Hindi Essay on “Meri Priya Pustak” , ” मेरी प्रिय पुस्तक” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
मेरी प्रिय पुस्तक
Best 7 Essay on “Meri Priya Pustak”
निबंध नंबर :- 01
पुस्तक का मनुष्य के जीवन में विशेष महत्त्व होता है | ये उसकी सच्ची साथी व् मित्र होती है | उसके अच्छे व बुरे समय में उसका साथ देती है | उसकी प्रत्येक समस्या का निवारण इनकी सहायता से किया जा सकता है | परन्तु हमे अच्छी पुस्तको का ही अध्ययन करना चाहिए | मन को स्वस्थ व प्रसन्न रखने के लिए अच्छी पुस्तको का अध्ययन आवश्यक है | अच्छी पुस्तको के ज्ञान से मानव की मानसिक व बौद्धिक शक्तियों का विकास होता है | मैंने भी अपने ज्ञान में वृद्धि करने व अपनी ज्ञान – पिपासा को शांत करने के लिए अनेको पुस्तको का अध्ययन किया है परन्तु उन सबमे से मुझे तुलसीकृत रामचरितमानस अर्थात रामायण ने मुझे अधिक प्रभावित किया है | यह ही मेरी प्रिय पुस्तक है |
मेरी प्रिय पुस्तक रामचरितमानस में वे गुण विद्दमान है जो एक श्रेष्ठ पुस्तक में होने चाहिएँ | इस महाकाव्य के नायक श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम है | ये जीवन के सभी क्षेत्रो में त्याग, दया, परोपकार, शौर्य , धैर्य , सहानुभूति , जनरक्षक , कृपालु आदि अनेक गुणों के परिचायक है | इसके रचना का शुभारम्भ संवत 1631 की मार्ग शीर्ष की शुक्ला पंचमी को रविवार के दिन मानी जाती है तथा इसका रचना स्थान अयोध्या व् काशी है | इसकी भाषा अवधी है | यह एक महाकाव्य है जिसमे दोहे और चौपाई छंदों का प्रयोग किया गया है |इसमें श्रीराम का वर्णन एक आज्ञाकारी पुत्र , आदर्श भ्राता , आदर्श पीटीआई, आदर्श मित्र व् आदर्श राजा के रूप में किया गया है | यह पुस्तक अत्यन्त लोकप्रिय है |
यह एक अमरकृति है | यह पुस्तक साहित्य , दर्शन , राजनीति , धर्म और समाजशास्त्र सभी की दृष्टी से सर्वोत्तम है | इसमें मानव जीवन की सभी समस्याओ का समाधान किया गया है | इस पुस्तक में निहित इन सभी गुणों ने मुझे इस पुस्तक का नियोमीत पाठक बना दिया है | आज मै ही नही बल्कि सारा संसार इसका प्रशंसक (उपासक) है |
रामचरितमानस को सभी वर्ग के लोगो ने सम्मान दिया है | इसकी इन्ही आदर्श विशेषताओ के कारण मै इस ग्रंथ को अत्यधिक प्रेम करता हूँ |
निबंध नंबर:- 02
मेरी प्रिय पुस्तक
Meri Priya Pustak
पुस्तकों की किसी भी दुकान में चले जाइए, खानेदार अलमारियों में हजारों पुस्तकें रखी दिखाई देंगी। आप उनमें से अपनी मनपसन्द पुस्तक का चुनाव कर सकते हैं। चाहे आपकी रुचि किसी साहित्यिक कृति में हो, इतिहास के किसी ग्रंथ में हो या किसी अन्य विषय में। उपन्यास, नाटक, कविता-विषयक किसी कृति में भी आपकी रुचि हो सकती है। या हो सकता हैं महंगी सचित्र अलबमनुमा पुस्तकों को आप पसंद करते हों। निष्कर्षतः जैसी भी पुस्तक में आपकी रुचि हो, आप पुस्तकों की दुकान से खरीद सकते हैं।
लोग मुझे किताबी-कीड़ा कहकर पुकारते हैं लेकिन वे गलती पर हैं। किताबों में मेरी रुचि अवश्य है, लेकिन मैं किताबी कीड़ा नहीं हूँ। मैं वही पुस्तकें पढ़ता हूँ जिनमें मेरी असीम रुचि होती है। मुझे शौर्यपूर्ण गाथाएं अत्यधिक पसंद आती हैं। अतः रामायण में मेरी अत्यधिक रुचि है। भारत के भूतपूर्व गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने अंग्रेजी में भी रामायण की रचना की है जो एक अत्यन्त उत्तम पुस्तक है। लेकिन मेरी रुचि भारत के महान् सन्त कवि गोस्वामी तुलसीदास की अमर रचना ‘रामचरितमानस’ में है। उसकी हिन्दी चौपाइयां और दोहे-सोरठे निस्संदेह अत्यन्त मधुर और रोचक हैं। साथ ही, मैंने रामायण का अंग्रेजी रूपान्तर भी, जैसा कि मैं पहले कह चुका हूँ, पढ़ा है। अतः रामायण की कथावस्तु मैं भली-भांति जानता हूँ।
चूंकि मुझे गाने का बहुत शौक है, अतः मैं ‘रामचरितमानस’ की चौपाइयों का सस्वर पाठ करता हूँ। मुझे राम की कहानी इसलिये पसंद है, क्योंकि वह एक आदर्श पिता के आदर्श पुत्र थे। वह एक आदर्श देश के आदर्श शासक थे। वे एक आदर्श पत्नी के आदर्श पति थे। वे लक्ष्मण जैसे एक आदर्श अनुज के आदर्श अग्रज थे। एक आदर्श शासक के रूप में वह प्रजा के पालनकर्ता थे। वे विपत्ति आने पर सर्व-सुलभ थे।
भगवान राम की शौर्यपूर्ण गाथा ने सचमुच मेरा हृदय-परिवर्तन कर दिया है। मेरी कामना है कि समस्त देशवासियों को उनके पथ का अनुगमन कई दृष्टियों से महान् थे। हम यह सोचकर गर्व का अनुभव कर सकते हैं कि हमारे देश में ऐसा महान् शासक हुआ। शायद इसीलिये देश की जनता ने भगवान राम की पूजा शुरू की होगी और आज भी इस बात की प्रवृत्ति जारी है।
भगवान राम ने अत्याचारी और अन्यायी शक्तियों से युद्ध किया था। उन्होंने अपने समय के साधु और सज्जन पुरुषों की सेवा और सहायता की थी। शासक का यह एक महान् गुण है। वह एक योद्धा थे। अपने कर्तव्य का ज्ञान उन्हें था। अपने स्वकीय जीवनादर्शों का पालन उन्होंने स्वयं किया और विनयशीलता को अपनाया। उनके जीवन से हमें अनेकानेक शिक्षाएं मिलती हैं।
अगर हम एक राष्ट्र के चरित्र का निर्माण करना चाहते हैं तो हमें ऐसे ही महान पुरुषों के जीवन-सिद्धान्तों का अनुगमन करना होगा।
रामायण में मेरी रुचि का एक कारण उसके सर्वोकृष्ट चित्र भी हैं। वे अत्यन्त चित्ताकर्षक और विस्मयकारी हैं। उनमें एक चित्र लंका के राक्षस राजा रावण से भगवान राम के युद्ध का भी है। वह एक अदभुत युद्ध का अद्भुत और सजीव चित्र है।
मैं गीत और नाटकों की पुस्तकें भी पसन्द करता हूँ और गायन में भी मेरी रुचि है। विषादपूर्ण क्षणों में मुझे उनमें खुशी का आभास मिलता है। मैं सुमधुर गाने भी गाता हूँ। रामायण अथवा रामचरितमानस के अतिरिक्त भी अनेकानेक पुस्तकें ऐतिहासिक महत्त्व की हैं। उनसे बहुत सारी घटनाओं पर प्रकाश पड़ता है। वे हमें हमारी प्राचीन संस्कृति से परिचित कराती हैं। मुझे संस्कृति विषयक पुस्तकें भी अत्यधिक पसंद हैं। रामायण प्रत्येक दृष्टि से मुझे सन्तोष प्रदान करती है। भारतीय इतिहास और संस्कृति पर वह सर्वोत्तम पुस्तकों में से एक है। उसकी रचना कविता (छंद) में हई है। जब भी मैं एकान्त वातावरण पाता हूँ तो सस्वर गीत गा सकता हूँ | रामायण से दोनों उद्देश्यों की पूर्ति होती है, अतः उस पुस्तक को मैं बेहद पसंद करता हूँ। रामायण मेरी प्रिय पुस्तक है।
अरुचिपूर्वक बहुत सारी पुस्तकें पढ़ने की अपेक्षा यदि रुचिपूर्वक कोई एक पुस्तक पढ़ी जाए तो यह अच्छी बात है। अतः मैं यह बताने जा रहा हूँ कि किस प्रकार अपनी प्रिय पुस्तक का चुनाव किया जाए। पुस्तक ऐसी चुननी चाहिये जो आपको व्यस्त रख सके व आराम के क्षणों में उपयोगी साबित हो। अपनी प्रिय पुस्तक का चुनाव करना निस्संदेह कठिन कार्य है। लेकिन पहले ही मैंने अपनी प्रिय पुस्तक का चुनाव किया ही है जिसका वर्णन मैं पहले कर चुका हूँ।
निबंध नंबर :- 03
मेरी प्रिय पुस्तक
Meri Priya Pustak
किताबें व्यक्ति के जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वे व्यक्ति की सच्ची मित्र हैं। यह व्यक्ति को ज्ञान तथा आनंद दोनों ही देती हैं। ये व्यक्ति को युवाकाल में रास्ता दिखाती हैं और बुढ़ापे में मनोरंजन करती हैं। किताबें विभिन्न विषयों पर लिखी होती हैं। मैंने अनेक किताबें पढ़ी हैं। मेरी सबसे प्रिय पुस्तक गीता है।
गीता हिंदुओं की धार्मिक पुस्तक है। यह महाभारत का एक हिस्सा है। यह संवाद् के रूप में लिखी गई है। ये संवाद् कृष्ण तथा अर्जुन के बीच में किए गए हैं। कौरवों तथा पांडवों की सेनाएँ युद्धभूमि में एक दूसरे के समक्ष खड़ी हैं। जब अर्जुन अपने ही भाई-बंधु तथा रिश्तेदारों को अपने सामने युद्ध में देखता है तो वह भावुक हो जाता है। वह उन पर चलाने के लिए मना कर देता है। वह कृष्ण से मार्गदर्शन के लिए अनुरोध करता है। इस सा जीवनदर्शन का ज्ञान मिलता है।
गीता तीन भागों में विभाजित है। हर भाग में छ: अध्याय हैं। इसमें दिए गए विचारों में लोगों को अत्यंत प्रभावित किया है। गीता विश्वास का पाठ पढ़ाती है। यह हमें फल की इच्छा किए बिना कर्म करने की शिक्षा देती है। कृष्ण ने अर्जुन को एक सिपाही की भांति यद्ध लड़ने को कहा तथा अपने भाई-बंधुओं की चिंता त्यागने को कहा।
इस पवित्र पुस्तक की भाषा बहुत ही सुंदर है। यह संस्कृत में लिखे गए सबसे पराने काव्यों में से एक है। इसे अंग्रेजी, फ्रांसीसी, जर्मन जैसी कई भाषाओं में अनुवादित किया गया है। यह पिछले 1600 वर्षों से लोगों को प्रभावित कर रही है। इसने कई व्यक्तियों के जीवन को बदल दिया है। महात्मा गांधी भी इसके उपदेशों से प्रभावित थे। मैं इस पुस्तक को बहुत सम्मान से रखता हूँ।
निबंध नंबर :- 04
मेरी प्रिय पुस्तक-कुरुक्षेत्र
Meri Priya Pustak – Kurukshetra
मेरी प्रिय पुस्तक–कुरुक्षेत्र-मेरी सबसे प्रिय पुस्तक है–रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की ‘कुरुक्षेत्र’। यह युद्ध और शांति की समस्या पर आधारित है। इसमें महाभारत के उस प्रसंग का वर्णन है जब युद्ध के समाप्त होने पर भीष्म शर-शय्या पर लेटे हुए हैं। उधर पांडव अपनी जीत पर प्रसन्न हैं। परंतु धर्मराज युधिष्ठिर इतने लोगों की मृत्यु और बर्बादी पर बहुत दुखी हैं। वे पश्चात्ताप करते हुए भीष्म के पास जाते हैं। वे रोते हुए कहते हैं कि उन्होंने यद्ध करके घोर पाप किया है। राज्य पाने के लिए की गई हिंसा भी पाप है, अन्याय है। इससे अच्छा तो यही होता कि वे भीख माँगकर जी लेते।
युद्ध का दोषी कौन–भीष्म युधिष्ठिर को कहते हैं कि महाभारत के युद्ध में युधिष्ठिर का कोई दोष नहीं है। दोष तो पापी दुर्योधन का है, शकुनि का है, चारों ओर फैली द्वेष-भावना का है, अन्याय का है, जिसके कारण युद्ध हुआ-
पापी कौन? मनुज से उसका न्याय चुराने वाला।
या कि न्याय खोजते, विघ्न का शीश उड़ाने वाला।।
दिनकर जी स्पष्ट कहते हैं कि अन्याय का विरोध करने वाला पापी नहीं है, बल्कि अन्याय करने वाला पापी है।
न्याय और शांति का संबंध-इस काव्य में दिनकर ने यह भी प्रश्न उठाया है कि किसी राज्य में शांति कैसे संभव है? वे कहते हैं-
शांति नहीं तब तक, जब तक, सुख–भाग न सबका सम हो।
नहीं किसी को बहुत अधिक हो, नहीं किसी को कम हो।
संघर्ष की प्रेरणा–इस संदेश के बाद भीष्म युधिष्ठिर को थपथपी देते हुए कहते हैं कि उसने अन्याय का विरोध करके अच्छा ही किया। भीष्म कहते हैं, अन्याय का विरोध करना तो पुण्य है, पाप नहीं।
छीनता हो स्वत्व कोई, और तू
त्याग–तप से काम ले, यह पाप है।
पुण्य है विच्छिन्न कर देना उसे
बढ़ रहा तेरी तरफ़ जो हाथ है।
ओजस्वी भाषा–दिनकर का यह ग्रंथ प्रेरणा, ओज, वीरता, साहस और हिम्मत का भंडार है। इसकी भाषा आग उगलती है। इस काव्य को पढ़कर मुर्दे में भी जान आ सकती है। इसके वीरता-भरे शब्द मुझे बार-बार इसे पढ़ने की प्रेरणा देते हैं।
निबंध नंबर :- 05
मेरी प्रिय पुस्तक
Meri Priya Pustak
हिंदी साहित्य में एक से बढ़कर एक विशाल ग्रंथ, काव्य, उपन्यास आदि उपलब्ध हैं पर मुझे इन सब में सर्वाधिक प्रिय है लोक नायक महाकवि तुलसीदास की अमर कृति-‘रामचरितमानस’ । रामचरितमानस की विषयवस्तु मर्यादा पुरुषोत्तुम श्रीराम के जीवन से संबंधित है। तुलसी के राम मर्यादा पुरुषोत्तुम, धीर, वीर लोकनायक, मातृ-पितृ भक्त तथा आदर्श चरित्रवान हैं। वे परब्रह्म होते हुए भी एक मानव के रूप में सभी कर्तव्यों का वहन करते हैं। वे एक आज्ञाकारी पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श पति, आदर्श मित्र तथा आदर्श राजा के रूप में दिखाई देते हैं। तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की सामग्री नाना पुराणों, वेद शास्त्रों, वाल्मीकि रामायण आदि कई ग्रंथों से ग्रहण की है। राम के अतिरिक्त अन्य पात्रों का चरित्र भी अनुकरणीय है। रामचरितमानस के पात्रों के माध्यम से तुलसीदास ने समाज के सामने आदर्श प्रस्तुत किया है। इस ग्रंथ में ज्ञान-भक्ति और कर्म का अद्भुत समन्वय है। इस ग्रंथ में लोकनीति, लोक संस्कृति और लोकादर्श तीनों का संगम है। इसीलिए यह एक ग्रंथ ही नहीं, नीति ग्रंथ भी बन गया है। रामचरितमानस ही एकमात्र ऐसा महाकाव्य है जिसमें जीवन के प्रत्येक संकट का समाधान मिलता है और इसके पात्र भारतीय जीवन के आदर्श हैं।
निबंध नंबर :- 06
मेरी प्रिय पुस्तक
Meri Priya Pustak
महात्मा गंधी में राम-राज्य स्थापित करने की उच्च भावना जगाने वाली प्रेरणा शक्ति ‘रामचरितमानस’ मेरी सर्वप्रिय पुस्तक है। यह पुस्तक महाकवि तुलसीदास का अमर स्मारक है। तुलसीदास ही क्यों, वास्तव में इससे हिन्दी साहित्य समृद्ध होकर समस्त जगत् को आलोक दे रहा है। आम जनता इस ग्रन्थ को रामायण कहती है। जैसे ईसाई धर्म में ‘बाईबल’, मुस्लमानों के लिए ‘कुरान’, सिक्खों के लिए ‘गुरु ग्रन्थ साहिब’ पूज्य हैं उसी प्रकार यह हिन्दुओं का पूज्य ग्रन्थ है। भक्त इसका श्रद्धा से परायण करते है। यह उच्च कोटि की काव्य कृति है। इस ग्रन्थ में भगवान श्री राम की जीवन गाथा का वर्णन है। यह साहित्य के सर्वोत्कृष्ट महाकाव्यों में से एक है।
रामचरितमानस की भाषा सरल और हृदय को छूने वाली है। रामचरितमानस मानव जीवन के लिए अमूल्य निधि है। पत्नी का पति के प्रति, भाई का भाई के प्रति, बहु का सास ससुर के प्रति, पुत्र का माता-पिता के प्रति क्या कर्तव्य होना चाहिए, यही इस कृति का मूल सन्देश है । इसके अतिरिक्त साहित्यिक दृष्टि से यह कृति हिन्दी साहित्य उपवन का वह कुसुमित फूल है, जिसे संघते ही तन मन में एक अनोखी सुगन्ध का संचार हो जाता है। यह ग्रन्थ दोहा चौपाई में लिखा हुआ महाकाव्य है। इस ग्रन्थ में सात काण्ड है-बाल काण्ड, अयोध्या काण्ड, अरण्य काण्ड, किष्किंधा काण्ड, सुन्दर काण्ड, लंका काण्ड तथा उत्तर काण्ड। हर काण्ड भाषा भाव आदि की दृष्टि से पुष्ट और उत्कृष्ट है तथा हर काण्ड के आरम्भ में संस्कृत के श्लोक हैं। तत्पश्चात् कथा फलागम की ओर बढ़ती है।
यह ग्रंथ अवधि भाषा में और दोहा चौपाई में लिखा हुआ है। इसकी भाषा में प्राजलता के साथ-साथ प्रवाह तथा सजीवता दोनों है। इसमें अलंकार स्वाभाविक आने के कारण सौन्दर्य प्रदत है। उनके कारण कथा का प्रवाह रुकता नहीं, स्वच्छन्द रूप से बहता चला जाता है। इसके मुख्य छन्द है दोहा और चौपाई। शैली वर्णनात्मक होकर भी बीच में मार्मिक व्यंजना शक्ति लिए हए है। इसमें प्राय समस्त रसों का यथास्थान समावेश है। वीररस लंका काण्ड में उभर कर आया है। चरित्रों का चित्रण जितना प्रभावशाली तथा सफल इसमें हआ है, इतना हिन्दी के अन्य किसी महाकाव्य में नहीं हुआ है। राम, सीता, लक्ष्मण, रावण, दशरथ, भरत आदि के चरित्र विशेषकर उल्लेखनीय तथा प्रशंसनीय है। इस पुस्तक के पढ़ने से प्रतिदिन पारिवारिक, सामाजिक आदि समस्याओं को दूर करने की प्रेरणा मिलती है। परलोक के साथ इस लोक में कल्याण का मार्ग दिखाई देता है और मन में शान्ति का सागर उमड पडता है।
रामचरितमानस हमारे सामने समन्वय का दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। इसमें भक्ति और ज्ञान का शैवी और वैष्णवों का तथा निराकार और साकार का समन्वय मिलता है। गोस्वामी तुलसीदास ज्ञान और भक्ति में कोई भेद नहीं मानते।
रामचरितमानस में नीति धर्म का उपदेश जिस रूप में दिया गया है वह वास्तव में प्रशंसनीय है। राम भक्ति का इतना विराट तथा प्रभावी निरुपण और राम कथा का इतना सरस तथा धार्मिक कीर्तन किसी और जगह मिलना अति दुर्लभ है। इस में जीवन के मार्मिक चित्र का विशाल चित्रण किया गया है। जीवन के प्रत्येक रस का संचार किया है। लोक मंगल की उच्च भावना का समावेश भी किया है। यह वह पतित पावनी गंगा है जिसमें डुबकी लगाते ही सारा शरीर, शुद्धमय हो उठता है तथा एक मधुर रस का संचार होता है।
उपर्युक्त विवेचन के अनुसार अन्त में हम कह सकते हैं कि ‘रामचरितमानस’ साहित्यिक तथा धार्मिक दृष्टि में उच्च कोटि की रचना है जो अपनी उच्चता तथा सभ्यता की कहानी स्वयं कहती है। इसलिए यही मेरी प्रिय पुस्तक है।
मेरी प्रिय पुस्तक
Meri Priya Pustak
निबंध नंबर :- 07
पुस्तकें किसी भी व्यक्ति के लिए किसी अच्छे मित्र से कम नहीं होती हैं। ये हमारा मनोरंजन ही नहीं करतीं बल्कि हमें विभिन्न प्रकार की शिक्षा भी देती हैं। यद्यपि मैंने अनेक पुस्तकों का अध्ययन किया है किंतु जिस पुस्तक ने मेरे मन को अत्यधिक प्रभावित किया है, वह पुस्तक है ‘रामचरित मानस’। इस पुस्तक को महाकवि गोस्वामी तुलसीदास ने रचा है। इसमें तुलसीदास जी ने दशरथ पुत्र श्रीराम के आदर्श जीवन को प्रस्तुत किया है तथा उनके जीवन का हर दृष्टिकोण से चित्रण किया है। यह हिंदी भाषा का ग्रंथ है। यद्यपि रामचरितमानस केवल पाँच सौ वर्ष पुराना ग्रंथ है। किंतु इस ग्रंथ ने भारतीय समाज पर अमिट छाप छोड़ी है।
मैंने यह ग्रंथ कई बार पढ़ा है तथा अब भी इसका अध्ययन करता हूँ। यह हमें जीवन जीने की कला सिखाता है। यह हमें बताता है कि विकट परिस्थितियों में भी निराश नहीं होना चाहिए। श्रीराम ने चौदह वर्ष का वनवास केवल अपने पिता के वचन को पूरा करने के लिए काटा। भाइयों से उन्हें अथाह प्रेम था। रावण सीता माता को हरकर लंका ले गया। उस समय भी श्रीराम निराश न हुए तथा रावण की बराई के विरुद्ध संघर्ष करने का मन बनाया तथा वानरों की सेना को साथ लेकर लंकापति रावण को युद्ध में हराया एवं सीता को पनः पा लिया। यह पुस्तक हमें जीवन में विभिन्न प्रकार के संबंधों को निभाने की कला सिखाती है।
राम-भरत में भाई-भाई का रिश्ता, राम-सुग्रीव में मित्रता, राम-सीता में पति-पत्नी का रिश्ता आदर्श संबंधों को दर्शाते हैं। इस प्रकार जीवन के हर मोड़ पर यह पुस्तक हमारा मार्गदर्शन करती है। यह पुस्तक हमें बताती है कि मनुष्य को कर्म तथा संघर्ष का साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए। यदि कोई असत्य के साथ चला तो उसकी बर्बादी निश्चित है। ‘रामचरितमानस’ ने मेरे जीवन पर भी महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाले हैं। मैं इस पुस्तक को पढ़कर अपने जीवन के प्रति गंभीर हो गया हूँ। मैंने गुरुजनों का आदर करना, माता-पिता की आज्ञा मानना, छोटों से स्नेह, कर्म तथा संघर्ष का मंत्र, सत्य के मार्ग पर चलना तथा बुराई से दूर रहना, जैसे जीवन मूल्यों को अपने जीवन में उतारने का प्रयास शुरू कर दिया है। मैं जान गया हूँ कि एक अच्छी पुस्तक एक सच्चे मित्र की तरह मूल्यवान होती है।
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But my problem doesn’t solve…!!
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