Hindi Essay on “dussehra, Durga Pooja , दशहरा (दुर्गा पुजा)”Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
दशहरा (दुर्गा पुजा)
दशहरा को दुर्गा पूजा के नाम से भी जाना जाता है। यह त्योहार वर्षा ऋतु के अंत में संपूर्ण भारत वर्ष में मनाया जाता है। नवरात्र में मूर्ति पूजा में पश्चिम बंगाल का कोई सानी नहीं है जबकि गुजरात में खेला जाने वाला डांडिया बेजोड़ है। पूरे दस दिनों तक त्योहार की धूम रहती है।
लोग भक्ति में रमे रहते हैं। मां दुर्गा की विशेष आराधनाएं देखने को मिलती हैं।
दशमी के दिन त्योहार की समाप्ति होती है। इस दिन को विजयादशमी कहते हैं। बुराई पर अच्छाई के प्रतीक रावण का पुतला इस दिन समूचे देश में जलाया जाता है।
इस दिन भगवान राम ने राक्षस रावण का वध कर माता सीता को उसकी कैद से छुड़ाया था। और सारा समाज भयमुक्त हुआ था। रावण को मारने से पूर्व राम ने दुर्गा की आराधना की थी। मां दुर्गा ने उनकी पूजा से प्रसन्न होकर उन्हें विजय का वरदान दिया था। रावण दहन आज भी बहुत धूमधाम से किया जाता है। इसके साथ ही आतिशबाजियां छोड़ी जाती हैं। दुर्गा की मूर्ति की स्थापना कर पूजा करने वाले भक्त मूर्ति-विसर्जन का कार्यक्रम भी गाजे-बाजे के साथ करते हैं।
भक्तगण दशहरे में मां दुर्गा की पूजा करते हैं। कुछ लोग व्रत एवं उपवास करते हैं। पूजा की समाप्ति पर पुरोहितों को दान-दक्षिणा देकर संतुष्ट किया जाता है। कई स्थानों पर मेले लगते हैं। रामलीला का आयोजन भी किया जाता है।
दशहरा अथवा विजयादशमी राम की विजय के रूप में मनाया जाए अथवा दुर्गा पूजा के रूप में, दोनों ही रूपों में यह शक्ति पूजा का पर्व है, शस्त्र पूजन की तिथि है। हर्ष, उल्लास तथा विजय का पर्व है। देश के कोने-कोने में यह विभिन्न रूपों से मनाया जाता है, बल्कि यह उतने ही जोश और उल्लास से दूसरे देशों में भी मनाया जाता जहां प्रवासी भारतीय रहते हैं।
मैसूर का दशहरा : मैसूर का दशहरा देशभर में विख्यात है। मैसूर में दशहरे के समय पूरे शहर की गलियों को रोशनी से सज्जित किया जाता है और हाथियों का श्रृंगार कर पूरे शहर में एक भव्य जुलूस निकाला जाता है।
इस समय प्रसिद्ध मैसूर महल को दीपमालिकाओं से दुल्हन की तरह सजाया जाता है। इसके साथ शहर में लोग टार्च लाइट के संग नृत्य और संगीत की शोभा यात्रा का आनंद लेते हैं। द्रविड़ प्रदेशों में रावण-दहन का आयोजन नहीं किया जाता है।
खैर, जो भी हो दषहरा प्रतिवर्श अपने साथ हर्श और उल्लास का जो वातावरण लाता है, उसकी खुमारी उतरने में महीनों लग जाते हैं। लोग बेसब्री से इस पर्व का इंतजार करते हैं। बंगाल, बिहार, झाररखण्ड और उड़ीसा जैसे प्रांतों में तो वर्श भर अपने कर्इ कार्य इस पर्व के आगमन के समय ही करते हैं। अत: हमें इसका स्वागत पूरे मन से करना चाहिए।
विजय दशमी (दशहरा)
दशहरा हिन्दुओ के प्रसिद्ध त्यौहारों में से एक है | दशहरा शब्द दश+हरा से मिलकर बना है | मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने इस दिन रावण के दस सिरों का वध न्याय, धर्म और सत्य की रक्षा के लिए किया था | इसलिए यह दिन दशहरा कहलाया और इसी याद में यह त्यौहार प्रतिवर्ष आशिवन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को विषय दशमी के रूप में मनाया जाता है | यह अधर्म पर धर्म की तथा अन्याय पर न्याय की विजय का प्रतीक है |
भारतवर्ष में दशहरे के दस दिन पूर्व से (नवरात्रों में ) श्री राम की लीला का अदभुत प्रदर्शन होता है | इस दिन श्रीराम तथा रावण के युद्ध का प्रदर्शन होता है जिसमे रावण मारा जाता है तथा श्रीराम की विजय होती है | अन्त में रावण , कुम्भकरण व् मेघनाद के आतिशबाजी युत्क पुतलो को जलाया जाता है | इस दिन सारे भारत में अनेक विशाल मेलो का आयोजन होता है | बच्चे, बूढ़े स्त्री पुरुष सभी नए वस्त्र धारण करके इन मेलो का आनन्द लेने जाते है |
बंगाल में लोग इस दिन देवी दुर्गा की पूजा करते है | वहा नवरात्रों में नौ दिन तक महिषासुर मर्दिनी कालिका का पूजन होता है | विजय दशमी के दिन माँ दुर्गा की प्रतिमा को नदी अथवा समुद्र में विसर्जित कर दिया जाता है | अनेक भक्त-जन नौ दिनों तक व्रत रखते है |
यह दिन अनेक कार्यो के लिए शुभ माना जाता रहा है | प्राचीन काल में यातायात के साधन सुलभ नही होते थे | अंत : व्यापारी , यात्री , साधु तथा सैनिक अपनी यात्रा इस दिन को शुभ मान कर प्रारम्भ करते थे | मराठे तथा राजपूत इसी दिन शत्रु पर चढाई करते थे | योद्धा अपने शस्त्रास्त्रो एव घोड़ो की पूजा करते थे | हिन्दू स्त्रिया इस दिन घर की सफाई आदि करके दशहरे के पूजन के बाद अपने भाइयो के कानो में ‘नौरते’ टांगती है जो भाई –बहिन में स्नेह का प्रतीक है | इसी दिन भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था जिस कारण इस पर्व का महत्त्व और भी अधिक बढ़ जाता है |
दशहरा भारतीय समाज में एक नई स्फूर्ति , नया जीवन तथा नए उत्साह का सचार करता है | इस पर्व से हमे यही शिक्षा मिलती है कि सर्वदा सत्य की विजन तथा असत्य की पराजय होती है | अर्थात अन्याय व् अत्याचार को सहन करना नहान दुर्बलता, नपुंसकता तथा पाप है | यह पर्व सदा से राष्ट्र के उत्थान तथा समाज की प्रगति में सहायक रहा है |