Home » Languages » Hindi (Sr. Secondary) » Hindi Essay on “Akal” , ”अकाल” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

Hindi Essay on “Akal” , ”अकाल” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

अकाल

Akal

निबंध नंबर :-01

दुर्भिक्ष या अकाल सब तरह के अभाव की स्थिति को कहा जाता है। आम मनुष्यों के लिए खाने-पीने की पीने की वस्तुओं का अभाव, पशुओं के चारे-पानी का अभाव ही सामान्य रूप से अकाल या दुर्भिक्ष कहा जाता है। दुर्भिक्ष का कारण यदि अभाव है, तो उस अभाव कारण क्या हो सकता है, सोचने-विचारने की बात है। ऐसा भी कहा-सुना जाता कई बार बनावटी कारणों से भी अकाल या दुर्भिक्ष का वातावरण पैदा कर दिया जाता है। जैसा कि ब्रिटिश सरकार ने अपने शासन काल में एक बार बंगाल में पैदा कर दिया था। कहा जाता है और उसे आधार बना कर लिखी गई साहित्यिक रचनाओं के अध्ययन से पता चलता है, तब बंगाल में हजारों लोग भूख से तड़प-तड़प कर मर गए है। एक मुठ्ठी अन्न के लिए माताओं ने अपने जिगर के टुकड़े बेटों को बेच दिया था. युवतियों ने सरे आम तन को बेच दिया था। चारे-पानी के अभाव में जाने कितने पश् बेमौत मारे गए थे। बहुत ही बुरी एवं दयनीय दशा हुई थी मनुष्यता की।

इस अकाल या दुर्भिक्ष का मूल कारण भारतीयों को सबक सिखाने के लिए भारतीय अनाज-उत्पादकों और व्यापारियों को अपने साथ मिलाकर ब्रिटिश सरकार द्वारा उत्पन्न किया गया खाद्य पदार्थों का कत्रिम अभाव था। आजकल भी हृदयहीन और मानवता द्रोही नाफाखोर व्यापारी माल का स्टॉक कर अर्थात गोदाम में छिपा कर अभाव की स्थितियाँ पन्न कर दिया करते हैं उस छिपाए माल से या तो काले बाजार में बेच कर अपना कमाने की दानवी पिपासा शान्त किया करते हैं या फिर तब तक छिपाए-दबाए क जब तक खुले बाजार में ही विवश हो कर लोग अधिक दाम देने को बाध्य नहीं हो जाते। इस तरह के कत्रिम अभाव का चाहे उतना घातक प्रभाव न पड़ता हो: पर आम आदमी का काफिया तो तंग हुआ ही करता है। उसे तो अभाव अभियोग में जीवित मुर्दे का सा जीवन बिताना ही पड़ता है। जैसा कि अभी पिछले दिनों चीनी का बनावटी अभाव पैदा, दिखाकर आज उसके दाम इतने कर दिए गए हैं कि आम आदमी की चाय मुहं फीके ही रह जाने के लिए विवश हो गए है।

दुर्भिक्ष या अकाल प्राकृतिक कारणों से भी पडता रहता है। प्राकृतिक कारणों में मुख्य कारण होता है या तो वर्षा का इतना अधिक समय-असमय होते रहना कि बोया अनाज अधिक पानी के कारण वहीं सड़ जाए, खेतों में कटा पड़ा अनाज असमय की अधिक वर्षा के कारण वहीं पड़ा सड़-गल जाए या रंग के बदरंग हो कर खाने लायक न रह जाए। यही स्थिति चारे पानी के साथ भी हो। इसी तरह सूखा पड़ने यानि वर्षा के बहुत कम होने या कई वर्षों तक न होने से भी दुर्भिक्ष पडा करता है।

भारत में कृषि कार्य तो अभी तक कुछ इलाकों में विशेषकर पूर्णतया वर्षा पर आश्रित है। इसी प्रकार मनुष्य और पशुओं दोनों के लिए ठीक समय पर वर्षा होती रहने से ही पीने के पानी की व्यवस्था हो पाती है। नहीं तो मनुष्य की प्यास बुझाने के स्रोत कुएँ आदि सूख जाते हैं, पर की प्यास बुझाने वाले जोहड-तालाब सूख कर दरारे जाते हैं। वर्षा न होने से या खेती बोई ही नहीं जा पाती, यदि बोई भी जाती है, तो समय पर पानी से सिंचाई न है। पाने के कारण धरती के भीतर की गर्मी से सड-गल कर बेकार हो जाती है। वर्षा को अभाव घास-पत्तों तक को सुखा कर धरती को नंगी और बंजर जैसी बता दिया करता है। इस प्रकार अन्न, जल, चारे आदि का प्रकृतिक कारणों से अभाव होकर दुर्मिक्ष का कारण बन जाया करता है।

मुझे याद है, जब मेरी आयु मात्र नौ दस वर्षों की थी, तब हम राजस्थान के एक ऐसे ही इलाके में रहा करते थे। सरकारी नौकर पिता को सपरिवार वहाँ जमना पड़ा। था। वहाँ एक तो पानी का यों ही अभाव था, उस पर दो सालों तक वर्षा के नाम पर एक बूंद भी धरती पर नहीं बरसी। फलस्वरूप अन्न, जल, चारे आदि का अभाव होने लगा। अभाव की स्थिति जैसे-जैसे बढ़ने लगी, वैसे-वैसे चारों ओर हाहाकर मचने लगा। आम आदमी के पास जब अपने लिए अन्न-जल कुछ नहीं बच रहा था, तो पशुओं को क्या खिलाया जाता सो उन्हें या तो आधे-पौने दामों पर बेच दिया गया. जो न बिक सके खुले छोड़ दिए गए। अनेक लोग परिवार-पशु लेकर अन्य इलाकों को भी चल दिए।

कुछ रास्ते में मर गए। कुछ जैसे-कैसे मरियल दशा में पहुँच भी पाए। इधर-उधर पोखर । तालाबों में पपड़ियाँ और दरारे साफ नजर आने लगीं। धरती फूल बन कर उड़ने लगी। यहाँ-वहाँ मरे पशुओं और मनुष्यों की लाशों को माँसाहारी पशु नोचने लगे। अशक्त हुए। लोग अपने किसी सगे-सम्बन्धी का अन्तिम संस्कार कर पाने में भी समर्थ नहीं रह गए। थे। सो घरों में लाशें सड़ने लगीं। उस व्यापक अभाव का असर हमारे पर्यावरण पर भी पड़ने लगा था कि सरकारी राहत पहुँच जाने के कारण बच गए।

उफ ! कितने भयानक थे वे दिन। भूख और अभाव किसे कहते हैं, स्वयं न सहते हुए उसके दुष्परिणामों का कठोर अनुभव तभी हो सका। आज आयु इतनी बड़ी होने पर भी जब उन दिनों के दुर्भिक्ष की उस विभीषिका का स्मरण हो आता है, आज भी अनजानी दुर्गन्ध से नाक तो क्या अन्तरचेतना तक भर कर खाना-पीना सभी कुछ दो-चार दिन के लिए छुड़ा दिया करती है। भगवान् ऐसे दिन दुश्मन को भी न दिखाए।

 

निबंध नंबर :-02

 

अकाल

Akal

प्रस्तावना- अकाल प्रायः अभाव की स्थिति को कहते हैं। साधारण शब्दों में मनुष्यों के खाने-पीने की सुविधा का अभाव तथा पशुओं के लिए चारे का अभाव ही अकाल कहा जाता है।

अकाल के रूप- अकाल के मुख्यतः दो रूप होत हैं। एक बनावटी और दूसरा प्राकृतिक। बनावटी अकाल उत्पादकों तथा व्यापारियों द्वारा उत्पन्न होते हैं, जबकि प्राकृतिक अकाल जल व चारे आदि के अभाव के कारण उत्पन्न होते हैं।

ब्रिटिश सरकार के शासन काल मंे एक बार बंगाल मंे बनावटी अकाल उत्पन्न हुआ। ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों से गुलामी करवाने के लिए भारतीय अनाज उत्पादकों तथा व्यापारियांे को अपने साथ मिलाकर खाद्य पदार्थों का कृत्रिम अभाव उत्पन्न किया। जिसका परिणाम था कि बंगाल में हजारों लोगों को तड़प-तड़प कर मरना पड़ा।

राजनैतिक आर्थिक अवस्था-उस समय भारतीयों की दशा इतनी खराब थी कि मुट्ठीभर अनाज के लिए माताओं को अपनी सन्तान तथा युवतियों को अपने तन सबके सामने बेचने पड़े। उस समय चारे के अभाव में न जाने कितने पशु भूखों मर गये।

बनावटी अकाल पैदा करने के लिए मुनाफाखोरों व्यापारियों ने अपनी माल को गोदाम में छिपा लिया। जिससे कृत्रिम अभाव पैदा हुआ। उन्होनें अपने माल को बेचकर अत्यधिक लाभ प्राप्त किया।

अकाल के कारण- अकाल का एक और महत्वपूर्ण कारण है- प्राकृतिक रूप से अकाल। जैसे वर्षा अधिक होने के कारण रोपा हुआ बीज अधिक पानी के कारण गल जाता है, जिससे अकाल की स्थिति पैदा होती है।

इसी प्रकार वर्षा के बहुत कम होने पर भी अकाल की स्थिति उत्पन्न होती है जिससे मनुष्य व पशुओं के लिए अन्न, चारे व पानी का अभाव हो जाता है।

ऐसी स्थिति में मनुष्य व पशुओं की प्यास बुझाने के लिए कुंए तथा जोहड़, तालाब आदि सूख जाते हैं। वर्षा का अभाव घास-पतों को सुखाकर धरती को बंजर जैसी बना देता है।

उपसंहार- धरती धूल बनकर उड़ने लगती है। प्रत्येक जगह पशुओं व मनुष्यों की लाशें पड़ी मिलती हैं जिन्हें मांसाहारी पशु नोचते रहते हैं।

इसके कारण हमारा पर्यावरण दूषित होता है। अतः सरकार को इस समस्या से निपटने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाने चाहियें।

निबंध नंबर :-03

अकाल

Drought

                कलि बारहिं बार दुकारस परै।

                बिनु अन्न दुखी सब लोग मरै।।

                गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरितमानस के उत्तरकांड की उक्त चैपाई से अकाल का अर्थ स्पष्ट है। अर्थात वह काल जिसमें खाद्यान्न का अभाव हो जाए और अन्न बिना लोग मरने लगें, अकाल कहलाता है। लेकिन, परिस्थितियां बदलने से अकाल की परिभाषा भी कुछ बदली है, पर भाव वही है। वर्तमान मंे क्रेता की क्रयशक्ति घट जाने को अकाल कहते हैं। या, दूसरे शब्दों में अन्न का भाव इतना बढ़ जाए कि आम जनता पर्याप्त मात्रा में अन्न खरीद सके, तो इसे ही अकाल कहा जाता है।

                अकाल के कई कारण हैं। इन कारणों को मुख्यतः दो भागों मे विभक्त किया जा सकता है- प्राकृतिक एवं कृत्रिम। प्राकृतिक कारणों में अतिवृष्टि, अनावृष्टि एवं फसलों पर कीड़ों पर प्रकोप मुख्य है। भारतीय कृषि मुख्य रूप से वर्षा पर आश्रित है। यहां का मौसम किसानों के साथ आंखमिचैली खेलना है। कभी अतिवृष्टि तो कभी अनावृष्टि। अतिवृष्टि के कारण फसल जहां सड़ एवं गल जाती है, वहीं अनावृष्टि के कारण फसलें सूख जाती हैं। लहलहाती फसलें कभी-कभी ओला, पाला, टिड्ढी एवं अन्य कीड़ों के प्रकोप से बर्बाद हो जाती हैं। इन कारणों से खाद्यान्न के उत्पादन में भारी कमी होने के फलस्वरूप अकाल की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। आम नागरिकों की क्रयशक्ति का हास, सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दोषपूर्ण व्यवस्था एवं व्यापारियों में मुनाफाखोरी की प्रवृति आदि अकाल के कृत्रिम कारण हैं। बड़े-बड़े मुनाफाखोर व्यापारी लखपति से करोड़पति बनने के चक्कर में अपने गोदामों मे अनाज को छिपाकर कृत्रिम अकाल पैदा कर देते हैं। इस घृणित कार्य में भ्रष्ट राजनेताओं एवं पदाधिकारियों की भी मिलीभगत होती है।

                अकाल के जो भी कारण हों, यह प्राणियों के लिए कष्ट का कारण ही होता है। पुराने समय में जब यातायात के इतने साधन उपलब्ध नहीं थे, तब अकाल मरणकाल होता था। क्योंकि अकाल वाले क्षेत्र मंे बाहर से अन्न पहुंचाना असम्भव था। लोग शाक-सब्जी, पेड़ की पतियां खाकर प्राणों की रक्षा करते थे। इतने पर भी जब भूख की ज्वाला बर्दाशत नहीं होती थी, तब लोग हत्या, चोरी, डकैती आदि घृणित कार्यो पर उतारू हो जाते थे। जब सूखे के कारण अकाल पड़ता था, तब यह और भयावह होा जाता था। अन्न से पहले लोग पानी के अभाव में छटपटाने लगते थे। जानवरों की स्थिति और भी दयनीय हो जाती थी। चारा और पानी के अभाव में ये कीड़े-मकोड़ों की तरह मरने लगते थे। लेकिन, वर्तमान में स्थिति बदल गई है। यातायात के साधनों के विकास से अब अकाल वाले राज्यों में दूसरे राज्यों से ही नहीं, विदेशों से भी अन्न मंगवाकर अन्नाभाव दूर किया जाता है। सरकार इन क्षेत्रों में सस्ती दरों पर अनाज बेचती है। स्वंयसेवी संगठनों द्वारा मुफ्त में भोजन, वस्त्र तथा दवाइयां वितरित की जाती हैं। मजदरों को काम दिलवाने के लिए उस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर सरकार द्वारा विकास-कार्य प्रारम्भ किया जाता है। ’काम के बदले अनाज’ जैसी योजनाएं चलाई जाती हैं।

                अकाल की समस्या के स्थायी निदान के लिए सरकार को प्रयत्नशील रहना चाहिए। सूखे से बचाव के लिए नहरों का जाल बिछा देना चाहिए, ताकि हर खेत को पानी मिल सके। इसके अलावा किसानों को ट्यूबवेल लगवाने, पम्पसेट खरीदने एवं उर्वरक, बीज, कीटनाशक दवाइयां आदि खरीदने हेतु सरकार की ओर से आर्थिक सहायता मिलनी चाहिए। कृत्रिम अन्नाभाव उत्पन्न करने वाले मुनाफाखोर व्यापारियों एवं उनके संरक्षक भ्रष्ट पदाधिकारियों के विरूद्व सरकार को सख्ती से पेश आना चाहिए।

 

निबंध नंबर :-04

अकाल

Akal

अकाल को दुर्भिक्ष भी कहा जाता है। यह वह अवस्था है जब देश में खासकर खाद्यान्न का घोर अभाव हो जाता है। वह समय, जब देश में खाद्यान्न संकट उत्पन्न हो जाता है। लोग अन्न के बिना मरने लगते हैं। इस हालात को अकाल कहते हैं। लेकिन परिस्थितियों के बदलने से अकाल की परिभाषा भी बदल गई है। वर्तमान समय में क्रेता की क्रयशक्ति घट जाने को अकाल कहते हैं। अन्न का भाव इतना बढ़ जाए कि आम आदमी पर्याप्त मात्रा में अन्न न खरीद सके, अभी अकाल की स्थिति इसे ही कहा जाएगा।

अकाल के कई कारण हैं। इन कारणों को मुख्यतः दो भागों में विभक्त किया जा सकता है-प्राकृतिक एवं कृत्रिम। प्राकृतिक कारणों में अतिवृष्टि, अनावृष्टि एवं फसलों पर कीड़ों के प्रकोप मुख्य हैं। भारतीय कृषि मुख्य रूप से वर्षा पर निर्भर है। यहां का मौसम किसानों के साथ आंखमिचौली खेलता है। कभी अतिवृष्टि तो कभी अनावृष्टि। अतिवृष्टि के कारण फसलें ढह एवं गल जाती हैं। अनावृष्टि के कारण फसल सूख जाती है। लहलहाती फसलों पर कभी-कभी ओला, पाला, टिड्डी दल एवं अन्य कीड़ों के प्रकोप भी आ जाता है। इन कारणों से खाद्यान्न के उत्पादन में भारी कमी होने के फलस्वरूप अकाल की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। आम नागरिकों की क्रय-शक्ति का हास, जन-वितरण प्रणाली की दोषपूर्ण व्यवस्था एवं व्यापारियों में मुनाफाखोरी की प्रवृत्ति आदि अकाल के कृत्रिम कारण है। भारत और विश्व के कई देशों में अकाल की स्थिति बड़ी भयावह रही है। बंगाल के अकाल ने तो पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। कविवर नागार्जुन की एक कविता ‘अकाल’ और उसके बाद की पंक्तियां देखिए-

कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास,

कई दिनों तक कानी कुतिया, सोई उसके पास,

कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त,

कई दिनों तक चूल्हों की भी हालत रही शिकस्त,

दाने और घर के अंदर कई दिनों के बाद,

धुआं उठा आंगन के ऊपर कई दिनों के बाद।

अकाल का प्रभाव काफी मारक होता है। जब यातायात के साधन का अभाव था, तो लोगों को शाक-कंद-मूल पर निर्भर रहना पड़ता था। लोग भूख से व्याकुल होकर चोरी, राहजनी, डकैती जैसे घृणित काम करने लगते थे। वर्तमान समय में स्थिति बदल गई है। यातायात के साधनों के विकास से अब अकाल वाले क्षेत्रों में सहायता पहुंचाना संभव हो गया है। सरकार सस्ते दर पर अनाज या अन्य सुविधाएं उपलब्ध करवाती है। स्वयंसेवी संगठनों द्वारा मुफ्त में भोजन, वस्त्र, दवाई आदि का वितरण किया जाता है।

अकाल की समस्या के निदान के लिए सरकार को प्रयत्नशील रहना चाहिए। बाढ़ से बचाव के लिए मजबूत बांध बनाना चाहिए। सूखे से बचने के लिए उचित सिंचाई व्यवस्था की जानी चाहिए। इसके अलावा किसानों को ट्यूबवेल, पंपसेट, उर्वरक, खाद, बीज, कीटनाशक दवाइयां आदि के लिए सरकारी सहायता दी जानी चाहिए। मुनाफाखोरी, जमाखोरी और भ्रष्ट पदाधिकारियों के विरुद्ध सरकार को सख्ती से पेश आना चाहिए।

(400 Words)

About

The main objective of this website is to provide quality study material to all students (from 1st to 12th class of any board) irrespective of their background as our motto is “Education for Everyone”. It is also a very good platform for teachers who want to share their valuable knowledge.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *