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Hindi Essay on “Hamari Sanskriti , भारत की परम्पराओं पर हावी होती पाश्चात्य संस्कृति” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

भारत की परम्पराओं पर हावी होती पाश्चात्य संस्कृति

आज समस्त विश्व पाश्चात्य संस्कृति का अनुपालन कर रहा है, ऐसे में भला भारतवासी कहाँ पीछे रहने वाले हैं। अतः भारत में भी पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति का अनुगमन व अनुपालन धड़ल्ले से किया जा रहा है। लोग इसके अनुपालन कर स्वयं को आधुनिक एवं विकसित देषों के समक्ष मानने लगे हैं।

आज की युवा पीढ़ी को क्या कहें, पुरानी पीढ़ी भी पाश्चात्य संस्कृति के अनुपालन से पीछे नहीं हट रही है। आज गली-चैराहे, बाजार व अन्य सार्वजनिक स्थल कहीं भी चले जाएँ, हमें पाश्चात्य रंग में रंगे लोगों की टोलियाँ सहज ही दिख पड़ेंगी। सबसे अधिक परिवर्तन लोगों के वेषभूषा में आया है। धोती-कुर्ता, पायजामा का प्रयोग पुरूषों में और साडि़यों का प्रयोग स्त्रियों में दुर्लभ होता जा रहा है। आज की स्त्रियाँ बड़ों के सामने सिर ढॅंकने की हमारी पुरानी संस्कृति को भूलती जा रही हैं। रह-रह कर उन्हें कभी घर के लोगों तो कभी बारह से इस बात की याद दिलायी जाती है। लड़कियाँ पश्चिमी वेशभूषा के रंग में इस कदर रंग गई हैं कि शालीनता क्या चीज होती है भूल-सी गयी हैं। इन सब के कारण दिन-व-दिन आपराधिक घटनाओं में वृद्धि होने लगी है।

लड़कों की वेशभूषा भी अभद्रता का पर्याय बन चुकी है। पश्चिमी वस्तुओं का सीमित उपयोग हमें आगे ले जा सकता है। मैं यह नहीं कहता कि पाश्चात्य संस्कृति बुरी है, लेकिन इसके सीमित प्रयोग तथा हमारी प्राचीन सभ्यता-संस्कृति के साथ तालमेल ही हमारे लिए सार्थक है। हमें अपनी सभ्यता-संस्कृति को संरक्षण देना चाहिए,क्योंकि यही हमारी सांस्कृतिक विरासत है। पाश्चात्य संस्कृति को स्वयं में इतना ही प्रवेश करने देना चाहिए कि वे हमारे अस्तित्व को ही न मिटा कर रख दें।

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