Hindi Essay on “Avivek” , ”अविवेक” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
अविवेक
Avivek
विवेक एक ऐसा महान् दोष है जो हमारे सम्पूर्ण सदगुणों पर छा कर उन्हें ढक नगद धन के समान है जो अंदर-अंदर ही मानव के सदकर्म तथा उसकी सदवत्तियों मलनी बना देता है। यह ज्ञान व विद्वता की आँखों में छाया हुआ ऐसा मेघ है जो किसी भी वस्त को स्पष्ट नहीं देखने देता। अविवेक शब्द अ+विवेक दो शब्दों से मिलकर ना है ‘अ’ का अर्थ नहीं ‘विवेक’ का अर्थ ज्ञान है। अतः अल्पज्ञ होने पर भी झूठे ज्ञानी बनने का घमण्ड ही वास्तव में ‘अविवेक’ है और यह झूठी शान या अभिमान ही हमारे पतन का कारण है। अतः जहाँ तक सम्भव हो संत की वाणी ‘मन अभिमान न आने दे का ध्यान रखें।
सबसे पुरातन धर्म ग्रन्थ ‘ऋग्वेद’ में कहा गया है कि अविवेकी व्यक्ति दुःख को प्राप्त होते हैं। यह कथन सर्वथा सत्य है। जीवन का कोई भी क्षेत्र क्यों न हो, मानव को विवेक व विचारशीलता की परम आवश्यकता होती है। विश्व में सब प्रकार के कल्याण, सुख, सम्पदा तथा प्रगति का मूल मंत्र विवेक है और अकल्याण, दुःख, विपत्ति एवं दुर्गति, अविवेक से प्राप्त होती है। कभी-कभी हम अविवेकवश बिना विचारे किसी कथन का गलत अर्थ लगा लेते हैं:
‘अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम।
दास मलूका कह गये सबके दाता राम ।।‘
इस कथन के पीछे क्या सत्य है, हम यह बिना समझे कि पूर्व जन्म के भी कुछ सचित कर्म इस जन्म में मिलते हैं, हम अपना कर्त्तव्य छोड़ बैठते हैं, निठल्ले बैठकर कायर बनकर जीना चाहते हैं; परंतु हम यह भूल जाते हैं कि यह अविवेक हमारे जीवन के विकास क सभी मार्गों को रोक देता है। गया समय हाथ नहीं आता और कार्य बिगड़ जाने पर फिर पछताने से लाभ भी क्या ? उसका अहित कर बैठते हैं। अविवेक से जो भी आपत्ति आ जाये वह थोड़ी ही है।
जिस प्रकार पूर्ण इंजन में उसका मुख्य सिर भाग ही प्रधान होता है, इसी प्रकार मारा मस्तिष्क ही पूर्ण शरीर का संचालन करता है। हमारे मस्तिष्क में ज्ञान रूपी शक्ति का भंडार होना परमावश्यक है। यह ज्ञान या विवेक हमको सत्संगति से प्राप्त होता है ‘ सगात के लिए प्रभ की दया दष्टि परमावश्यक है, जैसा कि तुलसीदास ने अभिव्यक्त किया है:
‘बिनु सत्संग विवेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।।
अतः यह सिद्ध हुआ कि विवेक प्राप्ति के लिए आस्तिक होना परमावश्यक है। विवेक दा महत्त्व रहा। दिवेक के कारण ही विष्ण, कृष्ण, राम एवं शिव आदि हमारे पूज्य बन गए। आज भी विवेकी गांधी, राधाकृष्णन्, नेहरू जैसे व्यक्तियों का सम्मान करते हैं। आज के इस राशनिंग व्यवस्था के युग में यदि हमारे अन्दर जरा-सा विवेक न हो, तो हम कुछ भी खाद्य पदार्थ न खाने को पायेंगे और भूखों मरना पड़ेगा। विवेक के अभाव में हम पग-पग पर मूर्ख बनाये जायेंगे और आज के धूर्त समाज के द्वारा छले जायेंगे। अतः विवेक अपना बहुत ही अधिक महत्त्व रखता है। इसके अभाव में तो लोग हमारी सारी सम्पत्ति हडप कर जायेंगे और जीते जी हमारे जीवन को नाटकीय बना देंगे। अतः हमें ईश्वर में आस्था रखते हुए गुरुजनों व पुस्तकों आदि के सम्पर्क से अध्ययन कर तन-मन-धन से विवेक की प्राप्ति का प्रयास करना चाहिए।
जीवन में अविवेकजन्य आपत्तियों का अनुभव सभी करते हैं। विद्यार्थी यदि विवेक से काम नहीं लेता, तो उसे अपने क्षेत्र, विद्याध्ययन में सफलता नहीं मिल सकती। प्रायः अविवेक के कारण ही वे अध्ययन की ओर ध्यान नहीं देते और इसी से परीक्षा में सफल नहीं हो पाते। इससे नकल करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता है और नकल करने पर पकड़े जाने पर जीवन के 3 वर्ष के अमूल्य क्षण नष्ट करने पड़ते हैं। यह अविवेक का ही एक रूप है जो आपत्तियों के रूप में सम्मुख आता है। जब यही अविवेक समूह के रूप में सम्मुख आता है, तो विनाश के दूत रूप में भयंकर प्रतीत होता है। आज इस अविवेक का परिणाम हम सर्वत्र देख रहे हैं। एक ओर विद्यार्थी बुद्धू निकल रहे हैं, दूसरी ओर इसका परिणाम हिंसात्मक हड़तालों का रूप धारण कर रहा है। आज अविवेकवश हडतालों में तार-टेलीफोन काटकर, बस एवं गाड़ियों को जलाकर हम सरकार का नहीं अपितु अपना अहितकर आपत्ति मोल ले रहे हैं। ऐसे में यदि आप ही का कोई घर वाला व्यक्ति अति अस्वस्थ है, आप उसे कहीं चिकित्सा के लिए ले जाना चाहें, तो आवागमन के मार्ग अवरुद्ध होने से उसके प्राण आप स्वयमेव संकट व विपत्ति में डाल देंगे और फिर अपने ही अविवेक आठ-आठ आँसू बहायेंगे। आखिर इससे फिर क्या लाभ होगा? अतः निःसंदेह यह अविवेक एक ही क्षेत्र में क्या यह तो अनुभवजन्य उदाहरण मात्र था, इसी प्रकार प्रत्येक क्षेत्र में यह अविवेक विष के समान है जो समाजव्यापी होकर उसे मृत-प्रायः कर रहा है। अतः इसे समूल नष्ट करना चाहिए; अन्यथा जीवन नर्कमय हो जायेगा।
इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं कि अविवेक के कारण न जाने कितने साम्राज्य समूल नष्ट हो गए। जयचन्द का स्वार्थपूर्ण अविवेक देश की पराधीनता का कारण बना। नन्द वंश के राजाओं का विनाश उनकी अनदारता व अविवेक के कारण ही हुआ था। मुसलमानी आक्रमणों के समय भी भारतीय-नरेशों को अविवेक के कारण ही शक्तिशाली होते हुए भी पराजय का मुख देखना पड़ा। इस प्रकार के अनगिनत दृष्टान्त इस ओर इंगित करते हैं कि अविवेक ही आपत्तियों का जन्मदाता है। केवल सामान्य मानव ही नहीं वरन महान विचारक ऋषि-मुनि भी अविवेक के शिकार होते देख गए हैं। देवर्षि विवेक ने ही उन्हें पतित किया नहीं तो नारद का स्वरूप ही कुछ और होता। सके अविवेक भरे शाप ने अपनी प्रिय पत्नी अहल्या को पाषाण ही बना दिया। और गालव ऋषि का अविवेक भी उनकी आपत्तियों का कारण बना। अविवेक ने बाली को मृत्यु के मुख का ग्रास बना दिया। अविवेक ने उमा का स्वरूप ही बदल अविवेक के कारण ही सती सीता ने स्वर्ण मग माँग कर महान कष्ट उठाए। कहाँ तक कहें और कैसे कहें अविवेक ने, तो मानव को मानव ही नहीं रहने दिया । आज अविवेक के कारण ही हमारे रक्षक ही भक्षक हो रहे हैं।
अविवेक मानव का शत्रु है। अविवेक से मानव का तप, यम, नियम सभी तृणवत् भस्मीभूत हो जाते हैं। इससे अहंकार, कपट, प्रमाद, दम्भ आदि का जन्म होता है। यह अहंकार और अविवेक ‘किलात्’ एवं ‘आकुलि’ के समान मानव से वह सब कार्य कराते हैं जो अवांछनीय और अशोभनीय ही नहीं; अपितु विनाशकारी भी हैं। मानव को विवेक की श्रद्धा से युक्त रहना चाहिए।