश्चात् नर्म दल सतारूढ़ हुआ। लाला जी तब तक गर्म दल के ही सदस्य बने रहे।
सन् 1906 में लाला जी इग्लैण्ड गए। यहाँ उन्होंने हिन्दू महासभा की स्थापना की और लोगों में देश प्रेम की भावना को जागृत किया। उन्होंने इग्लैण्ड के अतिरिक्त जापान और अमेरिका की यात्राएं की थीं। अमेरिका में रहते हुए उन्होंने ‘यंग इंडिया’ नामक समाचार पत्र निकाला और साथ ही इंडिया होम लीग’ की भी स्थापना की। यहाँ रहते हुए लाला जी ने कुछ पुस्तकें भी लिखीं। 1920 में लाला जी पुनः भारत लौट आए। विदेश यात्रा करने में लाला जी का एक ही लक्ष्य थाभारतवासियों में स्वतन्त्रता की ज्योति जलाना और इस कार्य में लाला जी को काफी सफलता मिली। लाला जी ने पंजाब के ग्रामीण क्षेत्रों का विस्तृत दौरा किया। जहां भी वे गए लोगों ने उनका भरपूर स्वागत किया। इनकी बढ़ती लोकप्रियता ब्रिटिश सरकार के लिए एक खतरा बनती जा रही थी। वह किसी-न-किसी बहाने इस महान् वीर नेता को समाप्त करना चाहती थी। 1907 में लाला जी को मांडले की जेल में भेजा गया परन्तु बाद में अस्वस्थता के कारण छोड़ दिया गया।
फिर लाला जी कलकत्ता में कांग्रेस अधिवेशन के सभापति बने और मोती लाल नेहरू के स्वराज्य दल के सदस्य बने। 1923 में आप हिन्दू महासभा के सदस्य बने।
अमेरिका से लोट कर आपने सेवा कार्य के लिए ‘सर्वेण्टस ऑफ पापल सोसाइटी की स्थापना की। इसके सदस्य देश सेवा के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में कार्य करते थे। लाला जी ने लाहौर में ‘द्वारका दास पस्तकालय’ की स्थापना की। क्षयराग के इलाज के लिए लाहौर में गुलाब देवी अस्पताल’ खोला जो आजकल जालन्धर में सेवा कर रहा है।
1928 में भारतवासियों की राजनीतिक मांगों के विषय में जांच करने के लिए ‘साइमन कमीशन’ आया। इसमें कोई भी भारतीय सदस्य नहीं लिया गया, इसलिए सब जगह काली झण्डियों से इसका विरोध किया गया। जगह-जगह इसके विरोध में जलसे और जलूस निकाले गए। यह दल 30 अक्तूबर 1928 को लाहौर पहुँच रहा था। स्टेशन पर इसका विरोध करने के लिए अपार जनसमुदाय अथाह सागर की तरह उमड़ पड़ा था जिसका नेत्तृत्व स्वयं पंजाब केसरी लाला लाजपतराय जी कर रहे थे। जलस’साईमन गो बैक’ (साईमन वापस जाओ) के नारे लगाता हुआ आगे बढ़ रहा था। चारों ओर पुलिस ही पुलिस दिखाई दे रही थी परन्तु स्वतन्त्रता सेनानी पुलिस की धमकियों से कब डरने वाले थे। अंग्रेजी सरकार निहत्थी जनता पर लाठियां बरसाने लगीं। इससे अनेक लोग घायल हो गए। एक असिस्टैंट पुलिस कप्तान जी.पी. सांडर्स ने लाला जी पर अन्धाधुन्ध लाठियां बरसानी शुरु कर दी, जो उनकी छाती पर लगीं। उसी दिन शाम को एक सभा को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा- “मेरी छाती पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश सरकार के कफ़न में कील सिद्ध होगी।” इस घटना के सत्रह दिन बाद अर्थात् 17 नवम्बर 1928 को प्रातः काल पंजाब का यह शेर सदा के लिए हमसे जुदा हो गया। भारत के ऐसे महान् सपूत को मेरा शत-शत नमन।