Hindi Essay on “Hamare Jeevan me Vanaspatiyo ka Mahatva” , ”हमारे जीवन में वनस्पतियों का महत्व” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
हमारे जीवन में वनस्पतियों का महत्व
Hamare Jeevan me Vanaspatiyo ka Mahatva
मनुष्य, पशु-पक्षी और यहां तक कि पेड़-पौधे भी हरियाली के आधार पर जीवित रहते हैं। पशु घास और पेड़ों के पत्ते खाते हैं। मनुश्य का आहार अन्न के दाने, शाक, फूल, फल और वनस्पतियां हैं। यदि ये सब खाने को न मिलें तो मानव का जीवित रहना संभव नहीं है। मांस खाने वाले प्राणी भी घास खाने वाले प्राणियों का ही मांस खाते हैं। इस प्रकार समस्त जीवन-चक्र पेड़-पौधों पर ही निर्भर है।
प्रारंभिक काल से ही मनुष्य का पेड़-पौधों के साथ बड़ा पवित्र संबंध रहा है। बरगद, पीपल, नीम, गूलर, आम आदि वृक्ष शुभ अवसरों पर पूजे जाते हैं। देवदार का वृक्ष भगवान शिव और पार्वती का वृक्ष माना जाता है। बेल, तुलसी, दूब, घास आदि पौधों को भारतीय संस्कृति में बहुत ही पवित्र माना गया है। भगवान बुद्ध को वृक्ष के नीचे ही ज्ञान ही प्राप्ति हुई थी। पेड़-पौधों के रूप में अनेक जड़ी-बूटियों का ज्ञान हमारे प्राचीन ऋषियों और आयुर्वेद के ज्ञाताओं को था, जिससे वे मानव के स्वास्थय की रक्षा करते थे।
पेड़-पौधों और वनों की उपयोगिता व महत्ता का ज्ञान मनुष्य को विज्ञान के विकास के साथ हुआ। विश्व के अधिकतर वैज्ञानिक अब एक स्वर में स्वीकार करते हैं कि पेड़-पौधों और वनों पर समस्त मानव-जाति का जीवन टिका हुआ है। ये प्रकृति के सबसे बड़े प्रहरी हैं, जिनके न रहने से संपूर्ण प्राणियों का अस्तित्व संकट में पड़ जाएगा। इसी कारण विश्व के विकासशील देश वन-संपत्ति को बचाने और बढ़ाने के लिए हर तरह से कारगर उपाय कर रहे हैं। जहां पेड़ निरंतर घटते जाते हैं वहां का मौसम असंतुलित हो जाता है। इससे सर्दी, गरमी और वर्षा की कोई निश्चितता नहीं रहती।
प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा वृक्ष दिन भर ऑक्सीजन देते रहते हैं और जीवनधारियों के द्वारा छोड़ी गई कार्बन डाईऑक्साइड को ग्रहण करते हैं। यानी अमृत दोड़ते हैं और विष ग्रहण करते हैं। इसलिए इन्हें ‘नीलकंठ’ की उपमा दी गई है। कारखानों के धुंए और अन्य विषैली गैसों को ये हमारी रक्षा के लिए पचाते रहते हैं।
पेड़-पौधे आकाश में उडऩे वाले बादलों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं और उन्हें बरसने के लिए विवश कर देते हैं। जहां वृक्ष कम होते हैं वहां वर्षा भी कम होती है और वर्षा पर ही हरियाली निर्भर करती है।
पेड़ों की जड़ें जमीन में गहराई तक जाती हैं और वर्षा के प्रवाह में भी मिट्टी को जकड़े रहती हैं। जहां वृक्ष नहीं होते वहां भूमि की ऊपरवाली उपजाऊ परत वर्षा में बहकर नदी-नालों में चली जाती है। पेड़-पौधों के अभाव में ही समतल स्थान का पानी तेजी के साथ बहकर नदी-नालों में चला जाता है, जिससे भूमि पर्याप्त मात्रा में उसका अवशोषण नहीं कर पाती है।
कुओं, तालाबों, बावडिय़ों का पानी तभी अधिक दिनों तक टिकता है जब पेड़ों की जड़ें जमीन की ऊपरी सतह को गीता रखती है। पेड़-पौधों की कमी के कारण इनका जल गहराई में उतर जाता है और कुंए आदि सूख जाते हैं।
वृक्षों के पत्ते, फूल, डंठल टूट-टूटकर जमीन पर गिरते रहते हैं और मिट्टी में मिलकर सड़ जाते हैं तथा खाद बनकर भूमि की उर्वरा-शक्ति को बढ़ाते हैं। इस प्रकार वृक्ष अपने आस-पास उगनेवाले पेड़-पौधों की खाद-पानी देते रहते हैं। पक्षी पेड़ों पर वास करते हैं। पक्षी फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़े-मकोड़ों को खा जाते हैं। वे अपने पंजों से फूलों के पराग इधर-उधर फैलाकर उनमें फल पैदा करते हैं। पक्षी दूर तक उड़ते हैं और अपने डैनों, पंजों एंव बीट द्वारा विभिन्न प्रकार के बीजों को दूर-दूर तक फैला देते हैं।
जंगली पशु पेड़ों की छाया में ही सर्दी, गरमी और बरसात की भयानक मार से राहत पाते हैं। जंगल के सभी जानवर वनों से ही अपना भोजन प्राप्त करते हैं।
नीम के पेड़ हम घर के आसपास अवश्य लगाते हैं, क्योंकि उसकी सभी पत्तियां, जड़, तना, छाल आदि उपयोगी औषध है। औषध के रूप में इनका विशेष महत्व है। दांत साफ करने के लिए नीम की दातुन ही सर्वोत्तम मानी जाती है। नीम की औषध के रूप में व्यापक प्रयोग होता है।
इसी प्रकार हिंदू घरों में तुलसी का पौधा अवश्य पाया जाता है। तुलसी का उपयोग विभिन्न प्रकार के रोगों की चिकित्सा के लिए किया जाता है। पेड़-पौधे से ही हमें हर प्रकार के फूल और स्वास्थ्यवद्र्धक फल मिलते हैं।
सुनने में चाहे अटपटा लगे, किंतु यह सत्य है कि हम भोजन के रूप में घास ही खाते हैं। गेहूं, चावल, जौ, बाजरा, मकई आदि सभी अनाज की घासें ही हैं। संसार में लगभग 10 हजार किस्म की घासें पाई जाती हैं। घासों के कारण मिट्टी का कटाव नहीं होता। ईख, जिससे हम चीनी व गुड़ प्राप्त करते हैं, भी एक प्रकार की घास ही है। वे सभी जानवर, जिनसे हमें दूध, घी, मांस, चमड़ा आदि प्राप्त होते हैं, मुख्य रूप से घास पर निर्भर रहते हैं।
जलाऊ लकड़ी के लिए हम पेड-पौधों पर ही आश्रित रहते हैं। आज ईंधन की समस्या जटिल हो गई हैं। पर्यावरणविदों का मत है कि पर्यावरण-संतुलन के लिए कुल भूभाग के क्षेत्र का 33 प्रतिशत भाग पेड़-पौधों से ढका होना चाहिए। आज इसकी कमी के अभाव में पानी की कमी हो गइ है। फसलों का पूरा उत्पादन नहीं हो पाता। कृषि-विस्तार के साथ हमें पेड़-पौधों के विस्तार करने के लिए आंदोलन चलाना चाहिए।
Very nice paragraph