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Hindi Essay on “Bal Shramik Samasya” , ”बल श्रमिक समस्या” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

बल श्रमिक समस्या

Bal Shramik Samasya 

निबंध नंबर – 01

भारत एक विकासशील देश है। स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद भारत में आम जनता की गरीबी हटाने के लिए अनेक वृहद एवं सीमित योजनाएं समय-समय पर बनती र्गईं। फिर भी गरीबी की मान्य सीमा रेखा से भी निचली सतह पर जीवन जीने को विवश लोगों की संख्या कम नहीं हो सकी। बाल श्रमिक समस्या का सम्बन्ध मुख्यतया गरीबी और दो वक्त की रोटी जुटाने की प्रक्रिया के साथ ही है। कितने दुख और निराशा की बात हे कि जिन नन्हे-मुन्नों के खेलने-खाने या पढ़ने-लिखने के दिन होते हैं वे वयस्क व्यक्तियों के कत्तव्यों का निर्वाह कच्ची उम्र में ही करने के लिए विवश हो जाते हैं। उन बाल श्रमिकों को बारह-चैदह घंटे प्रतिदिन काम करना पड़ता है, उचित आहार नहीं मिल पाता है और मालिकों से प्रताड़ित भी होना पड़ता है। उन्हें निष्ठुर मालिकों के अपशब्द भी सुनने पड़ते हैं।

आज राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रत्येक वर्ष बाल-दिवस मनाया जाता है। बच्चों को भविष्य में राष्ट्र का कर्णधार घोषित कर उनके उचित लालन-पालन को राष्ट्रीय एवं महत् मानवीय कत्र्तव्य कहा जाता है लेकिन वस्तुुस्थिति यह है कि बाल श्रमिक के रूप में काम करने वाले वे बच्चे ‘बाल-दिवस‘ को जानते तक नहीं। बच्चों को यह बोध भी नहीं हो पाता है कि पूंजीपति या सम्पन्न लोग उनका शोषण कर रहे हैं और उन पर अत्याचार कर रहे हैं। बच्चों को अपने अस्तित्व का बोध कहां होता है। सच तो यह है कि भारत में बाल-श्रमिक समस्या को समाप्त करने के लिए चाहे जो और जितने कानून बना दिए जाएं व्यवहार में बच्चों से श्रम करवाना जारी है। विशेष रूप से शहरों में बाल श्रमिकों का हुजुम बढ़ा है। बाल श्रमिकों की समस्या और स्थिति सुधरने की बजाय और भी भयावह होती जा रही है।

भारत में बाल श्रमिकों की समस्या कोई नई चीज नहीं है। स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले भी घरों में इस प्रकार के श्रमिक बच्चे हुआ करते थे जिन्हें ‘ मुण्डू‘ कहकर पुकारा जाता था। पर ये मुण्डू अक्सर पहाड़ी हुआ करते थे। ये अपने माता-पिता की इच्छा से या घर से भागकर मैदानी शहरों, प्रदेशों में आकर घरेलू काम किया करते थे। आज स्थिति में कुछ परिवर्तन आ गया है। आज केवल पहाड़ी क्षेत्रों के बाल श्रमिक ही नहीं, प्रत्येक क्षेत्र के बाल श्रमिक देखे जा सकते हैं। इनका कार्यक्षेत्र केवल घरों तक ही सीमित नहीं रह गया है। होटलों, दुकानों, कल-कारखानों, छोटी-बड़ी फैक्ट्रियों आदि के मालिक उनसे कठोर श्रम करवाकर उनके बचपन को बर्बाद करते हैं और बाल- इच्छाओं का गला घोटते हैं। यहां तक कि फुटपाथों पर छोटी-मोटी वस्तुएं, समाचार-पत्र आदि बेचते हुए भी उन्हें देखा जाता है।

सचमुच कितनी दयनीय स्थित है स्वतंत्र भारत के इन सुकुमार बच्चों की। अक्सर देखने में आता है कि बाल-श्रमिक दूर-दराज के देहातों से आए हुए बालक ही होते हैं। घोर दरिद्रता बाल श्रमिक    का मूल कारण तो है ही, कुछ बच्चे माता-पिता के कठोर व्यवहार से तंग आकर बाल मजदूर बनन को विवश हो जाते है। विमाता के व्यवहार से तंग आकर घरों से भागकर श्रम के लिए विवश होने वाले बच्चों की भी कमी नहीं है। इस प्रकार निर्धनता, दुव्र्यवहार, कुसंगति ही वे मुख्य कारण हैं जो बाल श्रम को बढ़ावा दे रहे हैं। बाल श्रम के कुछ परम्परागत कारण भी हैं जैसे मोची, बढ़ई, लोहार आदि स्वभाव से ही श्रमजीवी होते हैं। इनके बच्चे जैसे ही पांच-सात साल के होते हैं, उनसे छोटा-मोटा काम लेना शुरू कर दिया जाता है। उनकी पढ़ाई-लिखाई की ओर स्वयं अशिक्षित होने के कारण अभिभावकों का ध्यान नही नहीं जाता। मुख्य बात यह है कि ऐसे बच्चे स्वतंत्र धन्धे अपनाने के कारण स्वावलम्बी होते हैं। जैसे- पाॅलिश आदि करने वाले बच्चे, तमाशगीरी के बच्चे इत्यादि।

बाल श्रमिक युवकों- प्रौढ़ों की तुलना में सस्ते मिल जाते हैं। इनसे मालिकों को कोई खतरा भी नहीं रहता। कम दाम और मनमाना काम, यह मनोवृत्ति इन बेघरों के शोषण के पीछे साफ-साफ देखी जा सकती है। यों भारत में ओर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी चैदह वर्ष से कम उम्र के बच्चों से काम न लेने का कानून बना हुआ है। पर इसकी परवाह कौन करता है? कई बार गरीबी और भुखमरी की स्थिति में स्वयं मां-बाप अमीरों, ठेकेदारों के हाथों बच्चों को या तो बेच देते हैं या श्रम कराया जाता है। उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है। बच्चों से कठोर काम करवाना घोर अपराध एवं अमानवीय कृत्य है। इसका निराकरण आवश्यक है।

बच्चे राष्ट्र की सम्पत्ति और भविष्य के नागरिक हैं। अतः प्रत्येक राष्ट्र का यह पहला कत्र्तव्य है कि अपनी इस चल सम्पत्ति की रक्षा और विकास की तरफ उचित ध्यान दे। बाल श्रमिक बनने को बाध्य होने की जो स्थितियां हैं या जो सकती हैं डनहें दूर करना राष्ट्र का राष्ट्रीय एवं सहज मानवीय दोनों प्रकार का कत्र्तव्य है। यदि इस ओर तत्काल ध्यान न दिया गया तो बाल-श्रमिकों के रूप में मानवता तो पिसती ही रहेगी, हमारा भविष्य भी खतरे में पड़ जाएगा। इस अमानवीय लापरवाही के कारण इतिहास हमें कभी माफ नहीं करेगा।

निबंध नंबर – 02

बालश्रमिक

Bal Shramik

बाल श्रमिक कौनबाल-श्रमिक का प्रचलित नाम है-बाल-मज़दूर। मजदूर का नाम सुनते ही हमारे सामने किसी कठोर काम में लगे रूखे-सूखे फटेहाल आदमी का चेहरा आ जाता है। दूसरी ओर किसी बालक का नाम सुनते ही किसी कोमल मासूम बच्चे का रूप सामने आ जाता है। यही परस्पर विरोधी रूप हमारे मन में करुणा पैदा करता है। एक कोमल बच्चे को घोर मेहनत करत देखकर हमारा हृदय पसीज उठता है। किसी बच्चे का होटल पर दिन-रात बर्तन माँजना, अँगीठी सुलगाना, ग्राहकों की सेवा करना, छोटी बच्चियों का घरों में सफाई करना या फिर अपने माता-पिता के साथ ईंटें ढोना बड़े मार्मिक दृश्य हैं। यह मानो बच्चों का बचपन छीनना है, जो कि मानवता के प्रति अपराध है।

दिनचर्याकभी एक बाल-मजदूर की दिनचर्या देखिए। उसे माता-पिता या मालिक की झिड़कियाँ बिस्तर से उठाती हैं। उठते ही उस पर काम पर जाने का तनाव हावी हो जाता है। होना यह चाहिए कि उसके माता-पिता उसे बड़े लाड़-प्यार से उठाएँ, उसे स्कूल के लिए तैयार करें। उसे गर्म-गर्म नाश्ता मिले। वह प्यार-दुलार पाकर जीवन में आगे बढ़ने के लिए उत्साहित हो। परंत उस पर सवार हो जाती हैं पर चलाने की जिम्मेवारियाँ । काम पर पहुँचने पर भी उसका वहाँ स्वागत नहीं होता। मालिक लोग उससे बड़ी बेरहमी से पेश आते हैं। उसे बात-बात पर अपमानित किया जाता है। जो काम बड़े प्यार से लिया जा सकता है, उसे डाँट-डपट से लिया जाता है। मालिक बाल मजदूरों पर मनमाने अत्याचार करते हैं। उनसे देर रात तक काम लिया जाता है। उन्हें दोपहर आराम की भी सुविधा नहीं दी जाती। यदि बाल मजदूर काम करने में न-नुकुर करे तो उसे बुरी तरह पीटा जाता है। वेचारा मासूम बालक मन मसोस कर रह जाता है।

व्यवसायियों द्वारा शोषणलज्जा की बात यह है कि बडे-बडे व्यवसायी से लेकर छोटे दुकानदार और उद्योगपति सभी उसका जबरदस्त शोषण करते हैं। उनके अपने बच्चे आराम की जिंदगी जीते हैं, परंतु ये बाल-मज़दूर पीड़ा के आँसू रोते हैं। बाल-मजदूर आसानी से दबाव में आ जाते हैं। ये अपने अधिकारों के प्रति सजग नहीं होते, इसलिए इन्हें बहुत कम वेतन पर रखा जाता है और इनसे बहुत अधिक काम लिया जाता है।

प्रशासन और समाजसेवकों का सहयोगदुर्भाग्य यह है कि इन बाल-श्रमिकों के हितों की देखभाल करने वाला कोई नहीं है। सरकार ने बाल-मजदूरी को अपराध घोषित कर दिया है। परंतु उसकी नाक के नीचे बच्चे काम करते नजर आते हैं। यहाँ तक कि सरकारी अफसरों को चाय पिलाने वाला भी कोई बाल-मजदूर होता है। समाजसेवी संस्थाएँ भी बाल-मज़दूरों की दुर्दशा पर खूब आँसू बहाती हैं। वे कभी-कभी उनकी सहानुभूति में नकली आँसु भी बहा लेती हैं, परंतु इस समस्या का समाधान उनके वश में नहीं है। वास्तव में भारत में गरीबी इतनी अधिक है कि बाल-मज़दरों के माता-पिता उनसे मज़दूरी कराने के लिए विवश हैं। हालाँकि सरकार ने आरंभिक शिक्षा को पूरी तरह मुफ्त कर दिया है, परंतु बाल-मज़दूरों के माँ-बाप तो उनसे मज़दूरी कराके धन कमाना चाहते हैं। उनकी इस मानसिकता को बदलना होगा। इसके लिए लंबे समय तक समझाने-बुझाने और प्रेरित करने का सिलसिला शुरू करना होगा। तभी बच्चों को उनका बचपन लौटाया जा सकेगा।

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