Hindi Essay on “Govind Ballabh Pant” , ”पंडित गोविंद बल्लभ पंत” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
पंडित गोविंद बल्लभ पंत
Govind Ballabh Pant
पंडित गोविंद बल्लभ पंत का जन्म 10 सितंबर 1887 को अल्मोड़ा जिले के एक छोटे से पर्वतीय गांव खूंट में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री मनोरथ पंत था। वे गढ़वाल जिले में एक राजकीय कर्मचारी थे। श्री मनोरथ पंत की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, इस कारण वे अपने साथ अपना परिवार नहीं रख सकते थे। जब गोविंद मात्र चार वर्ष के थे तब उनकी मां उन्हें लेकर रायबहादुर दत्त जोशी के पास अल्मोड़ा आ गई।
बालक गोविंद की आरंभिक शिक्षा-दीक्षा अल्मोड़ा में ही हुई। वे एक मेधावी छात्र थे। उन्होंने कक्षा आठ और दस की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी। सन 1905 में रैंजे कॉलेज, अल्मोड़ा से इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की। 18 वर्ष की अवस्था में उन्होंने सेंट्रल कॉलेज, इलाहाबाद में प्रवेश कर लिया। उन्हीं दिनों बंगाल, विभाजन के कारण भारतीय क्रांतिकारियों का खून उफान पर था। उस समय गोविंद ‘मैक्डॉनल हिंदू बोर्डिंग हाउस’ में रह रहे थे। वे भी इससे प्रभावित हुए।
फरवरी 1907 में गोपालकृष्ण गोखले का इलाहाबाद में आगमन हुआ था। इस अवसर पर एक आम सभा का आयोजन किया गया। इस सभा की अध्यक्षता पंडित मोतीलाल नेहरू ने की। गोखले का भाषण क्रांतिकारी था। उससे गोविंद बल्लभ पंत बहुत प्रभावित हुए। उनके दिलो-दिमाग में देशभक्ति की भावना घर कर गई।
उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से विधी परीक्षा सर्वोच्च अंकों में उत्तीर्ण की। उन्हें स्वर्णपदक प्रदान किया गया। गोविंद बल्लभ पंत ने नैनीताल में वकालत शुरू कर दी। कुछ ही समय में वे कुमाऊं के प्रसिद्ध अधिवक्ता बन गए।
सन 1926 में जब काकोरी कांड के देशभक्तों पर मुकदमा चलाया गया तब पंडित गोविंद बल्लभ पंत ने बचाव पक्ष के अधिवक्ता के रूप में निर्भीकता और देशप्रेम का परिचय दिया। नवंबर 1926 में वे नैनीताल जिले से उत्तर प्रदेश विधान परिषद के लिए चुने गए, उन्हीं के क्रांतिकारी कदमों के चलते ही 31 मार्च 1928 को ‘साइमन कमीशन’ को इंज्लैंड वापस लौटना पड़ा। 11 अक्तूबर 1928 को ‘साइमन कमीशन’ फिर भारत आया। इस बाद गोविंद बल्लभ ने उसका पुरजोर विरोध किया। छह फी लंबे शरीरवाले पंडित बल्लभ पंता को पुलिस ने लाठियों से बुरी तरह पीटा।
सन 1937 में पंतजी को उत्तर प्रदेश के कांगे्रस विधायक दल का नेता चुना गया। सन 1940 में व्यक्तिगत सत्याग्रह के कारण पंतजी को बंदी बनाया गया। द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति पर उन्हें ‘केंद्रीय संसदीय बोर्ड’ का सदस्य चुना गया। उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए उन्हे पुन: चुन लिया गया। इस प्रकार वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।
दिसंबर 1984 में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें दिल्ली आने का निमंत्रण दिया। वहां उन्हें गृह मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया। इस तरह सन 1954 से 1961 तक वे भारत के गृह मंत्री बने रहे। पंतजी संसद की राजभाषा-समिति के अध्यक्ष भी रहे। सन 1957 में पंतजी को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
7 मार्च, 1961 को पंडित गोविंद बल्लभ पंत का निधन हो गया।