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Hindi Essay on “Nari Shiksha ka Mahatva ”, “स्त्री शिक्षा का महत्त्व” Complete Hindi Nibandh for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

स्त्री शिक्षा का महत्त्व

Nari Shiksha ka Mahatva 

समाज में स्त्री का महत्त्व : भारतीय संस्कृति का गौरव केवल भारत में ही है और संस्कृति से सम्बन्ध रखने वाले समाज में भारतीय ललनाओं का पर्याप्त स्थान है। पुरातन युग से ही इस प्रकार की महत्ता चली आ रही है। भारतीय ललनाएँ अन्य देशों के समान विलासिता की सामग्री बन करके नहीं; अपितु भारतीय संस्कृति की डोर सम्भालने वालों की सहयोगिनी हैं। इसी हेतु बहुत-सी स्त्रियों को देवी और जगतमाता कहा गया है। भारतीय ललनाएँ सदा विश्वास, श्रद्धा और त्याग की मूर्ति रही हैं। विश्व सांस्कृतिक संघर्ष में भारत केवल इस नारीत्व के महान् आदर्श को लेकर ही सर्वदा मान्य रहा है। नारी को महत्ता की देन भारतवर्ष की मौलिकता हैं।

शिक्षा की आवश्यकता : इन्हीं सब कारणों से पुरुष के साथ स्त्री जाति को भी शिक्षित होना अनिवार्य है। नारी माता के रूप में। पूजनीया, पत्नी के रूप में अद्भगिनी तथा वृद्धावस्था में धात्री मानी गई है। शिक्षा का माध्यम मस्तिष्क को परिपुष्ट करना है और अशिक्षित पत्नी होने के कारण अधिकांश परिवार आजकल के राष्ट्रीय युग में नरक के समान बन रहे हैं। आज इस युग में सच्चा सहयोग न मिल ने के कारण ही भारतीय संस्कृति दिन-प्रतिदिन अवनति की ओर जा रही है। इसी कारण बड़े-बड़े विद्वानों का कथन है कि जीवन की लम्बी यात्रा में अथवा गृहस्थी के कार्य को सुचारु रूप में चलाने के लिये शिक्षा को अत्यन्त आवश्यकता है।

विश्व की उन्नति शिक्षित नारी का स्थान : विश्व के दर्शन करने जाइये, तो आपको पता चलेगा विश्व की उन्नति शिक्षा के बल पर ही चरम सीमा तक पहुंच सकी है। यदि स्त्री जाति अशिक्षित हो, तो विश्व संघर्ष को विजय करने के लिये चरित्र शस्त्र की ही आवश्यकत। पड़ती है। अपने जीवन को विश्व की प्रगति के अनुकूल बनाने में नारी सर्वदा असमर्थ रही है। पुरातन कूप मंडूकता के कारण उनका अधिक जीवन भाँति-भाँति के संघर्षों में व्यतीत हो जाता है। शिक्षा के कारण उनका पारिवारिक जीवन स्वर्गमय हो सकता है और उसके उपरांत देश, समाज तथा राष्ट्र की उन्नति में वे पुरुषों के साथ कन्धे से कन्धा भिड़ाकर चलने में समर्थ हो सकती हैं।

उपयुक्त शिक्षा पद्धति : इन सबके उपरांत यह प्रश्न उठता है। कि भारत जैसे धार्मिक देश में कौन-सी शिक्षा पद्धति भारतीय ललनाओं के लिये की जाए, जिससे वे गृहस्थ को सुचारु रूप से और अपने जीवन-मार्ग को ठीक प्रकार से चला सकें। आजकल की ललनाएँ पाश्चात्य शिक्षा का अन्धानुकरण करके अपने शरीर को लिपस्टिक, पाउडर से लपेट कर भारतीय संस्कृति को लात मारकर और गृहस्थी जीवन के गौरव को संज्ञाहीम बना रही हैं । आज देश स्वतन्त्र है और वे स्वतन्त्र भारतीय संस्कृति व पूजनीय आत्माएँ हैं। अतः उन्हें चाहिये कि वे संस्कृति की योग्यतानुसार अपने कार्यक्रम को निर्धारित करें और ऐसी शिक्षा जैसे सिलाई-कढाई, पिरोना, बाल-बच्चों का पालन-पोषणऔर घर की देखभाल इत्यादि की शिक्षा ग्रहण करें। हमारे समाज में शिक्षित माता गुरु से भी बढ़कर मानी जाती है; क्योंकि वह अपने पुत्र को महान् से महान् बना सकती है। आज जितने भी हमारे महापुरुष गुजरे हैं, उनकी माताएँ शिक्षित थीं । अत: आजकल की ललनाओं को आडम्बर से रहित और जीवन के सन्निकट पहुँचने के लिये जिस शिक्षा की आवश्यकता पड़ती है, वह लेनी चाहिए। आधुनिक कुशिक्षा के कारण बहुत-सी स्त्रियाँ जीवन के क्षणिक आनन्द में अपना सर्वस्व खो बैठती हैं और अन्त में उन्हें अपने जीवन से निराश होना पड़ता है।

बहुत-सी स्त्रियाँ शिक्षित होते हुए भी केवल धन के लिये ही कलह उत्पन्न कर देती हैं। ऐसी प्रकृति वाली स्त्रियाँ शांत. जीवन नहीं चाहतीं, वे तो भरपूर घर को श्मशान बना देना चाहती हैं।

स्त्री समाज को पुरुष समाज की भाँति शिक्षित नहीं होना चाहिए; क्योंकि दोनों के कार्य क्षेत्र भिन्न हैं। स्त्री यदि गृह-स्वामिनी है, तो पुरुष बाह्य क्षेत्र का अधिष्ठाता है। गृह को चलाने के लिये जितने भी कार्यों की आवश्यकता पड़ती है, स्त्रियों को उनका ज्ञान अत्यन्त आवश्यक है और पुरुष का जीविकोपार्जन करना, सन्तान शिक्षा, समाज तथा राष्ट्र की सेवा करना है।

स्त्री शिक्षा के लिये माध्यम मातृभाषा अधिक वांच्छित है। स्त्रियों को शिक्षा के साथ-साथ शारीरिक शिक्षा देना आवश्यक है; क्योंकि आजकल की स्त्रियाँ बहुधा फैशन की पुतली बन जाया करती हैं, जो आत्मिक उत्थान के लिये एक कलंक है। इसी कारण वे शरीर से निर्बल होती हैं।

उपसंहार : भारत के अन्दर स्त्री शिक्षा की कमी है। यहाँ अन्य देशों के अतिरिक्त स्त्रियों में शिक्षा की बहुत न्यूनता है। जिस देश का पुरुष समाज ही अल्पशिक्षित हो, उस देश की स्त्रियाँ अशिक्षित क्यों न होंगी ? इतिहास साक्षी है कि देश की स्वतन्त्रता में स्त्रियों का पूर्ण सहयोग रहा है। इन्हीं सब बुराइयों को दूर करने के लिये स्त्री शिक्षा अत्यन्त आवश्यक वैसे जीवन इतना आगे’ आ चुका है कि यह कहना अनुचित है। कि स्त्रियाँ केवल घरेलू शिक्षा ही प्राप्त करें। उनके लिये गृह विज्ञान अनिवार्य होना चाहिए ; पर अन्य अंगों की शिक्षा भी उतनी ही आवश्यक है जैसे पुरुषों की।

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