Hindi Essay on “Bharat me Police ki Bhumika” , ”भारत में पुलिस की भूमिका ” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
भारत में पुलिस की भूमिका
Bharat me Police ki Bhumika
प्रस्तावना- किसी भी देश की सुरक्षा पुलिस वालों पर ही निर्भर करती है। पुलिस व्यवस्था सभी प्रकार की शासन प्रणालियों में महत्वपूर्ण योगदान देती है। देश में शान्ति बनाये रखने के लिए पुलिस का अस्तित्व/आवश्यक है।
पुलिस की आवश्यकता- किसी भी देश या राज्य में पुलिस व्यवस्था के द्वारा लूटपाट, डकैती, हत्या, विद्रोह एवं हिंसक आन्दोलन जैसी अप्रिय घटनाओं पर काबू पाया जाता है, क्योंकि उनके पास सरकार वर्दी और कानूनी अधिकार प्राप्त होते हैं।
परन्तु आज के जमाने में व्यक्ति हमारे देश की पुलिस व्यवस्था कई मामलों में अत्यन्त खराब है। वे जनता में भेदभाव करते हैं। पुलिस व्यवस्था आज बड़े-बड़े व्यापारियों, राजनेताओं, अभिनेताओं आदि की ही सुरक्षा करती रहती है।
आज पुलिस की नौकरी करने वालों में 70% पुलिस वाले भ्रष्टाचारी हैं। वे कोई भी काम करने से पहले रिश्वत लेते हैं, जिससे आम जनता में उनकी छवि रक्षक के बजाय भक्षक रूप में बन रही है।
पुलिस के कर्तव्य- पुलिस के देश के प्रति कर्तव्य बहुत महत्वपूर्ण है, जो इस प्रकार हैं-
(1) जहां एक ओर सेना देश की बाहा सीमाओं की रक्षा करती है वहीं दूसरी ओर पुलिस आन्तरिक समस्याओं के समाधान में योगदान करती है। चोरी, डकैती, लूटपात, हिंसात्मक, आन्दोलन, साम्प्रदायिक दंगो एंव अन्यायों को रोकने का दायित्व उनके कंधों पर होता है।
(2) भ्रष्टाचारी चरित्र को समाप्त करने का दायित्व पुलिस निभाती है।
(3) पुलिस स्टेशन में प्राथमिकी रिपोर्ट लिखने का दायित्व पुलिस का नहीं होता है। लिखि गयी रिपोर्ट के आधार पर ही पीड़ित जनता को न्याय मिलता है।
प्रजातान्त्रिक तथा अधिनायकवादी शासप प्रणाली में पुलिस व्यवहार में अन्तर- अधिनायकवादी शासन प्रणाली में पुलिस अधिनायकवादी को मजबूद करती है।
प्रजातान्त्रिक राज्य में पुलिस व्यवस्था स्वयं प्रजातन्त्र का अंग होने के कारण प्रजातान्त्रिक मूल्यों के संवद्वर्न में सहायक होती है।
प्रजातान्त्रिक राज्य में पुलिस की भूमिका- हमारे प्रजातान्त्रिक देश की पुलिस से शासक वर्ग तथा विरोधी पक्ष में विभेद कर न्याय देने की अपेक्षा नहीं की जाती। अन्याय चाहे शासक पक्ष के द्वारा किया गया हो या विरोधी पक्ष द्वारा, पुलिस को उसका कानून के रास्ते से प्रतिकार करना चाहिये। प्रान्त, भाषा तथा जाति के भेद से पुलिस को मुक्त रहना होता है। अलगाव वादियों से निपटने के लिए उनके प्रति पुलिस को सख्त-से-सख्त व्यवहार करना होता है क्योंकि इन तत्वों के मन में पुलिस का आंतक बैठना राष्ट्र के लिए लाभदायक है।
प्रजातान्त्रिक राज्य पद्वति में पुलिस से अपेक्षायें- प्रजातान्त्रिक राज्य पद्वति में पुलिस से निम्नलिखित अपेक्षाएं हैं जो इस प्रकार हैं-
(1) प्रजातान्त्रिक शासन लोकतन्त्रीय ढ़ाचें के अनुरूप व्यवहार करे न कि पुलिस राज्य के एक अंग के रूप में।
(2) पुलिस भ्रष्टाचार उन्मूलन में सरकार की सहायता करें तथा स्वयं भ्रष्टाचार का शिकार न बने। वह केवल कानून के राज्य के प्रस्थापन में महत्वपूर्ण भूमिकस अदा करे न कि आंतक के राज्य में।
(3) बढ़ती हुई अराजकता, काला धंधा, स्मगलिंग तथा रिश्वतखोरी जैसे धन्धों को नियन्त्रित करे।
उपसंहार- इन सब बातों के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि यदि सरकार द्वारा पुलिस का दुरूपयोग न हो और वह अपने विवके के आधार पर स्वेच्छा से निर्णय ले तो वह प्रजातान्त्रिक जीवन पद्वति का अंग बनकर उसे अत्यन्त लाभकारी कर सकती है। उसे इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिये कि जनता हमेशा अपमान तथा अत्याचार सहकर चुप नहीं बैठ सकती। एक न एक दिन जनता को गुस्सा अवश्य आयेगा और वह पुलिस व्यवस्था के विरूद्व जनविद्रोह भी कर सकती है। जनविद्रोह को दबाने की शक्ति किसी में नही होती। यह शक्ति केवल जनता में ही होती है। वह अन्याय एवं अत्याचार को बहुत दिनों तक नहीं दबा सकती। अतः पुलिस को अपनी इस प्रकार की मानसिकता को छोड़ना पड़ेगा तभी हमारे देश में पुलिस व्यवस्था बेहतर बन सकती है। पुलिस की छवि जनता के बीच रक्षक की होनी चाहिये ना कि भक्षक की। पुलिस भ्रष्टाचारियों, अपराधियों से समाज और जनता की रक्षा करती है। यदि वह भ्रष्टाचार करने लगे और अपराधियों से मिल जाये तो देश, समाज और जनता का होने वाला नुकसान अपरणीय होगा।
आशा है कि आने वाले समय में पुलिस अपनी साफ-सुथरी छवि के कारण जनता की हितैषी साबित होगी।
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