Hindi Essay on “Library”, “पुस्तकालय” Complete Essay, Paragraph, Speech for Class 7, 8, 9, 10, 12 Students.
पुस्तकालय
Library
पुस्तकालय ज्ञान का भंडार है।
सभ्यता का इससे ही शृंगार है।
निर्धनों का धन, धनवान का मित्र है।
साहित्य रक्षक प्यार का आधार है।
पुस्तकालय का अर्थ है –पुस्तकों का घर, मन्दिर अथवा भंडार । जहाँ पुस्तकों का संग्रह होता है, उसे पुस्तकालय कहा जाता है। पुस्तकालय में केवल पुस्तकें ही नहीं रखी जाती बल्कि वहाँ पत्र-पत्रिकताएँ भी पढ़ने को मिलती हैं। जिस प्रकार शरीर को स्वस्थ रखने के लिए सन्तुलित एवं पौष्टिक आहार की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार मानसिक स्वास्थ्य के लिए पुस्तकों द्वारा ज्ञान प्राप्त करना भी अनिवार्य है। शास्त्रों में कहा गया है कि यदि शरीर के किसी अंग से कार्य न लिया न लिया जाए तो उसकी क्रियाशीलता प्रायः समाप्त सी हो जाती है। ठीक इसी प्रकार मस्तिष्क को क्रियाशीलता प्रदान करने के लिए तथा उसे गतिशीलता देने के लिए शुद्ध ज्ञान एवं नए नए विचारों की नितान्त आवश्यकता होती है। हम भगवान से प्रार्थना करते हैं -‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ भाव हे भगवान् हमें अज्ञान के अन्धकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाश की ओर ले चलो। पुस्तकालय ही ऐसे मन्दिर हैं जो हमें अज्ञानरूप अन्धकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाशपूर्ण लोक में ले जाते हैं।
पुस्तकालय कई प्रकार के होते हैं। पहली प्रकार के पुस्तकालय वे हैं जो हमारे स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में होते हैं । इन पुस्तकालयों द्वारा अध्यापकगण तो लाभान्वित होते ही हैं, परन्तु आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्ग के विद्यार्थी की ज्ञान पिपासा भी इन पुस्तकालयों द्वारा शान्त होती है।
दूसरी प्रकार के पुस्तकालय व्यक्तिगत पस्तकालय होते हैं। ज्ञान प्राप्ति की जिज्ञासा रखने वाले और धनवान व्यक्ति हज़ारों रूपये व्यय करके प्राचीन तथा अर्वाचीन साहित्य एकत्रित करते हैं तथा अपने ज्ञान में वृद्धि करते हैं तथा आस-पास के रहने वाले व्यक्ति भी ऐसे पुस्तकालयों से लाभ प्राप्त करते हैं। कोई भी व्यक्ति अपना व्यक्तिगत पुस्तकालय खोल सकता है।
तीसरी प्रकार के पुस्तकालय सरकारी पुस्तकालय होते हैं। इनकी व्यवस्था स्वयं सरकार करती है परन्तु यह साधारण लोगों की पहुंच से बाहर होते हैं, इसलिए जनसाधारण को ऐसे पुस्तकालयों का कोई विशेष लाभ नहीं होता। चौथी प्रकार के पुस्तकालय सार्वजनिक पुस्तकालय होते हैं। इन पुस्तकालयों से सभी लाभ उठाते हैं। इन पुस्तकालयों में व्यक्ति अपनी इच्छानुसार पुस्तक निकलवा कर पढ़ सकता है और एक निश्चित शुल्क देकर सदस्य बन कर कुछ दिनों के लिए पुस्तक घर ले जाकर भी पढ़ सकता है। ऐसे पुस्तकालयों में साथ में वाचनालय का भी प्रबन्ध होता है। बहुत से व्यक्तियों को अखबार पढ़ने की सनक होती है और वे इसी बहाने पुस्तकालय पहुंच जाते हैं। यदि ऐसे वाचनालय-जिनमें पत्र-पत्रिकाएँ, मैगज़ीन आदि न हो तो जनसाधारण पुस्तकालयों से ज्यादा लाभ प्राप्त नहीं कर सकता।
पाँचवे प्रकार के पुस्तकालय चल पुस्तकालय होते हैं। ऐसे पुस्तकालय भारत में न के बराबर हैं परन्तु विदेशों में ऐसे पुस्तकालय अधिक संख्या में होते हैं। इन पस्तकालयों का स्थान गाड़ी में होता है। स्थान स्थान पर ये पुस्तकालय जनता को नवीन साहित्य से परिचित करवाते रहते हैं जिससे देश का प्रत्येक नागरिक राष्ट्रीय साहित्य तथा देश की गतिविधियों से परिचित होता रहता है।
पुस्तकालयों की दृष्टि से इंग्लैंड, अमेरिका और रूस सबसे आगे हैं । इंग्लैंड के ब्रिटिश म्यूजियम में पुस्तकों की संख्या पचास लाख है। पुस्तकों के अतिरिक्त यहां पर 11,000 देशी तथा विदेशी पत्र-पत्रिकाएँ आती हैं। अमेरिका में वाशिंगटन कांग्रेस पुस्तकालय विश्व का सबसे बड़ा पुस्तकालय माना जाता है। इस पुस्तकालय में चार करोड़ से भी अधिक पुस्तकें हैं। भारत में कोलकाता के राष्ट्रीय पुस्तकालय में दस लाख से अधिक पुस्तकें हैं।
कुछ व्यक्तियों की यह बुरी आदत है कि वह पुस्तकालय से पुस्तकें तथा पत्र पत्रिकाएँ लाकर उनमें से अपनी मनपसन्द फोटो पृष्ठ आदि फाड़ कर अपने पास रख लेते हैं और पुस्तकों तथा पत्र पत्रिकाओं को गन्दा भी कर देते हैं। ऐसा करना नागरिकता, पुस्तकालय की सदस्यता और मानवता के विरुद्ध बात है।
पुस्तकालय के अनेक लाभ हैं जिनसे प्रमुख निम्नलिखित हैं :
(क) ज्ञान वृद्धि : पुस्तकालयों से छात्रों तथा अध्यापकवर्ग को ही नहीं परन्तु जन साधारण को भी ज्ञान वृद्धि में सहायता मिलती है। किसी विषय का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के लिए उस पर केवल एक या दो पुस्तकें पढ़ना ही पर्याप्त नहीं हैं परन्तु उसी विषय पर लिखी गई अधिक से अधिक पुस्तकों का अध्ययन करके ही अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। ज्ञान वृद्धि के अतिरिक्त पुस्तकालयों द्वारा ज्ञान का प्रसार भी होता है जिससे मनुष्य कुसंगति, कुवासनाओं और प्रलोभनों आदि से बचा रहता है।
(ख) सत्संग के साधन : पुस्तकालय मनुष्य को सत्संग भी प्रदान करता है। पुस्तकों के अध्ययन से हमें मानसिक शान्ति मिलती है, मन कुछ समय के लिए संसार की चिन्ताओं से मुक्त हो जाता है। कबीर, तुलसीदास और भर्तृहरि के श्रृंगार, नीति और वैराग्य शतक पढ़ कर ऐसा कौन सुहृदय पाठक नहीं होगा जिसके मन में संसार की असारता का आभास नहीं होता होगा। महापुरुषों की जीवनीयाँ हमारे लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं, जिन्हें पढ़कर परम सन्तोष और परम आनन्द का अनुभव तो को भी सफल बना सकते हैं।
(ग) श्रेष्ठ मनोरंजन : ज्ञान के अतिरिक्त पस्तकालय श्रेष्ठ मनोरंजन का भी भंडार है। मनोरंजन के अन्य साधनों रेडियो, टेलीविज़न, सिनेमा आदि पर पैसा खर्च करके आदमी अपना मनोरंजन करता है। जबकि पुस्तकालय में बिना पैसा खर्च करके देश-विदेश के समाचार जान सकता है।
(घ) समाज का कल्याण : व्यक्तिगत लाभ के अतिरिक्त पुस्तकालयों द्वारा समाज का भी व्यापक हित होता है। विभिन्न देशों की पुस्तकों के अध्ययन से विभिन्न देशों की सामाजिक परम्पराओं, मान्यताओं एवं व्यवस्थाओं का भी परिचय प्राप्त होता है। जिससे हम अपने समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियाँ, अव्यवस्था इत्यादि को सुधारने में सफल हो सकते हैं।
पुस्तकालय मानव जीवन और सभ्यता का एक प्रमुख अंग है। भारतीय लोगों को पुस्तकालय की जितनी अधिक से अधिक सुविधाएँ प्राप्त होंगी उतना ही वे अधिक उन्नति करेंगे और उन्नतिशील देशों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकने में समर्थ हो सकेंगे। इसलिए हमें पुस्तकालयों के विकास के कार्य को अपना सामाजिक कर्त्तव्य समझ कर इसमें अपना योगदान डालना चाहिए।