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Hindi Essay on “Cinema ka Samaj par Prabhav”, “सिनेमा का समाज पर प्रभाव” Complete Essay, Paragraph, Speech for Class 7, 8, 9, 10, 12 Students.

सिनेमा का समाज पर प्रभाव

Cinema ka Samaj par Prabhav

 

सिनेमा विज्ञान की देन है। कैमरे और बिजली के आविष्कार ने इसके जन्म में सहायता दी। 1860 के लगभग इस दिशा में प्रयत्न आरम्भ हो गए थे। सर्वप्रथम मूक चलचित्र आरम्भ हुए। छोटी-छोटी फिल्में होती थी जिन में संवाद नहीं होते थे, लिखे हुए टाइटल होते थे। 1917 में पहली बोलने वाली फिल्म बनी। अभी भी इस क्षेत्र में नए-नए प्रयोग चल रहे हैं । रंगदार और सिनेमास्कोप तो अब आम हो चुके हैं। ‘थ्री डाइमैंशनल’ फिल्मों का प्रयोग भी हुआ है जो पूरी तरह से सफल नहीं हो पाया।

पुराने समय में नाटक, नाच-गाना, बाज़ीगरों और मदारियों के तमाशे जनता के मनोरंजन का मुख्य साधन थे। आज ये सब पीछे रह गए हैं और सिनेमा मनोरंजन का मुख्य साधन बन चुका है। छोटे-छोटे नगरों में भी सिनेमा हाल हैं । गांवों में भी चलती-फिरती टाकियां पहुंच जाती हैं । बड़े-बड़े शहरों में तो अनेक एयरकंडीशड सिनेमा अर्थात् मल्टीप्लैक्स हाल होते हैं। हर बच्चा, बूढ़ा, जवान सिनेमा में रूचि रखता है। आज जीवन का कोई क्षेत्र ऐसा नहीं, जहां चलचित्रों का प्रभाव न पड़ा हो। रहन-सहन, खान-पान, वेश-भूषा, साज-सज्जा, सब कुछ सिनमा से प्रभावित हैं।

रेडियो से प्रसारित हो रहे अन्य कार्यक्रमों को शायद ही युवक पसन्द करते हों। वे विविध भारती, एफ. एम. अथवा कोई ऐसा स्टेशन ढूंढते हैं, जहां से फिल्म संगीत और फिल्मी कहानी का प्रसारण हो रहा हो। फिल्मी गानों की लोकप्रियता को देख कर मंदिरों और जागरणों में उन्हीं की तर्ज पर लिखे गए धार्मिक गीत या भेंटें गाई जाती हैं। पुराने समय में सामाजिक तथा पारिवारिक उत्सवों पर लोक गीत गाने का रिवाज था। सिनेमा के प्रभाव ने उस रिवाज को भी मिटा दिया है। अब मुंडन हो या सगाई, यज्ञोपवीत हो या विवाह, वहां फिल्मी गाने ही सुनाई देते हैं। सामाजिक सभा या राजनीतिक जलसा आरम्भ करने से पूर्व भीड़ इकट्ठी करने के लिए फिल्मी गाने बजाए जाते हैं। जीता की संगीत सम्बन्धी रुचि को सिनेमा ने प्रभावित किया है।

फिल्म जगत के अभिनेता और अभिनेत्रियां आज युवक और युवतियों के लिए आदर्श बन गये हैं। आज यदि कोई देवी-देवता साकार हो कर आ जाए तो निश्चय ही उसका वह स्वागत-सत्कार नहीं होगा जो अभिनेताओं और अभिनेत्रियों का होगा। युवकों को पता चल जाए सही कि आज इस नगर में मुम्बईया फिल्म की कोई अभिनेत्री आने वाली है तो भीड़ का अनुमान लगाना असंभव हो जाएगा। यदि टिकट लगी हो तो कुछ ही देर में सब टिकटें समाप्त हो जाएगी।

फिल्म में किसी अभिनेता या अभिनेत्री ने यदि कोई नए डिज़ाइन और नए काट का कपड़ा पहन लिया तो रातों-रात वह फैशन चल पड़ता है। मिलें धड़ाधड़ वैसा कपड़ा बनाने लगती हैं और दर्जी भी नए कपड़े सीने में लग जाते हैं। किसी अभिनेता ने बाल बढ़ा लिए, दाढ़ी-मूंछ रख ली तो सभी युवक उस के पीछे विश्वास पात्र चेलों की तरह चल पड़ते हैं। किसी फिल्म सुन्दरी ने माथे पर लट डाल ली, एक ओर के बाल कुछ कटवा लिए, बाल छोटे करवा लिए या खुले छोड़े लिए तो नगरों की किशोरियां कुछ दिनों में उसी रंग ढंग को अपनाए दिखाए देंगी। कहने का भाव यह है कि रहन-सहन और वेश-भूषा पर सिनेमा का प्रभाव पड़ता है।

आजकल प्रायः प्रेम की भावुकतापूर्ण कहानियों पर फिल्में बनती हैं और हमारे युवक-युवतियों के मन पर उनकी गहरी छाप पडती है। वे पारिवारिक जीवन की जगह वैसा ही अनिश्चित और निठल्ला जीवन चाहते हैं। फिल्मों के संवाद उनके लिए शास्त्रों के वाक्य बन जाते हैं। आजकल बनने वाले फिल्मों में तस्कर, व्यापार, हिंसा और नग्नता का प्रदर्शन है। अनेक प्रकार के अपराध दिखाये जाते हैं। इन सब बुराईयों का युवा मन पर प्रभाव पड़ता है। ऐसी खबरें आई हैं जहां अपराधियों ने स्वयं स्वीकार किया है कि उन्होंने अमुक फिल्म से सीख कर यह अपराध किया था। इसका अभिप्राय यह नहीं कि सिनेमा बुरा है और बुरा प्रभाव ही डालता है। वस्ततुः दृश्य होने के कारण चित्रों और शब्दों का मिला जुला प्रभाव हर बात को मन मस्तिष्क तक पहंचा जाता है। अच्छी फिल्में अच्छे आदर्शों की शिक्षा भी दे सकती हैं।

सिनेमा के इस प्रभाव तथा वर्तमान दशा को देखते हए अब भारतीय सैंसर बोर्ड ने कुछ कठोर नियम बनाए हैं। नग्नता, मद्यपान, निरर्थक, आलिंगन, चुम्बन, क्रूरतापूर्ण हत्या तथा अन्य अनेक अपराधों आदि को फिल्म में दिखाना वर्जित कर दिया है। हां, यदि कहानी की आवश्यकता के अनुसार ऐसे प्रसंग जरूरी हों तो उन्हें शिष्टता और संयम में दिखाया जाए।

सिनेमा जगत के लोगों को व्यवसाय के साथ-साथ जनता और कला का ध्यान भी रखना चाहिए। फिल्म को हिट बनाने के लिए कई तरह के टोटकों का उपयोग किया जाता है जो कुरुचि को बढ़ाते हैं। लेखकों और निर्देशकों को इस सम्बन्ध में सचेत रहना चाहिए। समाजवादी देशों में सिनेमा द्वारा जनता को शिक्षित बनाने का काम लिया गया. वही ध्येय हमारे सामने भी होना चाहिए। उस अवस्था में सिनेमा समाज पर स्वस्थ प्रभाव डालेगा और हितकारी सिद्ध होगा।

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