Hindi Essay on “Manoranjan Ke Sadhan” , ”मनोरंजन के साधन” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
निबंध नंबर : 01
मनोरंजन के साधन
Manoranjan Ke Sadhan
मानव स्वभाव ही आनंद-मनोरंजन प्रिय है। यों भी सुखद और स्वस्थ जीवन जीने के लिए जिस प्रकार अन्न, पानी और हवा आवश्यक है, उसी प्रकार स्वस्थ मनोरंजन के लिए सुभ क्षण भी परामावश्यक है। मनुष्य कोल्हू का बैल बना रहकर स्वस्थ-सुखी जीवन नहीं जी सकता। तन की थकान मिटाने के लिए जिस प्रकार आराम और नींद आवश्यक है, उसी प्रकार मन-मस्तिष्क भी आवश्यक है। सृष्टि के आरंभ में ही मनुष्य ने इस व्यावहारिक सत्य को पहचान लिया था और मनोरंजन के नित नए साधनों की खोज एंव अविष्कार भी करना शुरू कर दिया। परिणामस्वरूप आज के इस वैज्ञानिक युग तक पहुंचते-पहुंचते मानव समाज के पास स्वस्थ आनंद और मनोरंजन के घरेू एंव बाहरी स्थूल-सूक्ष्म कई प्रकार के साधन और उपकरण हो गए हैं।
प्राचीन काल का जीवन सीमित था, अत: उस समय मनोरंजन के साधन भी सीमित ही थे, फिर भी थे अवश्य और अनंन। प्रकृति के खुले वातावरा में भ्रमण करना, शिकार खेलना, सामूहिक नृत्य गान, अनेक प्रकार के उत्सवों-त्योहारों की परिकल्पना, दीवारों पर चित्र बनाना, ग्रामीण ढंग के कबड्डी, कुश्ती आदि के खेल, पशु-पक्षियों का द्वंद कराना आदि परंपरागत या प्राचीन युग के मनोरंजन के साधन कहे जा सकते हैं। नृत्य-गान की सामूहिक परंपरा से जहां नौटंगी, रास लीला, रामलीला या स्वांग भरने की कला का विकास हुआ, आगे चलकर वह नाटक और आज के सिनेमा या दूरदर्शन पर प्रदर्शित चलचित्रों के रूप में विकास पा सका आदि सभी मनोरंजन के साधनों की विकसित परंपरा में ही आते हैं। इसी प्रकार सामान्य स्तर के खेलों ने ही ज्ञान-विज्ञान की सहायता से विकसित होकर आधुनिक खेलों का स्वरूप धारण कर लिया है कि जो आज के जीवन के सिनेमा आदि के समान ही प्रमुख मनोरंजन के साधन और उपकरण माने गए हैं। सभ्यता के विकास के साथ-साथ पहले चौपड़ और शतरंज जैसे खेल भी खेले जाने लगे थे कि जिन्हें आज नव विकसित रूप में अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं का महत्व प्राप्त हो चुका है।
इस प्रकार अनेक तरह के खेल-कूद, नाटक, नृत्यगान, सिनेमा, रेडियो, दूरदर्शन, अनेक प्रकार की प्रदर्शनियां, त्योहार-उत्सव, मेले, हाट -बाजार और देश-विदेश का भ्रमण, होटल और रेस्तरां आदि तो कई तरह के मनोरंजन के साधन माने ही जाते हैं। आज इन सबकी भरमार भी हो गई है, पर इनके अतिरिक्त भी कुछ ऐसी बातें या कार्य हैं, जिन्हें मनोरंजन का उत्तम उपकरण या साधन स्वीकारा जा सकता है। पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं का निरंतर अध्ययन भी आनंद और मनोरंजन का एक श्रेष्ठ एंव सर्वसुलभ साधन कहा जा सकता है। ऐसे लोगों की कमी नहीं जो अध्ययन के आनंद-मनोरंजन की तुलना में अन्य किसी भी बात को महत्व नहीं दिया करते। कुछ लोग कला साधना को भी मनोरंजन का एक साधन मान उसी में निरत हो जाया करते हें। इसी प्रकार कुछ लोग समाज-सेवा के कार्यों में ही आनंद पाते हैं। कनरसिया और बतरसिया लोगों की भी कमी नहीं है। ऐसे लोगों के पास अन्य किसी साधन के प्रयोग की फुर्सत ही नहीं रहा करती, आवश्यकता ही नहीं होती। मतलब मनोरंजन से है, साधन कोई भी क्यों न हो। आज अपने स्वभाव और रुचि के अनुकूल हर व्यक्ति उपयुक्त साधन जुटा ही लिया करता है।
उद्यानिका मनाना, नदियों में नौका-विहार करना या नौकायन-प्रतियोगितांए भी अब हमारे मनोरंजन के उपकरणों-साधनों में सम्मिलित हो गई हैं। आजकल पहाड़ों की बर्फानी चोटियों पर चढऩा, लंबी-लंबी दुर्गम यात्रांए करना भी कई लोगों के लिए मनोरंजन के कारण बन गए हैं। इसी प्रकार घुड़दौड़, मोटर एंव मोटर-साइकिल दौड़ आदि और विदेशों में विकसित हो रहे जल-थल के कई प्रकार के खेल-ये सब किसलिए? प्रश्न का उत्तर है कि सभी कुछ मानव-मात्र के स्वस्थ मनोरंजन के लिए। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेलों की जो प्रतियोगितांए की जाती हैं, उनका उद्देश्य भी स्वस्थ मनोरंजन और प्रेम-भाईचारे आदि का विस्तार रहा करता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि आज हम जिस विविधताओं से भरे युग में जी रहे हैं, उसमें स्वस्थ मनोरंजन के भी अनेक प्रकार के उपकरण उपलब्ध हैं। हर रुचि का व्यक्ति इच्छित उपकरण का उपयोग कर सकता है। इच्छित रंजक कार्य एंव गतिविधियों में उनसे संबधित राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग भी ले सकता है।
संसार में जो कुछ भी है, वह मनुष्य के द्वारा और मनुष्य के लिए ही बनाया गया है। मनोरंजन के विभिन्न साधन भी मनुष्यों के लिए ही हैं। आवश्यकता इस बात की है कि उन सबका प्रयोग रुचिपूर्ण ढंग से, उचित मात्रा में किया जाए। अति जैसे खाने-सोने या अन्य किसी कार्य में वर्जित है, उसी प्रकार मनोरंजन के क्षेत्र में भी वर्जित है। जहां और जितने तक मानव जीवन सुखी, स्वस्थ, शांत और आनंदमय रह सके, मनोरंजन और उसके साधनों का उपयोग भी वहीं तक सीमित रहना चाहिए। अति विनाश की सूचक है और मानव-जाति ने अभी विनष्ट नहीं होना है। स्वस्थ-मनोरंजक जीवन जीकर प्रगति के अनेक पड़ाव पार करने और निरंतर करते रहने हैं। यही जीवन और प्रकृति दोनों का नियम है।
निबंध नंबर : 02
मनोरंजन के साधन
Manoranjan Ke Sadhan
वर्तमान युग में मनुष्य का जीवन बड़ा ही संघर्षमय होता जा रहा है। उसके जीवन में एक न एक जटिल समस्या आती रहती है। वह उनको सुलझाने में हमेशा व्यस्त रहता है। बेचारा दिन-रात मशीन की तरह निरंतर विभिन्न क्रिया-कलापों में व्यस्त रहता है। उसके जीवन में कुछ ही क्षण ऐसे आते हैं, जब वह नाममात्र का संतोष अनुभव कर पाता है। वे होते हैं, मनोरंजन के क्षण।
मनुष्य स्वभावत: आमोद-प्रमोदप्रिय होता है। आदिकाल में भी मनुष्यों के बीच आमोद-प्रमोद की आयोजनांए हुआ करती थीं। कारण यह है कि मनोरंजन से हमारा चित्त कुछ क्षणों के लिए उत्फुल्ल हो जाता है। बिना मनोरंजन के जीवन भार-सा मालूम होता है। खेल-कूद और दर्शनीय स्थलों पर हमें एक अनोखी स्फूर्ति मिलती है। इसलिए मनोरंजन मनुष्य के लिए अनिवार्य है।
प्राचीनकाल में जबकि मनुष्य का समाज इतना विकसित नहीं था, उस समय भी वह मनोरंजन करता था। जंगली जातियां भी नाना प्रकार के नृत्यों और गीतों से अपना आनंद बनाती हैं। अंतर इतना है कि प्राचीन युग में ये साधन कम मात्रा में थे। सभ्यता का विकास जितनी तीव्र गति से हुआ, उसी के साथ हमारे मनोरंजन के साधनों का विकास भी हुआ। आज हमारे पास मनोरंजन की इतनी विपुल सामग्री है कि उसका उपयोग करना भार होता जा रहा है।
यह विकास का युग है। मानव प्रगति की चरम सीमा पर पहुंच रहा है। समाज में मनोरंजन के साधनों का बाहुल्य है। संगीत, अभिनय, नृत्य, चित्रकला आदि से मानव मन को शांति मिलती है। हम आनंद का अनुभव करते हैं। कानों को प्रिय लगनेवाला गीत कौन नहीं चाहता। नाटकों को देखने कौन नहीं जाता। गरमी में आग बरसाती हुई हवाओं के बीच बैठक में बैठकर हम ताश या शतरंज का आनंद लेते हैं। जाड़े की ऋतु में टेनिस बैडमिंटन, फुटबाल, हॉकी और क्रिकेट तन-मन में स्फूर्ति का संचार करते हैं।
अनेक प्रकार के मेलों का आयोजन होता है। मेलों में आनंद-प्राप्ति के साथ-साथ हमारा व्यावहारिक ज्ञान भी बढ़ता है। देशाटन करने पर ीाी चित्त को शांति और भिन्न-भिन्न स्थानों रीति-रिवाज एंव आचार-विचारों का ज्ञान होता है। बुद्धिजीवी वर्ग साहित्य का अध्ययन-मनन कर असीम आनंद उठाता है। विज्ञान के युग में सबसे प्रिय मनोरंजन के साधन हैं-सिनेमा, रेडियो, टेलिविजन, वीडियो आदि। दिन भर की थकावट दूर करने के लिए श्रमिक वर्ग शाम को फिल्म देखकर या रेडियो सुनकर आनंद उठाता है। रेडियो तो मनांरेजन का जादूई बक्सा है। यह मनोरंजन के साथ-साथ घर बैठे ही देश-विदेश के समाचार सुनाता है।
मनोरंजन मनुष्य के लिए बहुत आवश्यक है। मनोरंजन के बिना जीवन अधूरा है। जैसे भोजन शरीर को स्वस्थ बनाता है वैसे ही मनोरंजन मस्तिष्क की थकान दूर कर शांति देता है। अत: जीवन में मनांरेजन नियमित रूप से होना चाहिए। लेकिन अधिक माता में मनारंजन हानिकारक है। मनोरंजन केवल जीवन में उल्लास लाने के लिए है। इसी उद्देश्य से इसका उपयोग करना उचित है।
निबंध नंबर : 03
मनोरंजन के आधुनिक साधन
मानव-जीवन के लिए मनोरंजन की आवश्यकता और महत्त्व भी उतना ही माना जाता है, जितना कि साँस लेने और सन्तुलित भोजन का। यही कारण है कि आरम्भ से ही मनुष्य मनोरंजन के कई प्रकार के आविष्कार अपने साधनों एवं समय के अनुसार करता आ रहा है। शिकार खेलना, पानी में तैरना, बाजी लगा कर दौड़ लगाना, बैलों-बैलगाडियों, घोडों-घोडा गाडियों और ऊँटों आदि की दौड़ के आयोजन करना आदि सभी स्वस्थ मनोरंजन के साधन और खेल ही तो माने जाते हैं। इसी प्रकार कुश्ती लड़ना, कबड्डी खेलना, गिल्ली-डण्डा, कंचे आदि खेल भी माने जाते हैं और मनोरंजन के साधन भी। नाचना-गाना, नत्य देखना और गाना सुनना भी शुरू से ही मनोरंजन के साधन रहे हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि युग की आस्थाओं, आवश्यकताओं और साधनों की उपलब्धता के अनुरूप मनुष्य आरम्भ से ही अपने मनोरंजन के लिए तरह-तरह के साधनों के आविष्कार करता आ रहा है।
आज जिस प्रकार जीवन-समाज के अन्य क्षेत्रों में आवश्यक साधनों के स्वरूपाकार में परिवर्तन आ गया है, पुराने उपकरणों-साधनों के रहते हुए भी मानव ने और साधन आविष्कृत कर और अपना लिए हैं; उसी प्रकार का परिवर्तन मनोरंजन के क्षेत्र और साधनों में भी आया है। मनोरंजन के उपर्युक्त सभी साधन आज भी कुछ परिवर्तन एवं परिष्कृत रूप में विद्यमान हैं, साथ ही और कई नए साधन भी आविष्कृत कर लिए गए हैं। उनमें प्रमुख हैं-रेडियो, सिनेमा, दूरदर्शन, पत्र-पत्रिकाएँ, कई प्रकार की खेल-प्रतिस्पर्धाएं, कई प्रकार के वाद्य यन्त्र, नए-पुराने नृत्य आदि। ये सभी साधन आज प्रत्येक जन की रुचि के अनुसार उसके लिए मनोरंजन की उपयुक्त सामग्री जुटा पाने में सहायक हो रहे हैं, इस बात में तनिक भी सन्देह नहीं।
सब से पहले रेडियो के आविष्कार ने आम आदमी के लिए मनोरंजन की सामग्री जुटाने में क्रान्तिकारी परिवर्तन ला दिया था। आरम्भ में यह कुछ सम्पन्न लोगों को ही सुलभ रहा, फिर धीरे-धीरे आम जन को भी सुलभ होने लगा। धीरे-धीरे आज स्थिति यह बन गई है कि अपने लघुतम रूप में यह साधन मनुष्य की जेब में रहकर जहाँ चाहे उसके लिए मनोरंजन की सामग्री प्रस्तुत कर देता है। उसके बाद सिनेमा के आविष्कार ने मनोरंजन के क्षेत्र को और भी विस्तार दिया। सस्ते जमाने में आदमी मात्र चंद पैसे खर्च कर के ही सिनेमा का मनोरंजन प्राप्त कर सकता था, यद्यपि आजकल वह काफी खर्चीला और महँगा हो गया है। फिर सिनेमा द्वारा मनोरंजन पाने के लिए घर से चलकर कम-अधिक दूरी पर बने सिनेमाघरों तक जाना आवश्यक हुआ करता है। परन्तु अब टेलीविजन या दूरदर्शन के आविष्कार ने कहीं आने-जाने की जहमत भी समाप्त कर दी है। व्यक्ति अपने घर में ही बैठ कर, खाना खाते या चाय की चुस्कियाँ लेते हुए रेडियो और सिनेमा से प्राप्त होने वाले मनोरंजन का आनन्द एक साथ बड़े सस्ते में प्राप्त कर सकता है।
कुछ लोग ऐसे भी हैं कि जो उपर्युक्त उपकरणों को उतना महत्त्व नहीं देते। वे तरह-तरह की पत्र-पत्रिकाएँ और पुस्तकें पढ कर जीवन में सच्चा मनोरंजन तो प्राप्त करते ही हैं, इनके माध्यम से अपने ज्ञान का खजाना भी निरन्तर बढ़ाया करते हैं। वास्तव में अच्छी पत्र-पत्रिकाएँ और साहित्यिक पुस्तकें मनोरंजन के साथ-साथ व्यक्ति-जीवन और समाज को और भी बहुत कुछ दे जाया करती हैं। इसी तरह कुछ लोग केवल विभिन्न प्रकार के खेलों में रुचि लेकर स्वस्थ मनोरंजन का अनुभव करते हैं। खेल स्वस्थ मनोरंजन का अमूल्य खजाना है, इस बात में किसी प्रकार का सन्देह या मत-भेद भी नहीं है। हॉकी, फुटबॉल, वालीबॉल, बास्किट बॉल, क्रिकेट, शतरंज, बैडमिण्टन, टैनिस, टेबल टेनिस. कुश्ती, कबड्डी, जुडो-कराटे आदि आज तरह-तरह के खेल प्रचलित हैं। एथेलेटिक्स भी हैं । भारोत्तोलक, चक्का फेंक, दौड़ना, कूदना, तैराकी आदि और भी कई तरह के खेलों का आज प्रचलन है कि जो स्वस्थप्रद तो हैं ही मनोरंजन दाता भी हैं। घुडदौड़, भाला-फेंक और शिकार आदि भी इसी प्रकार की स्थितियाँ कही जा सकती हैं। अपनी रुचि, इच्छा, साधन और समय के अनुरूप लोग अपने इच्छित साधन या स्वरूप को अपना कर मनोरंजन और आनन्द प्राप्त किया करते हैं।
नाटक देखना यदि आनन्द और मनोरंजनदायक माना जाता है, तो उसे अभिषित करना भी इस दृष्टि से कम महत्त्वपूर्ण कतई नहीं। यह मनोरंजन का रूप और साधन पहले जितना महत्त्वपूर्ण है। ऐसे लोगों की भी कमी नहीं जो ताश खेलने, जुए के दाव लगाने, मद्यपान के सामूहिक आयोजन करने लों में विशेष तरह के मनोरंजन के दर्शन किया करते हैं। किन्तु इस तरह के मन को न तो स्वस्थ कहा जा सकता है और न ही जीवन-समाज के लिए उपयोगी माना जाता है। इसे तो स्वास्थ्य, धन और शान्ति आदि का घोर शत्रु ही माना और कहा जाता है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि यदि मनोरंजन जीवन के लिए आवश्यक है, तो उसके लिए साधन भी अनेक प्रकार के उपलब्ध हैं। अपनी स्थिति, रुचि और सुविधा के अनुसार आदमी किसी भी साधन का चयन कर सकता है। आवश्यकता मात्र इस बात की है कि वह साधन स्वस्थ एवं स्वच्छ हो। अपने या किसी को भी किसी तरह से हानि पहुँचाने वाला न हो।