Hindi Essay on “Bhartiya Nari”, “भारतीय नारी” Complete Essay, Paragraph, Speech for Class 7, 8, 9, 10, 12 Students.
भारतीय नारी
Bhartiya Nari
सृष्टि की पूर्णता पुरुष और नारी से है। भारतीय साहित्य और संस्कृति में पुरुष और प्रकृति को संसार का संचालन माना गया है। नारी ईश्वर की शक्ति है। नारी और नर के योग से सृष्टि परिपूर्ण होती है। नारी बहु–गुण सम्पन्न है इसलिए महान्, विचारक, कवि उसके सामने नत–मस्तक हए हैं। नारी में दया, माया, , त्याग भरा पड़ा है। उसके हृदय की गहराई और मन की ऊँचाई का पता लगाना बहुत कठिन है।
भारतीय नारी में सहनशीलता, शीतलता, कोमलता, प्रचण्डता, कठोरता विद्यमान शिवा, शक्ति, चण्डी, दुर्गा क्या नहीं है। विविध रूपों वाली होने के कारण ही सभी उसका आदर करते हैं। नारी का स्वरूप कितना महान् है–गुप्त जी कहते हैं–
नारी जीवन हाय, तुम्हारी यही कहानी
आंचल में है दूध, आँखों में पानी
प्रसाद जी कहते हैं–
नारी! तुम केवल श्रद्धा हो।
सत्युग में नारी पुरुष के समान पूज्य थी। वह पुरुष के साथ मिल कर या हवन किया करती थी। सावित्री, अनुसूया जैसी विदुषियों के नाम आज भी कर सम्मान से लिए जाते हैं। त्रेता युग में सीता, उर्मिला के आदर्शमय जीवन की आ भी सभी सराहना करते हैं। द्वापर युग की गान्धारी, कुन्ती, द्रौपदी, के संर्घषमय । जीवन से सभी प्रेरणा लेते हैं। आधुनिक युग की नारी शिक्षा ग्रहण करके अपनी प्रतिभा को विकसित कर रही है। पुरुष के साथ कन्धे से कन्धा मिला कर चल रही है।
मनुस्मृति में लिखा हैं : जहां नारी का सम्मान होता है. वहां देवता निवास करते हैं। नारी का पहला रूप पत्नी का है। पत्नी के रूप में वह अपने पति का, उसके माता–पिता का घर–परिवार, जीवन संवारती है। नारी का दूसरा रूप मां का है। मातृ–शक्ति अति महान् है। वह बच्चों के पालन–पोषण से लेकर उसकी शिक्षादीक्षा उसके भविष्य तक को संवार कर उसकी जीवन नैया पार लगा देती है। नारी एक मां है, बहन है, जो भाई की संकट में रक्षा करने वाली है। एक लाडली बेटी है, इसके बिना घर सूना–सूना रहता है। कन्या को लक्ष्मी और देवी के रूप में पूजा जाता है। वह दुर्गा बन दुष्टों का दलन करने वाली है। राक्षसों के अत्याचारों को सहकर। वह अपने मान–सम्मान को बचाती आई है। मगलों और अंग्रेजों के शासनकाल में उस पर प्रतिबन्ध भी लगे, फिर भी अवसर मिलते ही वह रानी झांसी की तरह गर्जी, जीजाबाई की तरह कर्मठ बनी और शिवा जी जैसे पुत्र जन्मे। राजस्थान की नारीयां तो “जौहर” रचाया करती थीं।
नारी का एक महान् गुण है–उसकी प्रेरणा शक्ति। हर सफल पुरुष के पीछे एक नारी की प्रेरणा शक्ति रही है। वह पुरुष के लिए अमृत की धारा है जो संघर्ष में उसके ताप को दूर करती है। जैसे मनु के लिए नारी श्रद्धा थी।
दया मानवता के गुण हैं, परन्तु नारी का यह आभूषण है, क्योंकि वह ममतामयी होती है। वह अपने भाई, माता–पिता बच्चों के प्रति यह गुण दिखाती है। नारी की वाणी में मधुरता है, कोमलता है। उसके मन, वचन, कर्म में एकता है। उसके अगाध प्रेम–विश्वास की छाया में दुष्ट भी सज्जन बन जाते हैं। वह समाज का कल्याण करने के लिए छली–कपटी भी बन जाती है।
उसकी आत्मत्याग की भावना उसे सभी गुणों से ऊपर उठा देती है। वह शुद्ध हृदय से प्रेम करके अपनों के लिए सर्वस्व न्यौछावर कर देती है। इसी कारण वह पूजनीय है, अभिनन्दनीय है। वह सारी सृष्टि को अपने में आत्म सात किए हुए है। वह भविष्य की निर्माता है– भावी समाज की पालिका है, इसलिए इसके पुत्रपुत्रियां भी महान् है। पाश्चात्य नारी कभी भी भारतीय नारी की तुलना में नही ठहर सकती।
आज की नारी पर शिक्षा का प्रभाव अधिक हो रहा है। बड़े दुख की बात है कि वह अपने विकास के लिए पश्चिम की ओर देखने लगी है। इसलिए उसमें कुछ चारित्रिक पतन भी हआ है। वह अपनी मर्यादाओं से बाहर आना चाहती है। वह बाहरी चमक–दमक से प्रभावित हो रही है। फिर भी अपने मूल गुणों से वंचित नहीं हुई है। वह आज भी आदर्श माता, आदर्श पुत्री, आदर्श पत्नी है। वह पुरुष की प्रेरणा–शक्ति है। वह पुरुष के साथ हर क्षेत्र में उतर पड़ी है और अपनी प्रतिभा का परिचय देकर अपने भारतीय–गणों का परिचय दे रही है।