Hindi Essay on “Barsat Ke Din Ka Anubhav”, “बरसात के दिन का अनुभव” Complete Essay, Paragraph, Speech for Class 7, 8, 9, 10, 12 Students.
बरसात के दिन का अनुभव
Barsat Ke Din Ka Anubhav
भारत में जुलाई और अगस्त के महीने में बरसात होती है। इन दिनों आकाश में बादल छाए रहते हैं और किसी भी समय ये बादल इक्टठे होकर बरसने शुरू हो जाते हैं और फिर सड़कों पर पानी इक्टठा हो जाता है। कई बार वर्षा सारा दिन होती रहती है या फिर कई दिन लगातार । इस तरह की वर्षा का दिन बहुत ही सुहावना होता है।
एक रात ज्यादा गर्मी के कारण मुझे सारी रात नींद नहीं आई । हम सभी ऊपर छत पर सो रहे थे। प्रातःकाल अचानक बूंदा-बांदी शूरू हो गई और हमारी नींद खुल गई। सभी पडोसी भी जाग गए थे। सभी लोग अपने बिस्तर इक्टठे करके नीचे अपने कमरों में जा रहे थे। बरसात के साथ-साथ बिजली भी चमकने लगी और बिजली के चमकने से ज़ोर-ज़ोर से गर्जने की आवाज़ भी आने लगी। नीचे आकर हम सभी अपने-अपने कमरों में जाकर सो गए। इतने में बिजली भी चली गई.चारों तरफ़ अन्धेरा हो गया और मच्छर भी आने शुरू हो गए जिसमें हमें नींद नहीं आई । अभी मुझे नींद आई ही थी कि मेरी माता जी ने मुझे स्कूल जाने के लिए उठा दिया । मैंने बाहर जाकर देखा तो अभी भी बरसात हो रही थी। मैं तैयार होकर स्कूल की तरफ चला ।
रास्ते में लोग अपनी-अपनी साईकल,स्कूटर आदि पर सवार होकर अपनी दुकान अथवा दफ़तर की ओर जा रहे थे। कई व्यक्तियों ने छतरियां भी पकडी थी, कईयों ने रन-कोट’ पहने हुए थे और कुछ तो भीगते हुए जा रहे थे। इतने में मैं स्कूल पहुंच गया, कई विद्यार्थी भीगे हुए थे। जब स्कूल लगने की घण्टी बजी तो क्लास में पहुंचने पर पता चला कि काफी विद्यार्थी आज स्कूल नहीं आए । इतने में वर्षा और भी तेज़ हो गई।
दोपहर को बरसात थम गई और हमें स्कूल से छट्टी हो गई। जल्दी-जल्दी स्कूल से बाहर निकलते समय मेरा एक मित्र राजेश फिसल गया। उसे चोट तो अधिक नहीं लगी मगर उसके कपड़े कीचड से खराब हो गए। रास्ते में पानी भी काफी था और एक जगह तो मेरे घुटने तक पानी आ गया। फिर एक बस हमारे पास से गुज़री जिसने अपने पहिये से मेरे ऊपर पानी फेंका और मैं बरी तरह भीग गया। साईकल सवार पानी में पैडल मार रहे थे। बहुत से लोग अपनी छत पर चढ़े हुए थे। थोड़ी दूर जाने पर हमने एक दीवार गिरी हुई देखी जिसकी ईटें और मिट्टी ने सड़क को रोका हुआ था।
स्कूल से घर आते समय फिर से बूंदा-बांदी शुरू हो गई और घर पहुंचते पहंचते फिर से वर्षा तेज़ हो गई। घर पहुंच कर मैंने अपने कपड़ों को बदला । मेरी माता जी ने मुझे गर्मा-गर्म चाय पिलाई । दोपहर से शुरू हुई बरसात रात तक न रूकी और पानी गलियों तक आ गया। अन्त रात को मेरे सो जाने के बाद वर्षा कब बन्द हुई मुझे पता नहीं चला ।