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Hindi Essay on “Jaisa Karam Karoge Wesa Phal Milega” , ”जैसा कर्म करोगे वैसा फल मिलेगा” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

जैसा कर्म करोगे वैसा फल मिलेगा

Jaisa Karam Karoge Wesa Phal Milega

 

जिस प्रकार चन्दन जैसा जड़ भूरुह अपनी शीतलता के स्वभाव को नहीं त्यागता। उसी प्रकार हमें भी अपनी कल्याणकारी महान् प्रवृत्ति का त्याग नहीं करना चाहिए और हमारे प्रति भले ही कोई व्यक्ति दुर्व्यवहार करे; किन्तु हमें उसके साथ भी सद्व्यवहार ही करना चाहिये, यही इस सूक्ति की सीख है। फलतः जो व्यक्ति दूसरों के प्रति दुर्व्यवहार करता है उसके हृदय में उसका दुर्व्यवहार ही शूल बनकर उसे पीड़ा पहुँचाता है। इसके विपरीत सद्व्यवहार करने वाले के हृदय में उसका ही सव्यवहार उसे सुख, आनन्द एवं पुष्प की शाश्वत सुगन्ध प्रदान करके उसके जीवन में यश एवं कीर्ति रूपी सुगन्ध को प्रत्येक दिशा में द्विगुणित कर देता है। श्री तिलक के अनुसार, ‘नम्रता के सम्मुख देवता भी झुक जाते हैं। अतः यदि हमको मानवोचित गुणों को अपनाना है और देवताओं के हृदयों पर भी विजय प्राप्त करनी है, तो इस काव्योक्ति का अर्थ भलीभाँति समझ कर इसे अपने व्यवहार का प्रमुख अंग बनाना चाहिये। दुष्ट व्यक्ति के दुर्व्यवहारों को भी क्षमा कर देना चाहिए; क्योंकि प्रेम वह चुम्बक है जो कुधातु लोहे को भी अपनी ओर बरबस खींच लेता है। पाप से डरो, पापी से नही’ सिद्धान्त के अनुसार हमें अपने प्रति कपट एवं चातुर्य दिखलाने वाले व्यक्ति के प्रति भी निश्छलता का व्यवहार करना चाहिए। इससे हमें स्वतः ही अनेक लाभ हैं।

सर्वप्रथम तो दूसरों को क्षमादान देने वाला व्यक्ति स्वयमेव महान् बन जाता है। ऐसे पुरुष स्वाभाविक रूप से परोपकारी एवं उद्दण्डता रहित होते है। नम्रता दुष्ट से दुष्ट व्यक्ति के हृदय में दया, क्षमा, उदारता, एवं धैर्य की भावना भरकर उसके अभिमान को नष्ट करती है। ऐसे व्यक्ति को अपने बल, धन या विद्यादि किसी का भी अभिमान नहीं होता। जो व्यक्ति अपकारी के प्रति भी उपकार वृत्ति रखते हैं, ऐसे लोगों का समाज में कोई शत्रु नहीं होता है। अतः उनकी आत्मा निःशंक होकर के सर्वदा प्रफुल्लित रहती है और उनकी आत्मा के अन्दर का तेज़ प्रस्फुटित होता हुआ निरन्तर वृद्धि पाता है।

इस सिद्धान्त को मानने वाले व्यक्ति प्रत्येक कार्य को बड़ा ही सोच समझकर करते हैं। वे किसी भी कार्य को बिना विचार नहीं करते हैं। ऐसे मनुष्य अपने जीवन में लाभ ही लाभ प्राप्त करते हैं और संसार में यश एवं कीर्ति के भागी बनते हैं। दूसरों को सर्वदा हर्ष प्रदान करने वाले मनुष्य स्वयमेव प्रसन्न व मस्त रहते हैं तथा आत्म-संतोष का अनुभव करते हैं। मधुर व्यवहार करने वालों का संसार में सभी आदर करते हैं। ऐसे मधुर भाषी व्यक्ति संसार में स्वयं प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं। समाज उन पर गर्व करता है और वे समाज आदर्श के उदाहरण बनते हैं।

इस श्रेष्ठ सिद्धान्त को न केवल चैतन्य; अपितु जड़ प्राणी भी मानते हैं और अपनी प्रवृत्ति के कारण अपने खाद्य पदार्थों का स्वयमेव उपभोग न कर समाज को प्रदान कर व आते हैं। इतना ही नहीं हम अपने पृथ्वी माँ के वक्षस्थल को चीरते हैं. दायक मीठा जल प्रदान करती है और हम इधर से वृक्षों पर पत्थर मारते उधर से फल देते हैं, उनका शरीर ही परमार्थ के लिए बना है।

आज के इस भौतिक युग में जीवन इतना कटुता, द्वेष एवं प्रतिस्पर्धा की भावना छादित है कि मानव, मानव कहलाने का अधिकारी नहीं रह गया है। आजकल काधिक जन चोरी, मक्कारी, झूठ, बेईमानी आदि दुष्ट प्रवृत्तियों से युक्त हैं। आज समाज में वही श्रेष्ठ माना जाता है जो जितना अधिक दूसरों को मूर्ख बनाकर अपना उल्लू सीधा करता है। आज अधिकतर लोगों के हृदयों में यह बात घर कर गयी है कि आज के युग में गांधीवादी भूखों मरते नज़र आ रहे हैं। किसी हद तक देखा जाय तो आज की इस राशनिंग व्यवस्था में सत्य बोलने वालों को चीनी, शक्कर, घी कोई भी खाद्य वस्तु भरपेट नहीं मिल पाती और ऐसे भोले सीधे मानव समाज के लिए स्वयमेव खाद्य बन जाते हैं। फिर भी हमें लाभ तो प्राचीन नीति को अपनाने में है। किसी को काटो न; परन्तु फुकार अवश्य रक्खो जिससे समाज में सुरक्षित रह सको।

इस सिद्धान्त को मानने से नम्रता द्वारा गर्व का समापन होता है और बुद्धि सात्विक होती है। जहाँ बद्धि सात्विक होगी वहाँ आत्मशक्ति का अंकर अवश्य पल्लवित होगा और उसमें एक दिन का पुष्प अवश्य खिलेगा।

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