Hindi Essay on “Pidhi ka Anter” , ”पीढ़ी का अन्तर” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
पीढ़ी का अन्तर
Pidhi ka Anter
प्रस्तावना- परिवार एक ईकाई और समाज का अंग होता है। परिवार बुजुर्गों, महिलाओं, युवा-युवतियों, बच्चों से मिलकर बनता है। कुछ केवल पति-पत्नी के रूप में मिलकर परिवार का श्रीगणेश करते हैं। नौकरी पेशा पति या पत्नी ऐसा ही परिवार आजकल देखने बढ़ने लगती है। बच्चे बड़े होने, पढ़ने-लिखने लगते हैं। फिर नौकरी, रोजगार, व्यवसाय या जीविकोपार्जन का मसला सामने आता है और युवा सदस्य अपनी नई दुनिया बसाने के लिए आमदा हो जाते हैं। यह भ्रम प्राकृतिक है, चलता रहता है। मानव सभ्यता के विकास की कहानी इसी चलते क्रम के साथ जुड़ी हुई है।
पुरानी पीढ़ी के साथ नयी पीढ़ी का जुड़ना, फिर अपने स्वतंत्र अस्तित्व के साथ विकास की ओर बढ़ना, एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है। पुरानी पीढ़ी से नई पीढ़ी का बनना और फिर विचार भिन्नता पीढ़ी का अन्तर कहलाता है।
पीढ़ी का अन्तर सामाजिक आवश्यकता क्यों?- प्रकृति का नियम है कि जो पैदा होता है उसे नष्ट भी होना होता है। मनुष्य के साथ उम्र की सीमा प्रकृति ने तय की है। पचास वर्ष की उम्र मे परिवार में नई पीढ़ी तैयार हो जाती है। विज्ञान द्वारा यह सिद्व बात है कि हर नई पीढ़ी पुरानी से अधिक बुद्विमान और प्रगतिशील होती है। इसी बुद्विमता और प्रगतिशीलता के कारण मानव सभ्यता विकास की नई मंजिलें छू रहा है। पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी के बीच अन्तर-भिन्नता का होना अनिवार्य है। नई पीढ़ी नई प्रगति के साथ जुड़ी होती है। उसमें प्रगति के साथ दौड़ने की सामथ्र्य होती है, जबकि पुरानी पीढ़ी थक चुकी होती है, वह प्रगतिशीलता की सराहना तो कर सकती है, पर उसकी दौड़ में खुद को शामिल नहीं कर सकती। उसे मजबूरन अपनी पीढ़ी (उम्र) के लोगों के साथ ही सामंजस्य बैठाकर चलना होता है। यह सामंजस्य न बैठना ही उसके लिए दकियानूसी विचारधारा कहलाता है। नई पीढ़ी का युवा इन्टरनेट की बात करता है तो पुरानी पीढ़ी का व्यक्ति महाभारत के संजय की बात करके अपने ज्ञान का भण्डार खोलता है- वह बताता है कि इन्टरनेट, कम्प्यूटर, संचार के साधन कुछ नये नहीं, महाभारत काल में अंधे धृतराष्ट्र को उनका सारथी संजय, युद्वभूमि से मीलों दूर रहकर चल रहे युद्व के एक-एक हाथ का हाल अपनी दिव्यदृष्टि से देखकर बता रहा था। नयी पीढ़ी उस बात को हँसकर टाल जाती हैं क्योंकि उसकी वैज्ञानिक सोच में यह बात फिट नहीं बैंठती-युवा और पुरानी पीढ़ी में विचार कर तालमेल न बैठना ही पीढ़ी का अन्तर या जेनरेशन गैप कहलाता है।
पीढ़ी का अन्तर कहां तक स्वस्थकर है?- पीढ़ी का अन्तर पूरी तरह स्वस्थकर है। यह प्राकृतिक नियम है, प्रगतिशीलता के बढ़ते कदम की निशानी है। यह स्वाभाविक प्रक्रिया है जिससे ही किसी को गुजरना है। पचास वर्ष की आयु के व्यक्ति ने आज से पच्चीस-तीस साल पहले जब अपने पिता से यह सुना था कि एक रूपया किलो घी बिका करता था, बोलती फिल्में आयी थीं तो किस तरह संस्कार से भरपूर हुआ करती थीं, तब वह एक रूपये में एक किलो घी की बात सुनना अविश्वास भरी कहा करता था तथा राजा हरिश्चन्द्र नामक फिल्म की जगह वह राजकपूर निर्मित फिल्म ‘बाॅबी‘ को श्रेष्ठ बताया करता था। आज उसका पुत्र यदि दिलीप कुमार की अभिनीत फिल्म देवदास की स्लो और बोटिंग और शाहरूख-ऐश्वर्या और माधुरी अभिनीत फिल्म को फास्ट,कलात्मक बताता है, तो उस पर नाक-भौं सिकोड़ने की आवश्यकता थी। सच्चाई को स्वीकार करना ही समझदारी है। इस समझदारी को मानकर जो चलता है वह सुख और शान्ति के साथ नई पीढ़ी के साथ सामंजस्य बैठा पाता है।
अस्वस्थकर वातावरण के उपाय- प्रायः देखने में आता है कि पुरानी पीढ़ी के लोग नौकरी या कारोबार से रिटायर होने के बाद धर्म-कर्म की ओर उन्मुख हो जाते हैं। अखबारों से चिपके रहते हैं या अपनी उम्र के लोगों के बीच बैठाकर घण्टों तक समय बर्बाद करते हैं। रिश्तेदारियों में जाकर कई-कई दिन गुजर जाते हैं परिणाम यह होता है कि अपने ही परिवार में वे उपेक्षा के शिकार हो चलते हैं-फिर शिकायत करते हैं कि बेटा-बहू उनकी सुध नहीं लेते। वास्तविकता यह है कि वे स्वयं ही अपने लिए अन्तर का वातावरण बनाने के जिम्मेदार होते हैं। पीढ़ी के अन्तर मे जहां विचारों का अन्तर आ जाता है वहीं व्यवहार का भी फर्क महसूस किया जाने लगता है। बुजुर्गों को चाहिये कि वे नौजवानों की उमगं और उनके वक्त के साथ दौड़ने की आवश्यकता को समझें। अनावश्यक टोका-टाक करके स्वयं ही उपेक्षित न बनें। परिवार के सदस्यों के साथ सामंजस्य बैठाकर चलें। बच्चों के खेल में खुद को शामिल करें। बागवानी, या ऐसे ही कोई उपयोगी कार्य करने में समय लगायें। वे परिवार में अपनी उपयोगिता साबित करते रहे। परिवारी सदस्यों को ऐसा न आभास होने दें कि वे परिवार के लिए अनुपयोगी हो गये हैं।
उपंसहार- पीढ़ी का अन्तर एक स्वाभाविक, प्राकृतिक एवं वैज्ञानिक नियम पर आधारित अंतर है। इस अंतर को मन-मस्तिष्क से स्वीकार कर युवाओं को बुजुर्गों के साथ और बुजुर्गों को युवाओं और बच्चों के साथ सामंजस्य बैठाकर चलना चाहिये। समस्या का यही निदान है। इस निदान से मुंह न मोड़ें।