Hindi Essay on “Computer evm Uska Mahatva ”, “कम्प्यूटर एवम् उसका महत्व” Complete Essay, Paragraph, Speech for Class 7, 8, 9, 10, 12 Students.
कम्प्यूटर एवम् उसका महत्व
Computer evm Uska Mahatva
गत कुछ वर्षों से देश भर में कम्प्यूटरों की चर्चा जोर-शोर से हो रही है। देश को कम्प्यूटरमय करने के प्रयास किए जा रहे हैं। कई उद्योग-धन्धों और संस्थानों में कम्प्यूटर का प्रयोग होने लगा है। कम्प्यूटरों के उन्मुक्त आयात के लिए देश के द्वार खोल दिए गए हैं। हमारे अधिकारी और मंत्री सुपर कम्प्यूटरों के लिए अमेरिका से जापान तक दौड़ लगा रहे हैं। कितने ही सरकारी प्रतिष्ठानों में कम्प्यूटर लगाने की भारी दौड़ लगी है।
हमारे सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक जीवन पर छा जाने वाला कम्प्यूटर आखिर है क्या ? उस विषय में जिज्ञासा स्वाभाविक है। वस्तुतः कम्प्यूटर ऐसे यान्त्रिक मस्तिष्कों का रूपात्मक और समान्वयात्मक योग तथा गुणात्मक घनत्व है, जो तीव्रतम गति से न्यूनतम समय में त्रटिहीन गणना कर सके।
मानव सदा से ही अपनी गणितीय गणनाओं के लिए गणनायंत्रों का प्रयोग करता रहा है। इस कार्य के लिए प्रयोग की जाने वाली प्राचीन मशीनों में एबेकस पहली मशीन थी। आज तो अनेक प्रकार के जटिल गणना-यंत्र बना लिए गए हैं जो बहुत जटिल गणनाओं का परिकलन अपने आप कर लेते हैं। इन सब में सर्वाधिक तीव्र, शुद्ध एवं सबसे उपयोगी गणना करने वाला यंत्र कम्प्यूटर है।
चार्ल्स बेबज़ पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने 19वीं शताब्दी के आरम्भ में पहला कम्प्यूटर बनाया। यह कम्प्यूटर लम्बी गणनाएँ कर सकता था और उनके परिणामों को मुद्रित कर देता था।
कम्प्यूटर स्वयं ही गणनाएं करके जटिल से जटिल समस्याओं के हल मिनटों और सैकिण्डों में निकाल सकता है। उसी समस्या को हल करने के लिए मनुष्य को कई दिन, यहां तक की महीनों लग सकते हैं। कम्प्यूटर से की जाने वाली गणनाओं के लिए एक विशेष भाषा में निर्देश तैयार किए जाते हैं। इन निर्देशों और सूचनाओं को कम्प्यूटर का ‘प्रोग्राम’ कहा जाता है। यदि कम्प्यूटर से प्राप्त होने वाला प्रोग्राम अशद्ध है तो इसका तात्पर्य यह है कि उनके ‘प्रोग्राम’ में कहीं न कहीं त्रुटि रह गई है। इसमें यंत्र का कोई दोष नहीं है। कम्प्यूटर का केंद्रीय मस्तिष्क अपने सारे काम दो अंगों या संकेतों की गणितीय भाषा में ही करता है। अक्षरों या शब्दों को भी दो संकेतों की इस मशीनी भाषा में बदला जा सकता है। इस तरह अब शब्दों या पाठों को, यहां तक कि पूरी पुस्तकों और फाइलों को भी कम्प्यूटर के स्मृति-भंडार से संचित सामग्री को कभी भी इच्छानुसार छापा जा सकता है।
आज जीवन के कितने ही क्षेत्रों में कम्प्यूटर का व्यापक प्रयोग हो रहा है। बड़े-बड़े व्यवसाय, तकनीकी संस्थान और महत्वपूर्ण प्रतिष्ठान कम्प्यूटर के यंत्रमस्तिष्क का लाभ प्राप्त कर रहे हैं। अब तो कम्प्यूटर केवल कार्यालय के वातानुकूलित कक्षों तक ही सीमित नहीं रह गया है अपितु वह हज़ारों किलोमीटर दूर रखे हुए कम्प्यूटर के साथ बातचीत कर सकता है, उसमें सूचनाएँ प्राप्त कर सकता है और उसे सूचनाएँ भेज सकता है। भारतीय बैंकों में खातों के संचालन और हिसाबकिताब रखने के लिए कम्प्यूटर का प्रयोग हो रहा है। यूरोप के कई देशों में तो ऐसी व्यवस्थाएँ अस्तित्व में आ गई हैं कि घर के निजी कम्प्यूटर को बैंकों के कम्प्यूटर के साथ जोड़ कर लेन-देन का व्यवहार किया जा सकता है।
समाचार-पत्र और पुस्तकों के प्रकाशन के क्षेत्र में कम्प्यूटर विशेष योग दे रहे हैं। अब तो कम्प्यूटर से संचालित फोटो कम्पोज़िग मशीन के माध्यम से छपने वाली सामग्री को टंकिग किया जा सकता है। टंकिग होने वाले मैटर को कम्प्यूटर के पर्दे पर देखा जा सकता है और उसमें संशोधन भी किया जा सकता है। कम्प्यूटर में संचित होने के बाद सारी सामग्री एक छोटी चुम्बकीय डिस्क पर अंकित हो जाती है। फोटो-कम्पोजिंग मशीन इस डिस्क के अंकीय संकेतों को अक्षरीय संकेतों में बदल देती है ताकि उनका मुद्रण हो सके। उस दिन की कल्पना आसानी से की जा सकती है. जबकि समाचार-पत्रों के संपादकीय विभाग में एक ओर कम्प्यूटर में मैटर भरा जाएगा तो दूसरी ओर इलैक्ट्रानिक प्रिंटर तेज रफ्तार से मुद्रित सामग्री तैयारी कर देंगे।
यह प्रश्न भी बहुत स्वाभाविक है कि क्या कम्प्यूटर और मानव मस्तिष्क की तुलना की जा सकती है और इसमें कौन श्रेष्ठ है, क्योंकि कम्प्यूटर के मस्तिष्क का निर्माण भी मानव-बुद्धि ने किया है। यह बात नितांत सत्य है किन्तु वह मानवीय संवेदनाओं, भावनाओं और चिन्तन से रहित मात्र यंत्रपुरुष है। कम्प्यूटर केवल वही काम कर सकता है, जिसके लिए उसे निवेशित किया गया हो। वह कोई निर्णय स्वयं नहीं ले सकता और न ही कोई नवीन बात सोच सकता है।
भारत जिस गति से कम्प्यूटर युग की ओर बढ़ रहा है, उसे देखकर ऐसा लगता है कि हम अपने आपको सम्पूर्ण रूप से कम्प्यूटर के हवाले करने के लिए विवश किए जा रहे हैं। कम्प्यूटर हमें बोलना, व्यवहार करना, अपने जीवन को जीना, मित्रों से मिलना और उनके विषय में ज्ञान प्राप्त करना आदि सब कुछ सिखाएगा। इसका अभिप्राय यह हुआ कि हम अपने प्रत्येक निर्णय को कम्प्यूटर से पूछने पर विवश हो जाएंगे। यह सही है कि कम्प्यूटर में जो कुछ भी एकत्रित किया है, वह आज के असाधारण बुद्धिजीवियों की देन है, लेकिन हम यह प्रश्न भी पूछने के लिए विवश हैं कि जो बुद्धि या जो स्मरण-शक्ति कम्प्यूटरों को दी गई है, उससे बाहर हमारा कोई अस्तित्व नहीं ? हो भी, तो क्या यह बात अपने आप में कुछ कम दुखदायक नहीं है कि हम अपने प्रत्येक भावी कदम को कम्प्यूटर के माध्यम से प्रमाणित करना चाहें और उसके परिणामस्वरूप अपने आपको निरन्तर खोते रहें ?