Hindi Essay on “Badh ka Drishya” , ”बाढ़ का दृश्य” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
बाढ़ का दृश्य
Badh ka Drishya
एक समय की बात है जब हमारे नगर इलाहाबाद को भीषण बाढ़ का सामना करना पड़ा था। उस समय मैं बहुत छोटा था तथा तीसरी कक्षा में पढ़ता था। मैं स्वंय समाचार पत्र नहीं पढ़ सकता था, किंतु उन दिनों प्राय: नित्य की चर्चा का विषय बना रहा करता था। जैसे ही समाचार-पत्र वाहक का स्वर सुनाई पड़ता, अखबार ले जाओ, वैसे ही भैया एंव दीदी झपटकर बाहर दौड़ते और अखबार की खींचतान मच जाती। अंत में माताजी और पिताजी उन्हें शांत करते, फिर हम सब अतीव उत्सुकता से बाढ़ की खबरें सुनने बैठ जाते। एक दिन पिताजी ने अति चिंतित होकर हमें समाचार सुनाया कि आगरा और दिल्ली की ओर भारी वर्षा हो रही है, जिससे यमुना नदी में भीषण बाढ़ आ गई है।
उन दिनों इलाहाबाद में भी वर्षा की झड़ी लगी हुई थी और गंगा में भी बाढ़ आने लगी थी। हमारा शहर इलाहाबाद तीन दिशाओं से गंगा और यमुना नदियों से घिरा हुआ था, इसलिए यह पूरी आशंका थ्ीा कि हमें भीषण बाढ़ का प्रकोप सहना पड़े। दूसरे दिन ही पिताजी ने हमें समाचार-पत्र में छपी खबर सुनाई ‘कल तक प्रयास को भी भीषण बाढ़ का सामना करना पड़ेगा।’ जिधर देखिए, उधर बाढ़ की ही चर्चा हो रही थी और सभी लोग भयभीत दिखाई दे रहे थे। तभी बड़े भैया कहीं से घूम-फिरकर लौटे। उन्होंने बताया कि गंगा और यमुना दोनों ही बहुत बढ़ गई है और यह सत्य है कि कल तक ये नदियां अपनी सीमा पार करके सडक़ों पर भी प्रवाहित होने लगेंगी। हमारा घर जिस मुहल्ले में है, वह गंगा-यमुना के अत्यंत निकट है। जब भी गंगा-यमुना में बाढ़ आती है तो हमारे मुहल्ले तक बाढ़ का पानी लहराने लगता है और नावें चलने की नौबत आ जाती है। इसलिए मुहल्ले में सनसनी फैल गई और मुहल्लेवाले अपने-अपने सामान सुरक्षित स्थानों में स्थानांतरित करने लगे। पिताजी ने भी तुरंत घर-गृहस्थी का सब सामान अपने एक मित्र के घर पहुंचा देने की व्यवस्था की और फिर हम सब लोग भी उन्हीं के घर चले गए। कुछ व्यक्ति सरकारी शिविरों में और अपने सगे-संबंधियों के घर चले गए। जहां बाढ़ आने का खतरा नहीं था।
किसी प्रकार त्रस्त नगरवासिायों ने रात व्यतीत की और सवेरा हुआ। आकाश उस समय काले-काले मेघों से आच्छादिन था। किंतु जिधर देखो उधर बादलों की उपेक्षा करने लोग बाढ़ देखने के लिए चल पड़े। हम भी अपने परिवार के साथ गऊघाट पहुंचे। यमुना का पुल अर्थात गऊघाट तक पहुंचने से मार्ग में जितने मुहल्ले मिले, वे सभी जल में डूबे हुए थे। मैं जिस विद्यालय में पढ़ता था वह मुट्ठीगंज में स्थित है। मेरे विद्यालय के समाने वाली सडक़ पर जो यथेष्ट ऊंचाई पर है, भी यमुना का जल ठाठें मार रहा था। यमुना के पुल पर खड़े होकर देखने से ऐसा प्रतीत होता था, मानो जल-प्लावन हो गया हो। चारों ओर जल ही जल दिखाई देता था। यमुना का जल खतरे के बिंदु पर थपेड़े मार रहा था। यमुना का पुल मानव-समूह से खचाखच भरा ािा। यमुना मैया अपना प्रकोप शांत करें, इसलिए जन-समुदाय प्रार्थना करके उन्हें फूल-माला अर्पित कर रहा था। अपार जल राशि की गर्जना मनुष्य ही नहीं, पशु-पक्षियों के हदयों को भी आंतकित कर रही थी। वृक्षों पर भयभीत पक्षी भयावह शोर मचा रहे थे।
यमुना पार के ग्रामों का तो बुरा हाल था। समस्त खेती जल-प्लावित हो गई थी। ग्रामीणजनों के घर, फूस के छप्पर तक यमुना में बहते नजर आ रहे थे। गा्रमीणों के कोठिलों और ड्रमों में भरा अनाज तथा पशुओं के लिए संचित चारा आदि सब घर में पानी भर जाने के कारण नष्ट हो गए थे। यमुना के जल में बहती हुई अगणित मानव और पशु-पक्षियों की लाशें, अपार जलराशि में भीषण थपेड़ों से संघर्ष करके टूटे हुए पेड़-पल्लवों की शाखांए, भंवर के चक्कर में पडक़र डूबती हुई नौकांए तथा अपने जीवन की रक्षा हेतु जल से संघर्ष करते त्रस्त व भयभीत व बहते हुए जीवित पशु-पक्षी सम्मिलित रूप में एक ऐसा भयावह दृश्य उपस्थित कर रहे थे कि मेरा बाल-मस्तिष्क आतंकित हो उठा।
मुझे आज भी स्मरण है कि मैं डर के मारे आंखें बंद करके यमुना के पुल पर ही अपनी मां से लिपट गया था और जोर-जोर से रोने लगा था। म्ुझे अत्याधिक भयभीत देखकर पिताजी सपरिवार घर लौट आए थे। उस रात मैं सो नहीं सका था। आंखें बंद करते हुए भी विनाशकारी भयावह दृश्य चलचित्र की भांति नृत्य करने लगते थे और मैं डर के मारे आंखें खोल देता था।
दूसरे दिन गंगा नदी की बाढ़ देखने के लिए कोई भी नहीं जा सका था। आज भी जब मैं उस विकराल बाढ़ को याद करता हूं तब भय-मिश्रित आनंद से मेरा रोम-रोम रोमांचित हो उठता है।
बाढ़ तो जैसे आई थी वैसे ही चली भी गई थी, किंतु उसका कितना भारी नुकसान प्रयागवासिायों को सहना पड़ा, उसका लेखा-जोखा कौन करे। न जाने कितनी बड़ी संख्या में जन-धन की हानि हुई। बाढ़ का पानी जब सूखने लगा तब दलदल और नमी के कारण मच्छरों की बन आई और मलेरिया ने भीषण रूप धारण किया। दाद, खाज आदि चर्म रोगों ने तो वहां के लोगों का जीवन ही दूभर कर दिया था। कृषि-हानि के कारण कितने ही निर्धन व्यक्ति भूखों मर गए।
इस प्रकार न जाने कितने व्यक्ति असमय ही काल-कवलित हो गए। आज भी जब मैं समाचार-पत्रों में पढ़ता हूं कि कहीं बाढ़ आ गई है तो मेरे मानस-पटल पर वही दृश्य अंकित हो जाते हैं, जो मैंने बाल्यावस्था में गंगा और यमुना में बाढ़ आने पर प्रयाग में देखे थे। आज भी मैं बाढ़ के उन विनाशकारी द़ृश्यों का स्मरण कर सिहर उठता हूं। मैं ईश्वर से यही प्रार्थना करता हूं कि कभी किसी शहर अथवा ग्राम को बाढ़ के प्रकोप का सामना न करना पड़े।