Hindi Essay on “Madan Mohan Malaviya” , ”महामना मदनमोहन मालवीय” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
महामना मदनमोहन मालवीय
Madan Mohan Malaviya
महामना मदनमोहन मालवीय का जन्म 25 सितंबर 1862 को इलाहाबाद में हुआ था। वे एक गरीब परिवार से जनमे थे। ज्ञान के मामले में उनका परिवार बहुत समृद्ध था। उनके दादा पंडित प्रेमधर और पिता पंडिृ ब्रजनाथ श्रीमदभगवदगीता पर प्रवचनों के लिए प्रसिद्ध थे।
सन 1891 में मालवीयजी ने एल.एल.बी. की परीक्षा उत्तीर्ण की। उसके बाद उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकालत शुरू कर दी। सन 1909 में देश, धर्म और संस्कृति की सेवा के लिए उन्होंने वकालत छोड़ दी थी। सन 1922 में गांधीजी के असहयोग आंदोलन के दौरान उत्तर प्रदेश में चौररी-चौरा कांड में दो सौ लोगों के मुकदमों की पैरवी की। इस प्रकार उन्होंने 153 लोगों को फांसी की सजा होने से बचा लिया।
सन 1886 में मालवीयजी पहली बार कांग्रेस अधिवेशन में शामिल हुए। यह उनके राजनीतिक जीवन का आरंभ था। सन 1909 और 1918 में अधिवेशन के चार बार अध्यक्ष चुने गए। कांग्रेम ने ‘नमक आंदोलन’ के दौरान 1932 में दिल्ली अधिवेशन तथा 1933 में कलकत्ता-अधिवेशन के प्रधान घोषित किए गए, परंतु अंग्रेजी सरकार ने दोनों बाद उनको अधिवेशन से पहले ही गिरफ्तार कर लिया।
सन 1906 में मालवीयजी ने ‘हिंदू महासभा’ की स्थापना की। वे तीन बार उसके प्रधान बने। मालवीयजी ‘सनातन धर्म सभा’, ‘अखिल भारतीय सेवा-समिति’, ‘स्काउट एसोसिएशन’ तथा कई धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं के संस्थापक थे।
सन 1902 से 1909 तक उत्तर प्रदेश कौंसिल के सदस्य, 1909 से 1912 तक केंद्रीय कौंसिल के सदस्य तथा 1923 से 1930 तक केंद्रीय असेंबली के सदस्य रहे। उनकी सबसे उत्कृष्ट उपलब्धि है बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, जिससे मालवीयजी ने अथक परिश्रम और लगन से उन्नति के चरम शिखर तक पहुंचाया।
वे लगातार साठ वर्षों तक देश के धार्मिेक, सामाजिक, राजनीतिक और साहित्यिक जगत में छाए रहे। वे संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू भाषाओं के महान ज्ञाता थे। वे गो-भक्त और गो-रक्षक थे। उन्होंने हिंदी व अंग्रेजी के कई दैनिक और साप्ताहिक समाचार-पत्र निकाले। मालवीयजी हमेशा श्वेत वस्त्र धारण करते थे। 12 नवंबर, 1946 को इस महान तपस्वी, हिंदी व संस्कृत के अनन्य सेवक का निधन हो गया।