Home » Languages » Hindi (Sr. Secondary) » Hindi Essay on “Chuachut, Jativad – Ek Manaviya Apradh ” , ”छुआछूत, जातिवाद – एक मानवीय अपराध” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

Hindi Essay on “Chuachut, Jativad – Ek Manaviya Apradh ” , ”छुआछूत, जातिवाद – एक मानवीय अपराध” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

छुआछूत, जातिवाद – एक मानवीय अपराध

Chuachut, Jativad – Ek Manaviya Apradh 

 

प्रस्तावनाः भारत में छुआछूत को सामाजिक अपराध कहा जाता है। पर वास्तव में यदि इसे मानवीय अपराध का नाम दिया जाये तो कुछ गलत न होगा। ईश्वर ने या प्रकृति ने इस संसार की रचना की है। उसने सबको बराबर बनाया। प्रत्येक को सूर्य की रोशनी दी, हवा दी, जीवन निर्वाह के लिए खान-पान के साधन दिये। जलवायु के कारण इन्सान का रंग, कद, तथा शारीरिक बनावट में भिन्नता हुई-कोई ऊंचे कुल में जन्मा, कोई गरीब और मेहनतकश, दस्तकार घर-परिवार मंे। ऊंचे और नीचे कुल के, गरीब और अमीर घर मंे, काला और गोरा रंग लेकर जन्म लेने का इसमंे अपना तो कोई दोष नहीं। फिर इन्सान या इन्सान के साथ भेदभाव क्यों?

                भारत में छुआछूत विरोधी प्रयास- भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने छुआछूत को रोकने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किये। इन्सान द्वारा इन्सान के भेद से अर्थात् अंग्रेजों की रंगभेद नीति से आन्दोलित होकर उन्होनें अंग्रेजों को भारत की धरती से भगाने का संकल्प लिया। इसके लिए उन्होनें अंग्रेजों के विरूद्व सत्याग्रह आन्दोलन चलाया। अपने प्रयास में सफल होकर देश को आजादी दिलायी।

                ऐसे गांधी के देश में, मनुष्य द्वारा मनुष्य के भेद, अर्थात् छुआछूत को यदि अपराध नहीं कहा जाये तो और क्या कहा जाएगा। यदि मनुष्य-मनुष्य में ही भेद होता रहता तो देश की एकता टुकड़ों में विभाजित हो जाती। ऐसे में कोई भी देश हम पर अपना अधिपत्य स्थापित करना चाहता। हमें एक बार फिर गुलामी की जंजीरों में कैद होना पड़ जाता।

                इस बात को ध्यान में रखकर हमारे देश के अनेक राजनेताओं, समाजसुधारकों एवं महापुरूषों ने छुआछूत प्रथा को समाप्त करने के लिए अपने हर सम्भव प्रयास किये। जिसमें उन्हें सफलता भी प्राप्त हुई। कानून द्वारा छुआछूत को एक सामाजिक अपराध माना गया। इसके लिए कठोर बनाया गया जो यह प्रस्तावित करता है कि जो व्यक्ति इस प्रकार के अपराध करेगा तथा उन्हें फेलायेगा, उसे कानूनी दण्ड दिया जायेगा। कानून बन जाने से इस पर बहुुत कुछ अमल हुआ। व्यावहारिक रूप से छुआछूत प्रथा समाज से मिट गयी।

                बावजूद इसके आज भी हमारे देश में कुछ नगर, गांवो, एंव बस्ती ऐसी है जिसमें छुआछूत समस्या आज भी मौजूद है। गांव के ऊंची जाति के लोग नीची जाति वालों को अपने बराबर में बैठने नहीं देते। अब आवश्यकता इस बात की है इसे पूरे देश में लोगों के दिलों और मन से निकाला जायें। इस दिशा में प्रयास आवश्यक हैं। आगे के प्रयासों पर विचार करने से पूर्व यह देखना जरूरी है कि कुप्रथा को मिटाने में अब तक किस ढंग से कार्य किये गये है। इसके बाद ही इस बात पर विचार किया जा सकता है कि प्रयासों को किस दिशा में आगे बढ़ाया जाना चाहिये।

                छुआछूत को रोकने के लिये किये गये प्रयास- छुआछूत जैसी भयानक समस्या को रोकने के लिए समय-समय पर अनेक महापुरूषों द्वारा हर सम्भव प्रयास किये गये। महात्मा गांधी ने छुआछूत से होने वाले दुष्परिणामों को गहराई से समझा। उन्हें प्रतीत हुआ कि यदि इस समस्या को जड़ से खत्म न किया गया तो यह हमारे देश की एकता और अखण्डता को अपने जाल में फेलाकर समाप्त कर देगी।

                                उन्होने दलित जाति वालों को उच्च जाति के साथ खड़ा कर इनमें असमानता की भावना को खत्म किया। उनके मन मंे असम विश्वास पैदा कर उच्च जाति के साथ खान-पान का एक स्वस्थ एंव प्रभावी माहौल बनाया।

                (1)          हरिजनों को मन्दिरों मंे प्रवेश की अनुमति- भारत के स्वतंत्र की लहर उठने से पहले उच्चजाति वाले नीची जाति एंव पछिड़ी जातियों को मन्दिरों मे प्रवेश करने की अनुमति नहीं देते थे। हरिजन भगवान के दर्शन के लिए मन्दिर में जाने को तरसतें थे। उन्हें मन्दिर में जाने से रोक दिया जाता था। उन पर अत्याचार किये जाते थे।

                स्वतंत्रता के बाद स्थिति बदला, आज हरिजनों को भी उच्च जाति जैसा दर्जा प्राप्त है। वे आज मन्दिर में जाकर भगवान की पूजा अर्चना कर सकते हैं। इसका उन्हें काश्ती अधिकार प्राप्त है।

                (2) संविधान निर्माताआंे द्वारा किये गये प्रयास- छुआछूत को रोकने के लिए देश के संविधान निर्माताआंे द्वारा महत्वपूर्ण प्रयास किये गये हैं। देश में ऐसे कानून की व्यवस्था की गयी जिसमें छुआछूत को एक सामाजिक अपराध माना गया। संविधान में कहा गया है कि जो व्यक्ति इस प्रकार की समस्या उत्पन्न करेगा उसे दण्ड दिया जायेगा।

                आज दलित वर्गों को भी ऊंची पोस्टों पर नौकरियां दी जा रही है। दलित बच्चों को स्कूल से मुफ्त किताब, कापी एंव छात्रवृति प्रदान की जा रही है। जो देश के लिए समानता, स्वतंत्रता के अधिकार मंे आता है।

                (3) खाने-पीने में समानता का प्रयास- महापुरूषों द्वारा रंगभेद, जाति धर्म को समाप्त करने के लिए खाने-पीने में समानता का प्रयास किया गया। सभी वर्गांे को एक साथ खाने-पीने, बैठने एवं कहीं भी आने-जाने की पूरी छूट दी गयी। कोई भी दलित वर्ग का व्यक्ति, हरिजन व निर्धन बड़े-बड़े होटलों एवं रेस्टोरेन्ट में जाकर खा-पी सकता है। उसमें किसी भी प्रकार का भेद नहीं किया जायेगा।

                (4) स्कूलों मंे प्रवेश की अनुमति- आजादी से पहले देश में उच्च जातियों के बच्चों के पढ़ने के स्कूल एवं काॅलेज अलग थे, नीचे एंव दलित जातियों के अलग। परन्तु आज सभी काॅलेज समान है। सभी स्कूल एवं काॅलेजों में उच्च एवं दलित, काले एवं मोटे प्रकार के बच्चों को समान रूप से शिक्षा प्रदान की जाती है।

                                आज हरिजनों को स्कूल एवं काॅलेजों में प्रवेश सरलता से मिल जाता है तथा उनकी फीस भी माफ कर दी जाती है। उन्हें विद्यालय से मुफ्त किताबें एवं काॅपियों की सुविधाएं उपलब्ध करायी जाती है।

                                मनोरंजन करने में समानता का प्रयास- कानून द्वारा सभी वर्गों को एक साथ मनोरंजन करने का अधिकार दिया गया है। आज कोई भी हरिजन किसी भी उच्च जाति के बराबर में बैठकर सिनेमा हाॅलांे में फिल्म देख सकता है।

                                कोई भी पिछड़ी एवं दलित जाति का व्यक्ति किसी के भी साथ खेलकूद प्रतियोगिता में भाग ले सकता है। कोई भी काला व्यक्ति किसी गोरे व्यक्ति के साथ, स्वीमिंग पूल या नदी-तालाबों में नहा सकता है। इस प्रकार के परिवेश ने भी छुआछूत की समस्या को समाप्त करने मंे योगदान दिया।

                छुआछूत की समस्या को रोकने के उपाय- इस समस्या को रोकने के लिए सरकार एंव समाज को निम्नलिखित उपाय करने चाहिये।

                (1) सामूहिक सहभोज के कार्यक्रम- समाज को जागरूक होकर विभिन्न शहरों में प्रतिवर्ष सामूहिक सहभोज के कार्यक्रम प्रारम्भ करने चाहिये। इन कार्यक्रमों में उच्च जाति वाले, प्रतिष्ठित तथा गणमान व्यक्तियों के साथ दलित एवं पिछड़ी जाति वाले व्यक्तियों को भी आतन्त्रित करना चाहिये।

                (2) हरिजन बस्तियों मंे धार्मिक एवं सांसकारिक कार्यक्रमांे का आयोजन- समाज के जागरूक लोगों को बड़े-बड़े साधु एवं सन्तों को हरिजन बस्ती में बुलाकर धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन करवाना चाहिये। इस प्रकार क कार्यक्रम मनुष्य की आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक चेतना को जगाने मे कारगर सिद्व हो सकता है।

                (3) हरिजनों के विकास के लिए प्रयत्न- सरकार द्वारा हरिजनों के विकास के लिए हर सम्भव प्रयास किये जाने चाहिये। हरिजन बस्तियों में स्कूल काॅलेज, मन्दिरों, प्रशिक्षिण केन्द्रोें, सांस्कृतिक कार्यक्रमों के केन्द्रों, सभी प्रकार की वस्तुओं ले मार्केट स्ािापित करने चाहिये।

                उपसंहार- यदि हम दिशा में पूरी तरह इस समस्या के बारे में विचार करके उपरोक्त उपाय करें तो वह दिन दूर नहीं कि इस मानवीय कोढ़ से छुटकारा पाया जा सकता है।

About

The main objective of this website is to provide quality study material to all students (from 1st to 12th class of any board) irrespective of their background as our motto is “Education for Everyone”. It is also a very good platform for teachers who want to share their valuable knowledge.

commentscomments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *