Hindi Essay on “Aalasya Hamara Sabse Bada Shatru Hai”, “आलस्य हमारा सबसे बड़ा शत्रु है” Complete Hindi Essay, Paragraph, Speech for Class 7, 8, 9, 10, 12 Students.
आलस्य हमारा सबसे बड़ा शत्रु है
Aalasya Hamara Sabse Bada Shatru Hai
एक मनुष्य वे होते हैं जो अनेक असफलताओं और संघर्षों से जूझते हुए अपने कर्म पथ पर अग्रसर होते हैं । ऐसे व्यक्तियों को ही कर्मवीर की उपाधि से विभूषित किया जाता है । उनका सिद्धान्त होता है या तो कार्य में सिद्धि प्राप्त करूँगा अन्यथा अपना शरीर ही नष्ट कर दूँगा । इसके विपरीत दुसरी प्रकार की कोटि में वे मनुष्य आते हैं जो काम करने से डरते रहते हैं और काम को देखकर भयभीत हो जाते हैं । ऐसे मनुष्यों को कर्मभीरू की उपाधि दी जाती है । क्या आपने कभी सोचा है कि वह मनुष्य काम से जी क्यों चुराता है ? उसकी सारी शक्ति को उससे किसने छीन लिया ? किस लिए वह अकर्मण्य हो कर बैठ गया । इस का हमें एक ही उत्तर मिलेगा कि उसके जीवन को उसके आलस्य ने अन्दर से खोखला कर दिया है । आलस्य मानव जीवन का सबसे बड़ा शत्रु है-
‘आलस्यं हि मनुष्याणा शरीरस्थो महान् रिपुः‘
महर्षि वशिष्ठ ने सत्य कहा है-“यदि जगत में आलस्य रूपी अनर्थ न होता तो कौन धनी और विद्वान न होता । आलस्य के कारण ही यह समुद्रपर्यन्त पृथ्वी निर्धन और मूर्ख (नर पशु) लोगों से भरी पड़ी है ।
आलस्य का अर्थ है-इच्छा शक्ति की निष्क्रियता कम काम और अधिक आराम की लालसा । आलसी व्यक्ति का तो मानों सिद्धान्त ही यही बन कर रह गया है-
अजगर करे न चाकरी, पंछी करें न काम
दास मलूका कह गए, सबके दाता राम ।
परन्तु कई आलसी मनुष्य तो इससे भी आग निकल गए लगते हैं । उनका कहना है कि पूज्य पिता जी कह गए, कर बेटा आराम ।
आलस्य मनुष्य को निरर्थक एवं भारस्वरूप भी बना देता है । नेपोलियन ने ठीक ही कहा है निरर्थक जीवन बडा भारी बोझ है (A useless life is a heavy burden.)
जब भगवान राम रावण से युद्ध की तैयारी कर रहे थे तब लंका पर चढ़ाई करने के लिए समुद्र को पार करना अनिवार्य था। समुद्र को मार्ग देने के लिए भगवान राम ने कई बार प्रार्थना की परन्तु सब व्यर्थ । लक्ष्मण जी यह बात कैसे सहन कर सकते थे, वह क्रोधित हो उठे और उन्होंने भगवान राम को बल प्रयोग करने की प्रार्थना की और कहा-
कायर मन कहं आधारा, दैव दैव आलसी पुकारा ।
अर्थात् कायर लोग ही भाग्य या प्रभु का सहारा लेते है । वे प्रयत्न तो स्वयं नहीं करते परन्तु उसका दोष भाग्य या भगवान अथवा उस अदृश्य सत्ता पर लगा देते हैं। यदि अमेरिका के लोग चन्द्रमा की यात्रा कर सकते हैं अथवा मनुष्यों द्वारा एवरेस्ट चोटी पर बार बार विजय प्राप्त की जा सकती है तो कौन सा ऐसा काम है जो मनुष्य नहीं कर सकता । आलसी व्यक्ति वह नहीं है जो कुछ करना नहीं चाहता परन्तु आलसी व्यक्ति वह व्यक्ति होता है जो अपने काम से भी अच्छा काम कर सकता है परन्तु करता नहीं। आलस्य आलसी व्यक्ति के हाथों,पैरों को तब तब जकड़ लेता है जब जब उसके अन्दर कोई काम करने की भावना पैदा होती है परन्तु वह उस काम को यह कह कर टाल देता है कि यह काम आज नहीं, कल कर लूंगा परन्तु वह शायद यह भूल जाते हैं प्रत्येक दिन साल का सबसे अच्छा दिन है (Everyday is the best day in the year.) एक भी दिन गंवाने का अर्थ है, जीवन के एक अंश को व्यर्थ जाने देना परन्तु आलसी व्यक्ति को यह समझना चाहिए–प्रत्येक दिन वास्तव में थोड़ा सा जीवन ही है (Each day is a little life.)
नीतिकारों का कहना है-पुरुषों में सिंह के समान उद्योगी पुरुष को ही लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। “दैव देगा” ऐसा तो केवल कायर पुरुष ही कहा करते है। देव को छोड़ कर अपनी भरपूर शक्ति से पुरुषार्थ करो और यदि फिर भी काय सिद्ध न हो तो सोचिये कि इसमें कहां और क्या कमी रह गई है ।
आलस्य मनुष्य के शरीर में रहने वाला ऐसा शत्रु है जिसके समान और कोई शत्रु नहीं एवं उद्योग ऐसा मित्र है जिसके समान कोई मित्र नहीं । पुरुषार्थ करने वाला मनुष्य कभी नष्ट नहीं होता ।
आलस्य के कारण ही मनुष्य रोगी होता है । स्वास्थ्य के सब नियमों को जानते हुए भी मनुष्य आलस्यवश उनका पालन नहीं करता । समय पर जागरण और व्यायाम करने वाला व्यक्ति कभी रोगी नहीं हो सकता। अत्यन्त धनी व्यक्ति विलासिता में डूब कर शारीरिक व्यायाम नहीं करते । इसीलिए धन से समृद्ध व्यक्तियों को ही बीमारी अधिक घेरती है । मन की स्वस्थता के लिए भी शारीरिक आर मानसिक आलस्य का त्याग करना पडेगा । मानसिक आलस्य शारीरिक आलस्य से भी अधिक हो जाता है. निराशा उसे चारों ओर से घेर लेती है, वह पराधीन और पराश्रित हो जाता है । पराधीन और पराश्रित को तो सपने में भी सुख नहीं मिलता । तुलसीदास जी ने ठीक ही लिखा है-
पराधीन सपने हुं सुख नाहीं । करि विचारि देखहु मन माँहु ॥
आलस्य से मनुष्य का पतन हो जाता है । आलसी विद्यार्थी कभी विद्या प्राप्त नहीं कर सकता। या तो उसका मन पढ़ाई में नहीं लगता या फिर वह किताब हाथ में लिए ऊंघता रहता है । गृहस्थाश्रम के लिए भी आलस्य बहुत ही हानिकारक है । यदि गृहस्थी आलस्य करेगा तो वह अपना और अपने परिवार के जीवन निर्वाह के लिए घातक सिद्ध होगा । आलसी व्यक्ति न तो व्यापार ठीक ढंग से कर सकता है, न वकालत, न नौकरी । और तो और प्रभु की भक्ति भी नहीं कर सकता।
आलसी व्यक्ति अनेक प्रकार के अवगुणों की खान होता है । संसार की सारी बुराइयों उसे आ घेरती है । वह सदैव दूसरों का सहारा चाहता है । वह अपने आप कुछ भी नहीं कर सकता । पानी में यदि सिवार हो तो मनुष्य उसमें अपना प्रतिबिम्ब नहीं देख सकता । इसी प्रकार जिसका चित्र आलस्य से पूर्ण होता है, वह अपना हित नहीं समझ सकता, दूसरों का हित भला क्या समझेगा । आलस्य जीवित व्यक्ति की मृत्यु है ।
उद्यम से ही सारे कार्य सिद्ध होते हैं, केवल मनोरथ से नहीं । जैसे सिंह की शक्ति और जंगल के राजा होने की शक्ति को जानते हुए भी उसके आहार के लिए जंगल पशु स्वयं ही उसकी सेवा में उपस्थित नहीं होते उसे भी अपने जीवन के निर्वाह के लिए शिकार पर जाना ही पड़ता है ।
मनुष्य को चाहिए कि वह आलस्य का त्याग करे । मनुष्य स्वय भाग्य का विधाता है । वह चाहे तो अपने परिश्रम द्वारा अपने भाग्य की रेखाआ को भी बदल सकता है । हमें चींटियों से शिक्षा लेनी चाहिए, जब देखो आगे बढ़ने और चलते रहने का प्रयत्न करते ही दिखाई देती हैं । कभी विश्राम नहा करती । गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जन के माध्यम से लोगों को कम करने की प्रेरणा दी है । आलस्य न करने वाला विवेकशील परुष निश्चय ही जावन संघर्ष में विजयी होता है ।