Hindi Essay on “Dussehra evm Vijaydashmi”, “दशहरा एवं विजयदशमी” Complete Hindi Nibandh for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
दशहरा एवं विजयदशमी
Dussehra evm Vijaydashmi
Best 3 Essays on “Dussehra” in Hindi.
निबंध नंबर :- 01
प्रस्तावना : हमारे देश भारत में धर्म की प्रधानता है। इसी कारण यहाँ की हर बात किसी न किसी रूप में धार्मिक भावनाओं से लिप्त रहती है। इन्हीं से उद्गम हुआ है पर्व और त्योहार का। ये जन-जन के हृदय में नवस्फूर्ति और नई चेतना प्रदान करते हैं। अत: इनके मनाने की प्रथा चिर पुरातन है। कहने का तात्पर्य यह है। कि वर्ष का हर दिन भारत में एक पर्व या त्योहार है, जिसे कोई न कोई जाति अपनी प्रथानुसार मनाती रहती है। हिन्दू जाति के भी असंख्य त्योहार हैं; किन्तु उनमें रक्षाबंधन, दशहरा, दीपावाली और होली मुख्य त्योहार हैं। इन्हें सभी वर्ण एवं हिन्दू जाति से सम्बन्धित लोग आनन्द और उत्साह के साथ मनाते हैं। इनमें दशहरा विशेष रूप से क्षत्रिय जाति का त्योहार है।
त्योहार मनाने का समय तथा तरीके: दशहरा हर वर्ष आश्विन शुक्ला दशमी को मनाया जाता है। पुरातन काल में पावस ऋतु में प्रायः भारतवासी पर्यटन के कार्यक्रम को स्थगित कर घर पर ही रहा करते थे। मुनि लोग भी पर्यटन त्यागकर एक ही स्थान पर ‘चतुर्मास’ व्यतीत किया करते थे। क्षत्रिय लोग समरांगण से लौटकर अपने देश में विश्राम किया करते थे और उनका समय शारीरिक गठन तथा खेल-कूद में व्यतीत हुआ करता था। इस त्योहार के आगमन पर अस्त्र-शस्त्रों को तैयार कर युद्ध योजनाओं के निर्माण में लग जाते थे। अत: दशहरा विशेष रूप से क्षत्रियों का त्योहार कहलाता है। ऐसा भी प्रचलित है कि इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने लंका नरेश रावण का वध करके लंका पर विजय प्राप्त की थी ।
रजवाड़ों में दशहरा बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। शस्त्रागारों की सफाई करायी जाती है। शस्त्रों को चमकाकर उनका पूजन किया जाता है। सुसज्जित सेना का प्रदर्शन किया जाता है। संध्या-वेला में लक्ष्य वेध प्रतियोगिता और अश्व दौड़ प्रतियोगिता आदि का आयोजन किया जाता है। दोपहर के समय कहीं-कहीं पर अश्व पूजन किया जाता है।
उत्तर भारत में रामचरितमानस पर आधारित रामलीला का प्रदर्शन किया जाता है। दशहरा के दिन इस लीला में रावण का वध दिखाया जाता है। रावण, कुम्भकरण और मेघनाथ के कागज़ के पुतले बनाकर उनमें हर प्रकार की आतिशबाजी रख दी जाती है। रामलीला की समाप्ति पर इनमें अग्नि प्रज्वलित कर दी जाती है। रंग-बिरंगी चिनगारियाँ उनमें से निकलने लगती हैं और जोर-जोर के धमाके होने लगते हैं। इस प्रकार के वीरोचित प्रदर्शन से जन-जन के हृदय में वीर भाव भर जाते हैं।
बंगाल प्रान्त में इस शुभावसर पर महामहिमा दुर्गा का पूजन किया जाता है। बंगाली इस पूजन को बड़ा ही शुभ मानते हैं। अष्टमी के दिन दुर्गा की पूजा विशेष रूप से की जाती है। नवमी को दुर्गा के समक्ष भैंसे और बकरों की बलि चढ़ायी जाती है। कदाचित् यह प्रथा दुर्गा जी के महिषासुर-वध की यादगार है; किन्तु यह हिंसात्मक प्रथा उचित नहीं। इस प्रथा का अन्त होना ही चाहिए । पुरातन युग में तो अवश्य ही क्षत्रियों की युद्ध तैयारियों के कारण इसका विशेष महत्त्व । था; किन्तु आज के वैज्ञानिक युग में पावस-ऋतु में भी आवागमन में । किसी प्रकार का विघ्न नहीं पड़ता है।
उपयोगिता : इस त्योहार की उपयोगिता कई कारणों से है। रामलीला के प्रदर्शन में बालकों के हृदय में पित्राज्ञापालन, गुरु-भक्ति, भ्रातृ-भावना और शौर्य का संचार हो जाता है। रावणादि के अनाचारों को देखकर असंख्य लोगों के हृदय में दुराचार के प्रति ग्लानि उत्पन्न हो जाती है। इससे धार्मिक विशेषताएँ और पारस्परिक वैमनस्य भी किसी सीमा तक दूर हो जाता है। इन दिनों बड़े-बड़े नगरों में रामलीला की सवारी निकाली जाती है। इससे पूर्वजों के चरित्र, नेत्रों के सम्मुख आ जाते हैं, जिसके स्मरण से जन-साधारण में भी शौर्य की भावनाएँ उत्पन्न हो जाती हैं। और हर्षोल्लास तथा प्रेम-सम्मिलन में यह त्योहार बीत जाता है।
इस शुभ त्योहार पर उत्तर भारत की हिन्दू ललनाएँ घरों की सवेरे से ही अच्छी प्रकार से सफाई करती हैं। बच्चों से लेकर बूढे तक सभी स्नान कर नये-नये वस्त्रों को धारण करते हैं। फिर दशहरे का पूजन किया जाता है तत्पश्चात् बहनें अपने भाइयों के कानों में ‘नौरते’ टाँगती हैं। मिष्ठान्न खाया जाता है। संध्या समय सब लोग रामलीला देखने जाते हैं।
उपसंहार : दशहरा हमारी भारतीय परम्परा, गौरव और संस्कृति का प्रत्यक्षीकरण करता है। यह राष्ट्र के उत्थान में बहुत ही अधिक सहायक है। अनुमानत: हर जाति अपने जातीय पर्वो से ही जीवन में आशा एवं स्फूर्ति का संचार करती है। आमोद-प्रमोद अथवा मनोरंजन की दृष्टि से भी ये पर्व महत्त्वहीन नहीं हैं। इसी कारण हर मानव को अपने पर्वो पर पूरा-पूरा गर्व है। वह जाति-कल्याण के इस उत्तम साधन को बड़ी धूमधाम से मनाता है।
निबंध नंबर :- 02
दशहरा पर्व
भारत त्यौहारों तथा पर्वों का देश है। इन पर्वो का संबंध धार्मिक घटनाओं और व्यक्तियों से होता है। लोग इन्हें धूम-धाम से मनाते हैं। दशहरा हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है। यह पूरे भारत में मनाया जाता है। इसे बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इसे भगवान राम की रावन पर हुई विजय की याद में मनाया जाता है। बंगाल में इसका आयोजन दुर्गा पूजा के रूप में किया जाता है। नौं दिन तक दुर्गा पूजा चलती है और दसवें दिन माँ दुर्गा की मूर्तियों को विसर्जित कर दिया जाता है।
देश के बाकी हिस्सों में भी यह त्यौहार लगातार दस दिन तक मनाया जाता है। प्रत्येक शहर में रामलीला का मंचन होता है जिसमें भगवान राम के जीवन को दर्शाया जाता है। इसका आयोजन किसी खुले मैदान में होता है। रामलीला का मंचन शाम के समय शुरू होता है और देर रात तक चलता है। लोग बड़ी संख्या में इसे देखने के लिए एकत्रित होते हैं।
दसवें और अंतिम दिन रावण, मेघनाद एवं कुंभकरण के बड़े-बड़े पुतले एक मैदान में खड़े किए जाते हैं। इनमें भारी मात्रा में पटाखे आदि भरे होते हैं। शाम के समय लोग वहां भारी संख्या में एकत्रित होते हैं। उस मैदान के आस-पास खाने-पीने की चीजों के स्टाल आदि लगते हैं। दुकानें खूब सजाई जाती हैं। शाम के समय भगवान राम और रावण की सेनाओं के मध्य युद्ध का प्रदर्शन किया जाता है। इस युद्ध में अंततः रावण, मेघनाद और कुंभकरण का वध कर दिया जाता है।
इसी के समय भगवान राम उन पुतलों को अग्नि भेंट करते हैं। पुतलों के अंदर भरे गए पटाखे जबरदस्त आवाज़ के साथ फटने लगते हैं। बच्चे यह देख कर काफी प्रसन्न होते हैं। इसी के साथ लोग अपने घरों की तरफ चल देते हैं। रास्ते में वे अपने बच्चों को खिलौने और मिठाइयां आदि लेकर देते हैं। मिठाइयों की दुकानों के आगे खरीददारों की भारी भीड़ होती है। इस प्रकार दस दिन का यह पर्व समाप्त हो जाता है।
निबंध नंबर :- 03
विजयदशमी –दशहरा
Vijay Dashami – Dussehra
पर्व या त्योहार ही किसी जाति की जीवन्तता और उत्साह को प्रकट करते हैं। हमारे विशाल और महान् देश में अनेक त्योहार मनाये जाते हैं, जिनमें से विजयदशमी या दशहरे का मुख्य स्थान है। आश्विन महीने की शुक्ल पक्ष की दशमी के दिन यह त्योहार मनाया जाता है। इस दिन राम ने रावण पर विजय पाई थी, इसलिए इसे विजयदशमी का नाम दिया जाता है। दस सिरों वाले रावण के विनाश के कारण इसे दशहरा कहा जाता है। इस त्योहार का मुख्य आधार तो यही गाथा है। कुछ लोग अन्य मत भी रखते हैं। त्योहारों के मूल में सामाजिक भाव ढूँढने वालों का विचार है कि यह खेतीबाडी का उत्सव है। मनुष्य ने कृषि का आरम्भ इसी दिन किया था, उसी की स्मृति के रूप में अब भी पहले नवरात्र को घरों में जौ बोए जाते हैं। कुछ लोगों के मतानुसार इस त्यौहार का सम्बन्ध शक्ति पूजा से है। इस दिन शक्ति दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था। मुख्यतया यह दिन राम की विजय से ही सम्बन्धित माना जाता है।
भारत के विभिन्न भागों में इसे अलग-अलग रूप से मनाया जाता है। बंगाल और उड़ीसा के लोग इसे दुर्गापूजा के रूप में मानते हैं। नेपाल में महिषासुर के प्रतीक के रूप में भैंसे की बलि दी जाती है। राजस्थान में इसे क्षत्रियों का त्योहार मानते हुए शस्त्रपूजा की जाती है। कुछ जगह सीमोल्लंघन की भी प्रथा है अर्थात एक गांव के लोग दूसरे गांव की सीमा में प्रवेश करते हैं जैसे किसी शत्रु राज्य पर अधिकार करने जा रहे हों।
पहले नवरात्र से ही रामलीला खेली जाने लगती है। इसमें राम के जीवन को नाटक के रूप में दिखलाया जाता है। कई जगह रामलीला न खेल कर रामायण के मुख्य दृश्यों की झांकियां निकाली जाती हैं। विजयदशमी के दिन रावण, कुंभकरण, मेघनाथ आदि के बांस और कागज़ के बने हुए बड़े-बड़े पुतले किसी खुले मैदान में खड़े कर दिए जाते हैं । इन खोखले पुतलों के भीतर बहुत सी आतिशबाजी भर दी जाती हैं। रावण के पुतले के दस सिरों के ऊपर गधे का भी सिर लगाया जाता है, जो यह सूचित करता है कि वह सुशिक्षित होते हुए भी बुद्धिविहीन था।
तीसरे पहर मैदान के चारों ओर भीड जुटने लगती है। नगरों में दशहरा देखने के लिए आसपास के गावों से भी लोग आते हैं। हलवाइयों, खोमचे वालों और खिलौने बेचने वालों की भी बहुत सी संख्या होती है। बच्चे खिलौनों और मिठाईयों के लिए ललकते हैं। चार बजे के लगभग रथ पर राम, लक्ष्मण और सीता जी की झांकी आती है। रथ के पीछे हनुमान जी और उनकी वानरसेना होती है। श्रद्धालु लोग रामचन्द्र जी की पूजा करते हैं और उन्हें प्रणाम करते हैं। सूर्यास्त से कुछ समय पहले राम, लक्ष्मण उन पुतलों को बाण मार कर आग लगा देते हैं । तरह तरह की आतिशबाजी छूटने लगती हैं। पटाखों की आवाज़ से तान बहरे होने लगते हैं। आन की आन में वे पुतले जल उठते हैं। कई लोग रावण के पुतले के बांस उठाने भागते हैं क्योंकि वे समझते हैं कि उन्हें घर में रखना शुभ होता है। पुतलों के जलते ही मेला बिखरने लगता है। साइकलों, रिक्शों और तांगों की तो बात छोडे, भीड के कारण पैदल चलना भी कठिन हो जाता है।
पंजाब में इस दिन ‘ईख’ चूसनी शुभ माना जाता है, अत: मेले से लौटते समय हर व्यक्ति ईख खरीद कर घर लाता है। उत्तर भारत में कुल्लू का दशहरा बहुत रंगीन और प्रसिद्ध माना जाता है।
इस त्योहार के पीछे मुख्य भावना यह है कि अन्त में बुराई की हार और भलाई की विजय होती है। असत्य कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो उसे सत्य के हाथों मिटना ही पड़ता है। यदि इस आदर्श को याद रखा जाए तो विजयदशमी भारतीयों के लिए सचमुच विजय का उत्सव सिद्ध हो सकती है।