Hindi Essay on “Ek Aadarsh Vidyarthi ke Gun”, “एक आदर्श विद्यार्थी के गुण ” Complete Hindi Essay, Paragraph, Speech for Class 7, 8, 9, 10, 12 Students.
एक आदर्श विद्यार्थी के गुण
Ek Aadarsh Vidyarthi ke Gun
निबंध नंबर :- 01
विद्यार्थी जीवन मानव जीवन का सबसे सुनहरी काल है। एक विद्यार्थी सब प्रकार की शक्तियों को विकसित करने के सक्षम होता है। इसलिए विद्वानों ने मी जीवन को जीवन का आधार माना है। यदि नींव मज़बत होगी तो उस पर भावी जीवन का महल भी सुदृढ़ एवं मजबूत बन सकेगा, नहीं तो आन्धियां और तफान किसी भी क्षण उस महल को धाराशायी कर सकते हैं। इसी प्रकार यदि बा ने अपना विद्यार्थी जीवन परिश्रम तथा अनुशासन एवं गुरुओं की सेवा और माता-पिता की सेवा करके व्यतीत किया है तो निश्चय ही उसका भावी जीवन सुन्दर एवं सुखमय होगा।
एक आर्दश विद्यार्थी के गुण
(i) नम्रता और अनुशासन– विद्यार्थी को अपने गुरुओं से शिक्षा प्राप्त करने के लिए विनम्रता और अनुशासन का पाबन्द होना परमावश्यक है। यदि विद्यार्थी उदण्ड एवं उपद्रवी तथा कटुवाणी होगा तो वह अपने गुरुओं का कृपापात्र नहीं हो सकता। विद्या वही है जो विनय देती है। विनय केवल विद्यार्थी का ही नहीं समस्त मानव समाज का आभूषण है। नम्रता के साथ-साथ उसमें अनुशासन-प्रियता का गुण भी होना चाहिए। शिक्षा के क्षेत्र में अनुशासन का विशेष महत्त्व है। परन्तु आज के विद्यार्थी में अनुशासनहीनता घर करती जा रही है जो कि हम सबके लिए एक चिन्ता का विषय है। अनुशासनहीन होने में आज का विद्यार्थी गौरव अनुभव करता है।
(ii) श्रद्धा और जिज्ञासा–गीता में कहा गया हैश्रद्धावानं लभते ज्ञानम्’ अर्थात् श्रद्धावान व्यक्ति ही ज्ञान प्राप्त कर सकता है। बिना श्रद्धा के विद्यार्थी अपने गुरु से कुछ भी ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता। अच्छे विद्यार्थी में श्रद्धा के साथ-साथ जिज्ञासा का होना भी अति आवश्यक है। जिज्ञासा का अर्थ है-जानने की इच्छा। याद किसी छात्र में जानने की इच्छा ही नहीं है तो वह ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता। इसलिए विद्यार्थी में जानने की इच्छा पैदा करने के लिए अच्छे गुरुओं का होना भी अति आवश्यक है।
(iii) संयम और नियम– विद्यार्थी जीवन संयमित एवं नियमित होना चाहि जो विद्यार्थी जीवन में संयमित एवं नियमित रहते हैं वे जीवन में कभी असफल नहीं होते। संस्कृत साहित्य में विद्यार्थी के पाँच निम्नलिखित लक्ष्ण बताए गए हैं :
काक चेष्टा बकोध्यान श्वान निद्रा तथैव च।
अल्पहारी गृहत्यागी विद्यार्थिन: पंच लक्षणं ।।
अर्थात् कौए की चेष्टा वाला, बंगुले जैसे ध्यान वाला, कुत्ते की निद्रा वाला, थोड़ा खाने वाला और घर से मोह रखने वाला विद्यार्थी ही अच्छे ढंग से विद्याध्ययन कर सकता है। जो विद्यार्थी अपने जीवन में संयम और नियम नहीं बरतते, उनका पढ़ने में मन नहीं लगता। वे सदैव नींद और दुर्कषनों से घिरे रहते हैं।
(iv) श्रम और स्वास्थ्य– विद्यार्थी को परिश्रमशील होना चाहिए। अपने सब सुखों का त्याग करना चाहिए। तभी विद्यार्थी विद्याध्ययन कर सकता है क्योंकि विद्या चाहने वालों को सुख नहीं मिलता और सुख चाहने वालों को विद्या प्राप्त नहीं होती। इसलिए जो विद्यार्थी विद्या चाहते हैं वे सुख छोड़ दें और जो केवल सुख चाहते हैं तो वे विद्या छोड़ दें। विद्यार्थी को चाहिए कि कक्षा में पढ़ाए गए नियमों का भली-भांति मनन् करे, कक्षा में ही नहीं बल्कि घर जाकर भी परिश्रम द्वारा उस पाठ को बार-बार पढ़ना चाहिए। पाठ्यक्रम की पुस्तकों के अतिरिक्त उसे अन्य अच्छी-अच्छी पुस्तकों का भी अध्ययन करना चाहिए। साथ ही उसे अपने स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना चाहिए क्योंकि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है।
(v) समय का सदुपयोग– एक आदर्श विद्यार्थी के लिए यह आवश्यक है कि वह बिना समय नष्य किए अपनी पढ़ाई करे क्योंकि जीवन के प्रत्येक पल में एक छोटा सा जीवन छिपा हुआ है। जो विद्यार्थी अपना समय बर्बाद करता है समय आने पर समय उसको बर्बाद कर देता है।
(vi) शिक्षा के साथ–साथ खेल–पढ़ते-पढ़ते विद्यार्थी का मन थक जाता है तो उसे आराम देने के लिए तथा दिमागी थकावट दूर करने के लिए थोड़े समय के लिए कोई न कोई खेल अवश्य खेल लेना चाहिए। थोड़ी पढ़ाई, थोड़ा खेल इससे स्वास्थ्य ठीक रहता है। यदि आज का विद्यार्थी देश का एक अच्छा नागरिक बनना चाहता है, वे गुण अपनाने होंगे जिससे उसका तथा उसके देश का कल्याण हो सके। उसे अपना माता-पिता तथा गरुओं के प्रति वही सम्बन्ध स्थापित करने होंगे जो आज से दो सौ वर्ष पूर्व रहे थे। कबीर जी कहते हैं गुरु कैसा होना चाहिए और शिष्य कैसा होना चाहिए-
शिष्य तो ऐसा चाहिए गुरु को सब कुछ देय।
गुरु तो ऐसा चाहिए, शिष्य से कुछ न लेय।
यदि ऐसा हो जाए तभी भारतवर्ष का विद्यार्थी आदर्श विद्यार्थी कहलाने का योग्य अधिकारी हो सकता है।
निबंध नंबर :- 02
आदर्श विद्यार्थी
An Ideal Student
एक आदर्श विद्यार्थी, आज्ञाकारी और अनुशासित होता है। वह पढ़ाई, खेल-कूद और सहपाठ्य क्रिया-कलापों में अव्वल रहता है। उसका चरित्र और व्यक्तित्व अन्ना होता है। वह ज्ञान का पिपासु होता है।
वह पढ़ाई में यथार्थवादी और ईमानादार होता है। वह नियमित और समय का पालन करने वाला होता है। वह अपने अध्यापकों और बड़ों का कहना मानता है। वह दूसरे विद्यार्थियों से आगे रहता है। वह व्यक्तित्व के चौमुखी विकास में विश्वास करता है। वह हमेशा साफ सुथरा रहता है। वह अपने अध्यापकों और बड़ों के अच्छे गुणों का अनुसारण करने का प्रयास करता है।
वह पढ़ने के समय पढ़ता है। वह खेलने के समय खेलता है। वह वाद-विवादों और सभ्यचारक कार्यक्रमों में हिस्सा लेता है। वह विद्यालय के समय उसके नियम का पालन करता है। वह अनुशासिक विद्यार्थी होता है। वह लगभग हर क्षेत्र में चाहे वे पढ़ाई, खेल या दूसरी गतिविधि यों हों, सदा छात्रवृत्ति जीतता है।
विद्यालय में वह पुस्तकायल में अपना ज्ञान बढ़ाने के लिए जाता है। वह पुस्तकें और पत्रिकाएँ पढ़ता है। वह कमजोर विद्यार्थियों की सहायता करता है। वह अच्छे स्वभाव का होता है। वह घमण्डी नहीं होता।
वह जब मैदान में खेल रहा होता है तो खेल के नियमों का पालन करता है। उसमें खेल के प्रति उच्च भावना होती है, वह खेल केवल खेलने की भावना से ही खेलता है। वह सहयोग और टीम के प्रति लगाव में विश्वास करता है, खेल कूद उसके रोज़ाना जीवन का एक अंग होता है।
सभी अध्यापक उसे पसन्द करते हैं और उसकी सहायता करते हैं। वह भी अपने सहपाठियों के मुश्किल सवाल हल करने में सहायता करता है। इस गुण के कारण विद्यार्थी उसे अत्यन्त पसन्द करते हैं। वह अपने विद्यालय पर गर्व करता है। विद्यालय भी उस पर गर्व करता है। उसमें आदर्श विद्यार्थी के सभी गुण होते हैं। वह दूसरे विद्यार्थियों के लिए उदाहरण बनता है। वह वास्तव में आदर्श विद्यार्थी होता है। वह देश और समाज का कीमती खज़ाना होता है।