Hindi Essay on “Hamare Maulik Adhikar aur Kartavya” , ”हमारे मौलिक अधिकार और कर्तव्य” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
हमारे मौलिक अधिकार और कर्तव्य
Hamare Maulik Adhikar aur Kartavya
व्यकित अपना विकास समाज में रहकर ही कर सकता है। समाज से बाहर हम इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते। अब प्रश्न है कि व्यक्ति के विकास के लिए सुविधांए कौन देता है?
उत्तर है-व्यक्ति को ये सुविधांए समाज देता है। समाज किसी सुविधा अथवा शक्ति को स्वीकार करता है। वैसा न करने पर उसे अधिकारों की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। वहीं समाज इन सुविधाओं और शक्तियों की रक्षा नहीं कर सकता। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि उसके पास कोई ‘बाध्यकारी’ सत्ता नहीं होती। इसके लिए तो राज्य की आवश्यकता पड़ती है। राज्य इनकी रक्षा करता है, इन्हें कार्य-रूप देता है।
इन सारी बातों को एक क्रम में समझने पर एक परिभाषा तैयार हो जाती है। अधिकार समाज द्वारा दी गई तथा राज्य रक्षित सुविधांए हैं। इनके आधार पर व्यक्ति अपना विकास अच्छी तरह से कर सकता है। इसके साथ ही वह समाज का भी कल्याण कर सकता है। किसी रोग को पहचानने के उनके लक्षण निश्चित किए गए हैं। व्य ित के अधिकारों को पहचानने के लिए भी लक्षण हैं, जो इस प्रकार है-
- अधिकारेां के लिए सामाजिक स्वीकृति,
- अधिकारों के पीछे कल्याणकारी भावना,
- राज्य द्वारा अधिकारेां की रक्षा,
- अधिकार को समान रूप से सभी व्यक्तियों को देना।
जनवरी 1977 में संविधान में उत्तरदायित्वों की संहिता शामिल की गई। हमारे उत्तदायित्व यानी कर्तव्य इस प्रकार हैं-
– संविधान का पालन करना, इसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना।
– स्वतंत्रता-संघर्ष को प्रेरित करने वाले महान आदर्शों को संजोए रखना, इन्हें अपने जीवन में अपनाना।
– भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को बनाए रखना तथा इसकी रक्षा करना।
-देश की रक्षा करना तथा आह्वान किए जाने पर राष्ट्रीय सेवा करना।
– भारत के सभी लोगों के बीच धार्मिक, भाषाई और क्षेत्रीय अथवा वर्गगत भेदभावों से ऊपर उठकर सदभाव ओर आपसी भाई-चारे की भावना को बढ़ा देना। ऐसी प्रथाओं का त्याग करना, जो स्त्रियों के सम्मन के विरुद्ध हो।
– देश की मिली-जुली संस्कृति का सम्मान और उसका संरक्षण करना।
-प्राकृतिक पर्यावरण-वन, वन्यजीव, नदी, सरोवर, इत्यादि की रक्षा करना और उसको बढ़ावा देना, प्राणिमात्र के प्रति दया भाव रखना।
– वैज्ञानिक मनोवृत्ति, मानवतावाद तथा जिज्ञासा और सुधार की प्रवृत्ति का विकास करना।
-सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा करना, हिंसा से दूर रहना।
-सभी व्यक्तिगत और सामूहिक कार्यक्षेत्रों में सुधार लाने के लगातार प्रयास करना, ताकि राष्ट्र प्रगति एंव उपलब्धियों के उच्च शिखर को छूता जाए।
ये कर्तव्य दस पवित्र संवैधानिक निर्देश हैं। देश के प्रत्येक नागरिक को इनका पालन करना चाहिए। वर्तमान स्थिति में इन उत्तरदायित्वों का निर्वाह करने से ही हमारा राष्ट्र आज की गंभीर चुनौतियों का सामना कर सकता है।