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Hindi Essay on “Kala Dhan : Samasya evm Samadhan” , ”काला धन: समस्या एवं समाधान” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

काला धन: समस्या एवं समाधान

Kala Dhan : Samasya evm Samadhan

                जिस रूपये को हम काले धन के नाम से पुकारते हैं, उसकी आत्मा तथा मन दोनों ही काला है। सरकारी टैक्स से बचने के लिए इसे अत्यन्त गुप्त एवं गोपनीय रखा जाता है और साथ ही विधिवत या लिखित रूप में भी इसका कोई हिसाब-किताब नहीं होता है। देश की अर्थव्यवस्था के लिए काला धन टी.बी. समान रोग है। यदि ठीक से इसका निदान नहीं किया गया तो देश की अर्थव्यवस्था चैपट हो सकती है। देश की प्रगति एवं अर्थव्यवस्था दिनोंदिन अवनति की ओर बढ़ती जाएगी।

                काले धन का हमारे आज के जीवन में और हमारे आर्थिक व्यवहार में कितना बड़ा हाथ है, इसके तरह-तरह के अनुमान लगाए जाते है। एक अर्थशास्त्री के अनुसार हमारा आधा आर्थिक व्यापार काले धन के बल पर ही चलता है। यह बात तो सच है कि हमारे आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक जीवन पर इस काले धन ने बहुत ही अनिष्टकारी प्रभाव डाला है। इसका सबसे भयानक दुष्परिणाम यह है कि इसके कारण सरकार की तमाम नीतियां निष्फल जा रही हैं।

                अगर किसी ने सफेद धन कमा लिया तो उसका एक बड़ा भाग करों के द्वारा छीन लिया जाता है। सफेद धन को परिश्रम से कमाया जाता है। उसका अधिकांश भाग करों और आज के बढ़े हुए मूल्यों के कारण हाथ से निकल जाता है और बचत के नाम पर कुछ नहीं बचता है। इसके विपरीत काला धन आसानी से कमाया जाता है और इसे आसानी से छिपा भी लिया जाता है और उस पर कर चुकाने को प्रश्न ही नहीं उठता। काले धन से अभिप्राय उस धन से है जो सरकारी टैक्स से बचने हेतु बिना लिखा-पढ़ी किए हुए छिपाकर तथा गोपनीय रखा  जाता है। चाहे चल संपत्ति हो अथवा अचल संपत्ति, सबके ऊपर कालेधन की काली छाया मंडरा नही है। काला धन व्यक्ति तक ही सीमित रहता है। इसका उपयोग भी सीमित हो जाता है। इससे देश की अत्यधिक क्षति हो रही है।

                काले धन से एक और अनिष्टकारी प्रभाव पड़ रहा है। समाज का अधिकांश आर्थिक कारोबार सरकार की आंखों से छिपाकर किया जाता है और सरकार को बचे-खुचे संकुचित क्षेत्र पर अपना नियंत्रण रखकर करना पड़ता है। हमारा सामाजिक जीवन भी इस काले धन से खोखला होता जा रहा है। जिन सामाजिक गुणो से हमें पे्ररणा लेनी चाहिए, वे गुण नष्ट होते जा रहे हैं और जिन असामाजिक तŸवों की रोकथाम होनी चाहिए, वे ’दिन दूना राज चैगुना’ करते जा रहे है। आज प्रायः हर व्यवसायी काला धन कमाने और उसे छुपाने में ही व्यस्त रहता है। हमारे देश में प्रत्येक वर्ष लगभग 250 करोड़ रूपये की विदेशी मुद्रा चोरी की जाती है, जिसकी काले धन के अन्तर्गत ही गणना करनी चाहिए। इस कालेधन के कारण धन का संचय सीमित लोगों के हाथों में सिमटा है। ’काले धन’ का संचय केवल धनिक वर्ग तक सीमित रहता है क्योंकि निर्धन का तो कठोर श्रम करने के पश्चात भी बड़ी कठिनाई से पेट भर पाता है। धनिक लोग ’काले धन’ के माध्यम से समाज में महंगाई का घातक विष प्रसारित करते रहते हैं।

                ’काले धन’ के चंगुल से देश को मुक्त कराने के लिए सरकार को युद्ध-स्तर पर प्रयास करना चाहिए। वर्तमान सरकार इस संदर्भ में जो कदम उठा रही है उसकी भी सराहना होनी चाहिए-

–              विवाह के अवसरों पर पानी की तरह धन बहाने पर रोक लगा दी गई है।

–              कृषि पर करारोपण शुरू करने का श्रीगणेश हो चुका है।

–              छापा मारकर फिल्म अभिनेताओं तथा ऊंची आय वाले व्यक्तियों को हिरासत में लेकर ’काल धन’ संग्रह करने से रोका जा रहा है।

–              प्रत्यक्ष कर कानूनों में संशोधन किया जा चुका है और काला धन एवं कर चोरी की दिशा में भी सक्रिय कदम उठा रही है।

–              सरकार ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि यदि कोई व्यक्ति अपनी इच्छा से काले धन की सूचना सरकार को निश्चित अवधि के अन्दर दे देगा तो कुल रकम का 60 प्रतिशत सरकार ग्रहण कर लेगी तथा उसका 40 प्रतिशत भाग उस व्यक्ति को ही सौंप दिया जाएगा, जिसने स्वेच्छा से सूचना दी है।

आज भारत में काले धन का विषैला प्रहार सम्पूर्ण राष्ट्र-रूपी शरीर को विषाक्त बनाता जा रहा है तथा साथ ही सरकार के समक्ष प्रश्न चिह्न एवं चुनौती के रूप में खड़ा है। आर्थिक क्षेत्र में शिथिलता ही ’काले धन’ को प्रोत्साहन और प्रश्रय देने वाली होती है। अतः यह आवश्यक है कि सरकार या तो आर्थिक नियमों को क्रियान्वित करने में जल्दबाजी में कदम न उठाए और यदि कदम उठाए तो उस पर दृढ़ रहे तथा उसकी अवहेलना करने वाले को दण्ड देने के लिए भी पूर्णरूप सजग तथा तत्पर रहे। छापा मारना ही इस समस्या के निराकरण का समुचित निदान नहीं है क्योंकि एक स्थान पर यदि छापा मारा जाता  है तो अन्य ’काला धन’ संग्रही पहले ही सचेत हो जाते हैं और साथ जी आज के युग में विशेषतः भारतवर्ष  में ऐसे मानवों तथा अधिकारियों का पर्याप्त  अभाव है जो देश के प्रति अपने कर्तव्य को ईमानदारी, सत्यता एवं त्याग-भावना से पूरा करते हों। हमारा कर ढांचा इतना सरल तथा आसान होना चाहिए कि करदाता बिना किसी परेशानी के कर्Ÿाव्य-भावना से पूरित होकर समयावधि में अपने कर जमा कर सकें।

                इस ’काले धन’ की समस्या को हल करने के लिए सरकार प्रयत्न कर रही है और इसके साथ ही देशवासियों को यह परम-पावन कर्तव्य है कि इस कलंक को, जो कि भारत मां की गरिमा को कलंकित कर रहा है, इस देश की धरती से मिटाने का प्रयत्न करें, अन्यथा राक्षसी शक्तियों को देश की धरा पर पनपने का पुनः अवसर प्राप्त हो जाएगा। लेकिन संतोष का विषय है कि जैसे रावण के विनाश हेतु राम पृथ्वी पर अवतरित हुए थें, कृष्ण ने कंस को पछाड़ा था उसी तरह से हमारे राष्ट्र नायक राष्ट्र के राक्षस स्वरूप तस्करों तथा काला धन पिशाच की सदा-सदा के लिए कपाल क्रिया करने हेतु सामूहिक रूप से सक्षम कदम उठाएंगे। तभी देश में नया जोश, नई शक्ति, नवीन भावनाएं जाग्रत होंगी, तभी नव भारत का निर्माण होगा।

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