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Hindi Essay on “Mere Jeevan Ka Lakshya ” , ” मेरे जीवन का लक्ष्य या उदेश्य ” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

मेरे जीवन का लक्ष्य या उदेश्य

Mere Jeevan ka Lakshya

Top 5 Hindi Essay on ” Mere Jeevan Ka Lakshya”

निबंध नंबर – 01

      लक्ष्य का निश्चय – मैं दसवीं  कक्षा का छात्र हूँ | मेरे मन में एक ही सपना है कि मैं इंजीनियर बनूँगा |

      लक्ष्यपूर्ण जीवन के लाभ – जब से मेरे भीतर यह सपना जागा है, तब से मेरे जीवन में अनेक परिवर्तन आ गये हैं  | अब मैं अपनी पढाई  की और अधिक ध्यान देने लगा हूँ | पहले क्रिकेट के खिलाडियों और फ़िल्मी पत्रिकाओं  में गहरी रूचि लेता था, अब में ज्यामिति की रचनाओं और रासायनिक मिश्रणों में रूचि लेने लगा हूँ | अब पढ़ाई में रस आने लगा है | निरुदेश्य पढ़ाई बोझ थी | लक्ष्बुद्ध पढ़ाई में आनंद है | सच ही कहा था कलाईल ने – “ अपने जीवन का एक लक्ष्य बनाओ, और इसके बाद अपना सारा शरीरिक और मानसिक बल, जो ईश्वर ने तुम्हें दिया है, उसमें लगा दो |”

      मेरा संकल्प – मैंने निश्चय किया  है कि मैं इंजीनियर बनकर एक संसार को नए-नए साधनों से संपन्न करूँगा | मेरे देश में जिस वस्तु की आवश्यकता होगी, उसके अनुसार मशीनों का निर्माण करूँगा | देश में जल-बिजली , सड़क या संचार-जिस भी साधन की आवश्यकता होगी, उसे पूरा करने में अपना जीवन लगा दूँगा |

      मैं गरीब परिवार का बालक हूँ | मेरे पिता किराए के एक मकान में रहे हैं | धन की तंगी के कारण हम अपना माकन नहीं बना पाए | यही दशा मेरे जैसे करोंड़ों बालकों की है | मैं बड़ा होकर भवन-निर्माण की ऐसी सस्ती, सुलभ योजनाओं में रूचि लूँगा | जिससे माकनहीनों को मकान मिल सकें |

       मैंने सुना है कि कई इंजीनियर धन के लालच में सरकारी भवनों, सड़कों, बाँधों में घटिया सामग्री लगा देते हैं | यह सुनकर मेरा ह्र्दय रो पड़ता है | मैं कदपि यह पाप-कर्म नहीं करूँगा, न अपने होते यह काम किसी को करने दूँगा |

       लक्ष्य-पूर्ति का प्रयास – मैंने अपने लक्ष्य को पूरा करने की दिशा में प्रयास करने आरम्भ कर दिए हैं | गणित और विज्ञान में गहरा अध्ययन कर रहा हूँ | अब मैं तब तक आराम नहीं करूँगा, जब तक कि लक्ष्य को पा न लूँ |

कविता की ये पंक्तियाँ मुझे सदा चलते रहने की प्रेरणा देती हैं –

धनुष से छुटता है बाण कब पथ में ठहरता |

 देखते ही देखते वह लक्ष्य का ही बेध करता |

   लक्ष्य-प्रेरित बाण हैं हम, ठहरने का काम कैसे ?

लक्ष्य तक पहूँचे बिना, पथ में पथिक विश्राम कैसा ?

निबंध नंबर – 02

 

जीवन का उद्देश्य

Jeevan Ka Udeshya 

‘इस पथ का उद्देश्य नहीं है, श्रांत भवन में टिके रहना, किंतु पहुंचना उस समय तक, जिसके आगे राह नहीं।’

सृष्टि के समस्त चराचरों में मानव सर्वोत्कृष्ट है क्योंकि केवल उसी में बौद्धिक क्षमता, चेतना, महत्वाकांक्ष होती है। केवल मनुष्य ही अपने भविष्य के लिए अपने समने संजो सकता है, अपने जीवन के लक्ष्य का निर्धारण कर सकता है तथा उसे पाने के लिए सतत् प्रयत्व करने में सक्षम होता है।

मैंने भी अपने जीवन के बारे में एक लक्ष्य निर्धारित किया है, और वह है- एक डॉक्टर बनने का।विश्व में कई प्रकार के व्यवसाय हैं, उद्योग धंधे हैं, नौकरियां और कार्य-व्यापार हैं। उनमें से कई बड़े ही मानवीय दृष्टि से बड़े ही संवेदनशील हुआ करते हैं। उसका सीधा संबंध मनुष्य के प्राणों और सारे जीवन के साथ हुआ करते हैं। डॉक्टर का धंधा कुछ इसी प्रकार का पवित्र, मानवीय संवेदनाओं से युक्त प्राण-दान और जीवन रक्षा की दृष्टि से ईश्वर के बाद दूसरा, बल्कि कुछ लोगों की दृष्टि में ईश्वर के समान ही हुआ करता है। मेरे विचार में ईश्वर तो केवल जन्म देकर विश्व में भेज दिया करता है। उसके बाद मनुष्य -जीवन की रक्षा का सारा उत्तरदायित्व वह डॉक्टरों के हाथ में सौंप दिया करता है। इस कारण बहुधा मन-मस्तिष्क में यह प्रश्न उठा करते हैं कि यदि मैं डॉक्टर होता तो?

यह सच है कि डॉक्टर का व्यवसाय बड़ा ही पवित्र हुआ करता है, कमाई करने के लिए नहीं। मैंने ऐसे कईं डॉक्टरों की कहानियां सुन रखी हैं जिन्होंने मानव-सेवा करने में खुद सारा जीवन भूखे-प्यासे रहकर बिता दिया, पर किसी बेचारे मरीज को इसलिए नहीं करने दिया कि उसके पास फीस देने या दवाई खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं। यदि मैं डॉक्टर होता तो ऐसा ही करने की कोशिश करता। किसी भी मनुष्य को बिना उपचार, बिना दवाई के मरने नहीं देता। मैंने यह भी सुन रखा है कि कुछ ऐसे डॉक्टर भी हुए हैं, जिन्होंने अपने बाप-दादा से प्राप्त की गई सारी संपत्ति को सेवा-सहायता में ही खर्च कर दिया। यदि मैं बाप-दादा से प्राप्त की गई संपत्तिवाला डॉक्टर होता, तो एक-एक पैसा जन-साधारण की सेवा-सहायता में खर्च करता। इसमें शक नहीं।

मैंने सुना है कि भारत के दूर-दराज के गावों में डॉक्टरी-सेवा का अभाव है, जब कि वहां तरह-तरह की बीमारियों फैलकर लोगों को भयभीत किए रहती हैं, क्योंकि पढ़े-लिखे वास्तविक डॉक्टर वहां जाना नहीं चाहते, इसी कारण वहां नीमहकीमों की बन आती है या फिर झाड़-फंूक करने वाले ओझा लोग बीमारों का भी इलाज करते हैं। इस तरह नीमहकीम और ओझा बेचारे अनपढ़-अशिक्षित गरीब देहातियों को उल्लू बनाकर दोनों हाथों से लूटा तो करते ही हैं, उनके प्राण लेने से बाज नहीं आते और उनका कोई कुछ बिगाड़ भी नहीं पाता। यदि मैं डॉक्टर होता तो आवश्यकता पडऩे पर ऐसे ही दूर-दराज के गांवों में जाकर लोगों के प्राणों की तरह-तरह की बीमारियों से रक्षा करता। साथ ही लोगों को ओझाओं, नीम-हकीमों और तरह-तरह के अंधविश्वासों से मुक्ति दिलाने का भी प्रयास करता। मेरे विचार में अंधविश्वास भी एक प्रकार का भयानक रोग ही है। इनसे लोगों को छुटकारा दिलाना भी एक बड़ा महत्वपूर्ण पुण्य कार्य ही है।

यह ठीक है कि डॉक्टर भी मनुष्य होता है। अन्य सभी लोगों के समान उसके मन में भी धन-संपत्ति जोडऩे जीवन की सभी प्रकार की सुविधांए पाने और जुटाने, भौतिक सुख भोगने की इच्छा हो सकती है। इच्छा होनी ही चाहिए और ऐसा होना उसका भी अन्य लोगों की तरह बराबर का अधिकार है। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि वह अपने पवित्र कर्तव्य को भुला दे या बस पाने के लिए बेचारे रोगियों के रोगों पर परीक्षण करने रहकर दोनों हाथों से उन्हें लूटना और धन बटोरना शुरू कर दें। यदि मैं डॉक्टर होता तो इस दृष्टि से न तो कभी सोचता और न व्यवहार करता। सभी प्रकार की सुख सुविधांए पाने का प्रयास अवश्य करता पर पहले अपने रोगियों को ठीक करने का उचित निदान कर, उन पर तरह-तरह के परीक्षण करके नहीं कि जैसा आजकल बड़े-बड़े डिग्रीधारी डॉक्टर किया करते हैं। अफसोस उस समय और भी बढ़ जाता है जब यह देखता हूं कि रोग की वास्तिवक स्थिति की अच्छी भली पहचान हो जाने पर भी जब लोग कईं प्रशिक्षणों के लिए जोर देकर रोगियों को इसलिए तथाकथित विशेषज्ञों के पास भेजते हैं कि ऐसा करने पर उन परिचितों-मित्रों की आय तो बढ़े ही भेजने वाले डॉक्टरों को भी इच्छा कमिशन मिल सके। मैं यदि डॉक्टर होता तो इस प्रकार की बातों को कभी भूलकर भी बढ़ाना न देता।

मैंने निश्चय कर लिया है कि आगे पढ़-लिखकर डॉक्टर ही बनूंगा। डॉक्टर बनकर उपर्युक्त सभी प्रकार के इच्छित कार्य तो करूंगा ही, साथ ही जिस प्रकार से कुछ स्वार्थी लोगों ने इस मानवीय तथा पवित्र व्यवसाय को कलंकित कर रखा है उस कलंक को भी धोने का हरसंभव प्रयास करूंगा।

‘एक चिकित्सक रोगियों को जीवनदान देता है। जीवनदान सर्वोपरि है। इस प्रकार का कृत्य आत्मसंतुष्टि प्रदान करता है। मानव-जीवन के उद्देश्य को पूरा करता है-सर्वोसुखिन: संतु सर्वे संतुनिरामया केवल धन कमाना ही मानव जीवन का लक्ष्य नहीं’ परोपकार करना भी इसका उद्देश्य है जिसे एक चिकित्सक बनकर पूरा किया जा सकता है। इसलिए मैंने डॉक्टर बनने का जीवन लक्ष्य निर्धारित किया है।

 

निबंध नंबर – 03

मेरे जीवन का लक्ष्य 

MereJeevan ka Lakshya

 

                मनुष्य का महत्वाकांक्षी होना एक स्वाभाविक गुण है। प्रत्येक व्यक्तिजीवन में कुछ न कुछ विशेष प्राप्त करना चाहता है। कुछ बड़े होकर डाॅक्टर या इंजीनियर बनना चाहते हैं तो कुछ व्यापार में अपना नाम कमाना चाहते हैं इसी प्रकार कुछ समाज सेवा करना चाहते हैं तो कुछ भक्ति के मार्ग पर चलकर ईश्वर को पाने की चेष्टा करते हैं। सभी व्यक्तियों की इच्छाएँ अलग-अलग होती हैं पंरतु इनमें से बहुत कम लोग ही अपनी इच्छा को साकार रूप में देख पाते हैं। थोड़े से भाग्यशाली अपनी इच्छा को मूर्त रूप दे पाते हैं ऐसे व्यक्तियों मे सामान्यता दृढ़ इच्छा-शक्ति होती है और वे एक निश्चित लक्ष्य की ओर सदैव अग्रसर रहते हैं।

                                मनुष्य के जीवन में एक निश्चित लक्ष्य का होना अनिवार्य है। लक्ष्यविहीन मनुष्य क्रिकेट के खेल मे उस गेंदबाज की तरह होती है जो गेंद तो फेंकता है परंतु सामने विकेट नहीं होते। इसी भाँति हम परिकल्पना कर सकते है कि फुटबाल के खेल में खिलाड़ी खेल रहे हों और वहाँ से गोल पोस्ट हटा दिया जाए तो ऐसी स्थिति में खिलाड़ी किस स्थिति में होंगे इस बात का अनुमान स्वतः ही लगाया जा सकता है। अतः जीवन में एक निश्चित लक्ष्य एवं निश्चित दिशा का होना अति आवश्यक है।

                                                मेरे जीवन का लक्ष्य है कि मैं बड़ा होकर चिकित्सक बनूँ और अपने चिकित्सा ज्ञान से उन सभी लोगों को लाभान्वित करूँ जो धन के अभाव में उचित चिकित्सा प्राप्त नहीं कर पाते हैं। मैं इस बात को अच्छी तरह समझता हूँ कि एक अच्छा चिकित्सक बनना आसान नहीं है। अच्छे विद्यालय का चयन, उसमें प्रवेश पाना तथा पढ़ाई में होने वाला खर्च आदि अनेक रूकावटें हैं। परंतु मुझे पूरा विश्वास हैं कि मैं इन बाधाओं को पार कर सकूँगा। इसके लिए मैंने बहुत कड़ी मेहनत का संकल्प लिया है। उचित मार्गदर्शन के लिए मैं अपने अध्यापक व अनुभवी छात्रों का सहयोग ले रहा हूँ।

चिकित्सक बनने के बाद मैं भारत के उन गाँवों में जाना चाहता हूँ जहाँ पर अच्छे चिकित्सक का अभाव है अथवा जहाँ पर चिकित्सा केंद्र की व्यवस्था नहीं है। मैं उन सभी लोगों का इलाज निःशुल्क करना चाहता हूँ जो धन के अभाव में अपना इलाज नहीं करा पाते हैं। इसके अतिरिक्त मैं उनमें अच्छे स्वास्थय के बारे में जागरूकता लाना चाहता हूँ। वे किस प्रकार के जीवन-यापन करें, सफाई, स्वास्थय एवं संतुलित भोजन के महत्व को समझें, इसके लिए मैं व्यापक रूप से अपना योगदान देना चाहता हूँ। आजकल कुछ परंपरागत रोगों का इलाज तो आसानी से संभव है लेकिन उचित जानकारी का अभाव, रोग त्रीव होने पर ही इलाज के लिए तत्पर होना जैसी समस्याएँ अशिक्षितों एवं ग्रामीणों की प्रमुख समस्याएँ हैं। इस दिशा में मैं कुछ कदम जरूर उठाना चाहूँगा।

                                मेरे लक्ष्य में देश और समाज की सेवा का भाव निहित है। सभी लोगों, विशेषकर निर्धन लोगों को चिकित्सा तथा अच्छे स्वास्थय संबंधी जानकारी देकर मैं निश्चय ही आत्म-संतुष्टि प्राप्त करूँगा। समाचार-पत्रों व दूरदर्शन अथवा अन्य माध्यमों से जब मुझे इस बात की जानकारी प्राप्त होती है कि देश के गाँवों में प्रतिवर्ष हजारों लोग कुपोषण के कारण तथा उचित चिकित्सा के अभाव में मृत्यु के शिकार हो जाते हैं तो मुझे वास्तव मंे बहुत दुःख होता है। यह निश्चिय ही देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण बात है। यह मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी कि मैं अपने देश और देशवासियों के लिए अपना योगदान कर सकूँगा। दूसरी ओर एड्स जैसी कई बीमारियाँ ऐसी है जिसके बारे में समाज को जागरूक बनाना अत्यावश्यक है।

                                मुझे विश्वास है कि मेरे इस जीवन लक्ष्य में गुरूजनों, सहपाठियों व माता-पिता सभी का सहयोग प्राप्त होगा। ईश्वर मेरे इस नेक कार्य व मेरे लक्ष्य प्राप्ति मार्ग में मेरी सहायता करेंगे इसका मुझे पूर्ण विश्वास है। मैं खुद भी अपने लक्ष्य की प्राप्ति में कोई कसर नहीं छोडूँगा।

निबंध नंबर – 04

मेरे जीवन का लक्ष्य

मानव महत्त्वाकाँक्षी प्राणी है। उसका लक्ष्य अपने जीवन को सार्थक बनाना है। जिसके हृदय में दृढ़-संकल्प, अदम्य साहस और काम करने की लगन होती है, वह अपने जीवन के लक्ष्य को पूरा कर लेता है। बहुत से मानव जीवन की सार्थकता ‘खाने-पीने और मौज उड़ाने में ही मानते हैं। ऐसे लक्ष्यहीन मानव का जीवन पशु तुल्य होता है। कुछ मानव ऐसे भी होते हैं जिनका जीवन परिस्थितियों के साँचे में ढलता रहता है। ऐसे मानव जीवन में अनेक पापड़ बेलते हैं।

आज के वैज्ञानिक युग में मुझे भी अपने माता-पिता के सुनहरे स्वप्नों को साकार करने के लिए स्थिर चित्त तथा दूरदर्शी बनकर लक्ष्य चुनना है। मुझे अपने भावी जीवन के लिए ऐसा लक्ष्य चुनना होगा जिससे न सिर्फ अपने जीवन को सुख शान्ति बल्कि समाज तथा राष्ट्र का भी हित हो सके। मेरी चिर अभिलाषा आदर्श अध्यापक बनने की रही है।

शिक्षण काल से ही मेरी पढने-पढ़ाने की रुचि रही। कई बार मेरे गुरुजन ने मेरी पीठ थपथपाते हुए कहा था कि मुझमें एक आदर्श अध्यापक बनने के सभी गुण विद्यमान है तभी से मैंने अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित कर लिया कि मुझे आदर्श अध्यापक बनना है.

इस गौरवपूर्ण पद को पाना उतना ही कठिन है जितना कहना सरल है। इसके लिए मुझे कठिन साधना करनी पड़ेगी तभी इच्छित सिद्धि प्राप्त हो पायेगी। आदर्श अध्यापक बनने से पूर्व मुझे आदर्श विद्यार्थी बनना होगा। जब तक मैं स्वयं किसी विषय से पारंगत नहीं हो जाऊँगा, तब तक किसी को शिक्षा देना न्याय संगत नहीं होगा। छात्रों को आदर्श रूप बनाने के लिए पहले मुझे स्वयं उनके लिए आदर्श बनना होगा। मुझे तपस्वी के समान तपस्या, सैनिक के समान अनुशासन और धरा के समान सहनशीलता अपनानी होगी।

वह गुरुता और महिमा की प्रतिमा, विद्या का प्रकाश स्तम्भ है। उसका पुनीत कर्त्तव्य शिष्यों के अज्ञानांधकार को दूर करना है। मेरा विचार है कि विद्या ही सर्वोत्तम धन है। इसका दान ही सबसे बड़ा दान है। अध्यापन कार्य में मेरी सहज स्वाभाविक रुचि है। यह मेरा सौभाग्य है कि मैं आदर्श अध्यापक बन कर राष्ट्र के भावी कर्णधारों का पथ प्रशस्त करूँ। मेरे हर्ष की सीमा न होगी, जब मेरे ही पढ़ाये छात्र कुशल चिकित्सक सफल इंजीनियर, उच्चाधिकारी और देश के नेता बनेंगे। मेरे जीवन की सार्थकता तभी होगी जब मैं नश्वर देह को आजीवन विद्या दान करते पाऊँगा। इस पुनीत कार्य से जीवन भर संतोष और शान्ति मेरी सहचरी बनी रहेगी।

निबंध नंबर – 05

मेरे जीवन का लक्ष्य

Mere Jeevan ka Lakshya

 

छोटे से छोटा काम भी लक्ष्य के बिना नहीं किया जाता। मनुष्य के हर यल और चेष्टा के मूल में कोई न कोई लक्ष्य अवश्य होता है। उस दशा में जीवन का कोई लक्ष्य न बनाना मानों अमूल्य मानव जीवन को व्यर्थ गंवाना है। मैंने भी अपने जीवन का कोई लक्ष्य नहीं चुना था। विद्यार्थी के रूप में शिक्षा पा रहा था। आगे चल कर क्या करूंगा, कुछ भी निश्चित नहीं था। एक पस्तक में मैंने पदा कि पश्चिमी युवक लक्ष्य बना कर उसके अनुसार विद्या ग्रहण करते हैं। यह बात मेरे मन में समा गई। मैंने भी सोचा कि जीवन लक्ष्य को निश्चित करके ही शिक्षा पानी चाहिए। जिसे अपनी मंज़िल का ही पता न हो वह किस रास्ते को अपना सकता है ? लक्ष्यहीन नौका कभी किनारे नहीं लगती। वह मंझधार में ही डूबती है।

मैंने सोचा कि मैं डॉक्टरी को अपने जीवन का लक्ष्य बना लूं, क्योंकि हमारे दोस में रहने वाले डॉक्टर का काम खूब चलता था और उसने बहुत धन कमाया था। कार, कोठी, फ्रिज, टेलीविज़न आदि जीवन की सब सुखसुविधाओं से वह सम्पन्न था। तभी मेरे मन ने आवाज़ दी कि धन ही कमाना उद्देश्य है तो डॉक्टरा का पर्दा क्यों डाला जाए। क्यों न कोई व्यवसाय ही आरम्भ किया जाए। फिर ध्यान आया कि आज देश के किसी भी व्यवसाय में सच्चाई और ईमानदारी नहीं है। हर जगह झूठ है, ब्लैक है, हेराफेरी है। फिर भय तथा चिन्ता से मन हर समय परेशान रहता है। मैं ऐसा गन्दा लक्ष्य अपना कर जीवन को नष्ट नहीं करूंगा।

फिर विचार आया कि मैं पढ़ लिख कर आई.ए.एस. की परीक्षा में सम्मिलित होकर प्रशासकीय सेवा को ही अपने जीवन का लक्ष्य क्यों न बना लूँ ? वहां छल-कपट, हेराफेरी नहीं है और रोबदाब भी रहता है। सभी लोग सम्मान करते हैं। फिर मन ने आवाज़ दी कि नौकरी तो नौकरी ही है, रात दिन चौबीस घण्टे की नौकरी कोई चैन नहीं । इसके अतिरिक्त राजनैतिक नेताओं की धौंस और अकड़ के आगे झुक कर चलना पड़ेगा । आज इस नगर में तो कल न जाने कहां की बदली होने के आदेश मिल जाएं । यह लक्ष्य भी मझे निरर्थक ही लगा।

बुद्धि ने ज़ोर का चाबुक मार कर मुझे जगा सा दिया । मैं जीवन का लक्ष्य नहीं चुन रहा था परन्तु मैं तो स्वार्थ में भर कर सिर्फ अपने लिए सुख सुविधाओं का रास्ता ढूंढ रहा था। वह लक्ष्य क्या जो देश-हित में न हो ! वह लक्ष्य कैसा जिसमें मानव की सेवा न हो ! सेवा का भाव हो तो वह हर क्षेत्र में की जा सकती है। बहुत सोच विचार के बाद मैंने अपने जीवन का लक्ष्य चुन लिया है : मैं डॉक्टर बनंगा । मैंने अपने इस लक्ष्य की सूचना अपने पिता जी को भी दे दी है। वे स्वयं वकील होने के कारण मुझे भी वकालत पास करवाने के इच्छुक थे और सोचते थे कि उनकी सहायता भी हो जाएगी और मेरा काम भी चल जाएगा ।

मुझे पता है कि आजकल डॉक्टरी में दाखिला मिलना बड़ा कठिन है, किन्तु जब निश्चय ही कर लिया तो असम्भव को सम्भव कर दिखलाऊँगा । डॉक्टर बन कर मैं पैसे को अपना लक्ष्य नहीं बनाऊंगा। मेरे सामने एक ही लक्ष्य होगा-दीन दुखियों की सेवा करना। धनवानों से पैसे लेकर में निर्धनों का इलाज मुफ्त करूंगा। किसी को पानी के टीके लगा कर नहीं लूलूंगा और न ही किसी को धोखे में रखूगा। जितने पैसे से मेरा निर्वाह हो जाए उतने ही अपने लिए अपने पास रखूगा।

यह सत्य है कि डॉक्टर मृत्यु को नहीं मार सकता किन्तु वह रोगी की पीड़ा दूर कर सकता है। उसके जीवन काल को बढ़ा सकता है मीठा बोल कर वह रोगी के दिल को ढाढस दे सकता है। मूर्खतावश तथा असमय हो रही मृत्य को तो वह टाल सकता है। दवाई खाने की अपेक्षा स्वास्थ्य के नियमों का पालन करना और रोग से बचाव करना कहीं अच्छा है। अधिकांश लोग गलत खान-पाल से अनुचित जीवन चर्या के कारण बीमार पड़ते हैं। मैं दवाई देने के साथ साथ उन रोगियों को स्वास्थ्य सम्बन्धी नियमों की जानकारी भी करवाऊंगा और इस तरह देश के धन-जन की रक्षा करूंगा।

आदर-सम्मान, पदवी, पैसा, सुख, सुविधा सब का लालच छोड़ कर और सेवा के भाव को अपने मन में रख कर मैंने अपना जीवन लक्ष्य चन ति मेरे जीवन का लक्ष्य है: डॉक्टर बन कर पीड़ित मानवता की सेवा करना और इस तरह संसार के दुःखों की मात्रा को कुछ कम कर सकना।

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commentscomments

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