Hindi Essay on “Bharatiya Nari” , ”भारतीय नारी” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
भारतीय नारी
Bharatiya Nari
निबंध नंबर :- 01
नारी तुम केवल श्रद्धा हो,
विश्वास रजत नग पगतल में।
पीयूष स्त्रोत सी बहा करो,
जीवन के सुंदर समतल में।।
– जयशंकर प्रसाद
प्राचीन युग से ही हमारे समाज में नारी का विशेष स्थान रहा है। हमारे पौराणिक ग्रंथों में नारी को पूज्यनीय एंव देवीतुल्य माना गया है। हमारी धारणा रही है कि देव शक्तियाँ वहीं पर निवास करती हैं जहाँ पर समस्त नारी जाति को प्रतिष्ठा व सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। इन प्राचीन ग्रंथों का उक्त कथन आज भी उतनी ही महत्ता रखता है जितनी कि हमारी महत्ता प्राचीन काल में थी। कोई भी परिवार, समाज तथा राष्ट्र तब तक सच्चे अर्थों में प्रगति की ओर अग्रसर नहीं हो सकता जब तक कोई नारी के प्रति भेदभाव, निरादर अथवा हीनीभाव का त्याग नहीं करता है।
प्राचीन काल में भारतीय नारी को विशिष्ट सम्मान व पूज्यनीय दृष्टि से देखा जाता था। सीता, सती-सावित्री, अनसूया, गायत्री आदि अगणित भारतीय नारियों ने अपना विशिष्ट स्थान सिद्ध किया है। तत्कालीन समाज में किसी भी विशिष्ट कार्य के संपादन में नारी की उपस्थिति महत्वपूर्ण समझी जाती थी।
कालातर में देश में हुए अनेक आक्रमणों के पश्चात् भारतीय नारी की दशा में भी परिवर्तन आने लगे। नारी की स्वंय की विशिष्टता एंव उसका समाज में स्थान हीन होता चला गया। अंग्रेजी शासनकाल के आते-जाते भारतीय नारी की दशा अत्यंत चिंतनीय हो गई। उसे अबला की संज्ञा दी जाने लगी तथा दिन-प्रतिदिन उसे उपेक्षा एंव तिरस्कार का सामना करना पड़ा। राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त ने अपने काल में बड़े ही संवदेनशील भावों से नारी की स्थिति को व्यक्त किया है –
अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी।
आँचल में है दूध और आँखों में पानी।।
विदेशी आक्रमण व उनके अत्याचारों के अतिरिक्त भारतीय समाज में आई कुरीतियाँ, व्यभिचार तथा हमारी परंपरागत रूढ़िवादिता ने भी भारतीय नारी को दीन-हीन कमजोर बनाने में अह्म भूमिका अदा की। नारी के अधिकारों का हनन करते हुए उसे पुरूष का आश्रित बना दिया गया। दहेज, बाल-विवाह व सती प्रथा आदि इन्हीं कुरीतियों की देन है। पुरूष ने स्वयंका वर्चस्व बनाए रखने कि लिए ग्रंथों व व्याखानों के माध्यम से नारी को अनुगामिनी घोषित कर दिया।
अंग्रेजी शासनकाल में भी रानी लक्ष्मीबाई, चांद बीबी आदि नारियाँ अपवाद ही थी जिन्होनें अपनी सभी परंपराओं आदि से ऊपर उठकर इतिहास के पन्नों पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। स्वतंत्रता संग्राम में भी भारतीय नारियों के योगदान की अनदेखी नहीं की जा सकती है।
आज का युग परिवर्तन का युग है। भारतीय नारी की दशा में भी अभूतपूर्ण परिवर्तन देखा जा सकता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् अनेक समाज सुधारकों, समाजसेवकों तथा हमारी सरकारों ने नारी उत्थान की ओर विशेष ध्यान दिया हैं तथा समाज व राष्ट्र के सभी वर्गों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है। विज्ञान व तकनीकी सहित लगभग सभी क्षेत्रों में उसने अपनी उपयोगिता सिद्ध की है। उसने समाज व राष्ट्र को यह सिद्ध कर दिखाया है कि शक्ति अथवा क्षमता की दृष्टि से वह पुरूषों से किसी भी भाँति कम नहीं है। निस्संदेह नारी की वर्तमान दशा में निरंतर सुधार राष्ट्र की प्रगति का मापदंड है। वह दिन दूर नहीं जब नर-नारी, सभी के सम्मिलित प्रयास फलीभूत होंगे और हमारा देश विश्व के अन्य अग्रणी देशों में से एक होगा।
निबंध नंबर :- 012
भारतीय नारी
कवि जयशंकर प्रसाद के अनुसार-
नारी तुम केवल श्रद्धा हो, जग के सुंदर आँगन में
पीयूष स्रोत तो बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में।।
किसी भी देश की सभ्यता, संस्कृति एवं उन्नति का मूल्यांकन वहाँ के नारी वर्ग की स्थिति को देखकर आसानी से लगाया जा सकता है। जो राष्ट्र स्त्री को केवल भोजन पकाने एवं बच्चे पैदा करने का साधन समझते हैं, वे दुर्भाग्य से अभी सभ्यता, संस्कृति या शिष्टता की दौड़ में बहुत पीछे हैं। प्राचीन युग में स्त्रियाँ पुरुषों के साथ प्रत्येक सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों में समान रूप से भाग लेने की अधिकारिणी थीं। प्राचीन युग में नारी का बड़ा सम्मान था। द्वापर युग आने पर अविश्वास उत्पन्न हुआ। अनेक बंधनों में नारी बाँध दी गई। मध्यकाल में नारी को गुलाम और भोग्या बनाकर पतन की दिशा की ओर मोड़ दिया गया। सह-धर्मिणी के स्थान पर वह केवल दासी एवं वासना पूर्ति का साधन मात्र बन गई। आधुनिक काल में नारी ने हर क्षेत्र में विकास किया है। भारतीय संविधान में भी नर-नारी को समान अधिकार दिए गए। शिक्षित महिला वर्ग ने स्वयं पदों का त्याग किया। आज 21वीं सदी में नारी, पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर समाज के निर्माण में जुटी हुई है। संघर्षों में शक्ति-रूपा बनकर पुरुष को सहयोग दे रही है और उसकी प्रेरक शक्ति बनी हुई है। नारी नर की सबसे बड़ी शक्ति है। नारी ही समाज की संचालिका है।