Home » Languages » Hindi (Sr. Secondary) » Hindi Essay, Moral Story, Story on Proverb “Kabira Tu Kabse Vairagi” “कबीरा तू कबसे वैरागी?” Complete Story Paragraph for Students of Class 9, 10 and 12.

Hindi Essay, Moral Story, Story on Proverb “Kabira Tu Kabse Vairagi” “कबीरा तू कबसे वैरागी?” Complete Story Paragraph for Students of Class 9, 10 and 12.

कबीरा तू कबसे वैरागी?

Kabira Tu Kabse Vairagi

एक बार गुरु रामानंद और उनके अनेक शिष्य किसी खास बात पर चर्चा कर रहे थे। उन दिनों शोर था कि शंकराचार्य शास्त्रार्थ में सबको हराते हुए काशी की ओर बढ़ते आ रहे हैं और अब काशी में उनका किस तरह से सामना किया जा सकता है? वहीं पर कबीर भी चुपचाप बैठे थे पर वे एक शब्द भी नहीं बोले। सबकी बातों को कबीर चुपचाप सुनते रहे।

रामानंद उठकर जैसे ही गए, सब शिष्य अपना-अपना काम करने में लग गए। कबीर तथा कुछ शिष्य बैठे रहे। इतने में किसी ने सूचना दी कि शंकराचार्य रामानंद को पूछते हुए इधर ही चले आ रहे हैं। कबीर आश्रम के बाहर आकर बैठ गए।

थोड़ी देर बाद कबीर देखते हैं कि शंकराचार्य डंड-कमंडल लिए अपने शिष्यों के साथ चले आ रहे हैं। शंकराचार्य ने पास आते ही कबीर से रामानंद के बारे में पूछा। कबीर ने उन्हें ठहरने के लिए जगह दी। प्रातःकाल का समय था। कबीर ने शंकराचार्य से कहा, “आप तब तक स्नानादि से निवृत्त हो जाइए। रामानंद कहीं गए हैं। अब आते ही होंगे।”

शंकराचार्य शौच के लिए तैयार हुए, तो कबीर से पूछा कि शौच के लिए किधर जाना है? कबीर ने थोड़ी दूर जाकर कहा, “उधर जंगल है, कहीं भी कर लेना।”

शंकराचार्य अपना कमंडल लिए जंगल की ओर बढ़ गए। थोड़ा फासला रखकर और आंख बचाते हुए कबीर भी उनके पीछे-पीछे चल दिए। कबीर ने देखा कि शंकराचार्य एक झाड़ी की आड़ में बैठकर शौच करने लगे। कबीर ने थोड़ी दूर खड़े होकर कहा, “राम, राम।” इतना सुनते ही शंकराचार्य मुंह दूसरी ओर करके बैठ गए। कबीर फिर घूमकर सामने पहुंचकर कहने लगे, “राम, राम।” शंकराचार्य फिर मुंह फेरकर बैठ गए। कबीर चुपचाप आश्रम लौट आए।

शंकराचार्य ने शौच के बाद गंगास्नान किया, पूजा-पाठ आदि की, तब निश्चिंत होकर लौटे। शंकराचार्य कबीर से बहुत नाराज थे। आते ही कबीर पर बरस पड़े। कहने लगे, “तुम बिल्कुल अशिष्ट हो। अज्ञानी हो। तुमको इतना भी ज्ञान नहीं कि शौच करते समय अशुद्धावस्था में होते हैं और उस समय यदि बोलता, तो राम नाम भी अशुद्ध हो जाता।”

कबीर और शंकराचार्य की आवाजें सुनकर रामानंद के अन्य शिष्य भी वहां आ गए। शंकराचार्य की बात सुनकर कबीर बोले, “आप कह रहे हैं कि अशुद्ध पहले ही थे, फिर आप शुद्ध कैसे हुए?”

शंकराचार्य को कबीर की बात बड़ी अटपटी लगी। शंकराचार्य ने कहा, “शुद्ध कैसे हुए! गंगास्नान करके और कैसे?”

कबीर ने फिर कहा, “आप तो शुद्ध हो गए, लेकिन गंगा का पानी अशुद्ध हो गया। उसमें जो भी स्नान करेंगे, सब अशुद्ध हो जाएंगे।”

शंकराचार्य कबीर को तीव्र बुद्धिवाला समझकर उत्तर देने लगे, “गंगा का पानी तो वायु के स्पर्श से शुद्ध हो गया।”

इस पर कबीर ने पूछा, “तब तो वायु दूषित हो गई। अब वायु का क्या होगा?” शंकराचार्य ने फिर उत्तर दिया, “अरे नासमझ, उस वायु को यज्ञ से पवित्र किया।”

कबीर बड़े प्रखर बुद्धि के साधक थे। फिर शंकराचार्य से उन्होंने एक प्रश्न कर दिया, “तब तो यज्ञ अशुद्ध हो गया। यह तो बहुत बुरा हुआ।”

शंकराचार्य ने कहा, “बुरा क्या हुआ, यज्ञ को भी मैंने शुद्ध कर दिया।” कबीर बोले, “यज्ञ किस चीज से शुद्ध कर दिया।” शंकराचार्य ने तुरंत उत्तर दिया, “राम नाम से।”

इतना सुनते ही कबीर ने कहा, “यह तो आपने बहुत बुरा किया। आपने राम नाम अशुद्ध कर दिया। हम सब राम का नाम ध्यान करते हैं।”

शंकराचार्य थोड़ा आवेश में आकर बोले, “अरे बच्चे, राम नाम तो कभी अशुद्ध होता ही नहीं। वह तो दूसरों को शुद्ध करता है।”

इतना सुनते ही कबीर बोल पड़े, “फिर शौच करते समय राम नाम कैसे अशुद्ध हो जाता? अभी आप ने कहा कि राम नाम हमेशा शुद्ध रहता है। इससे पहले आप कह रहे थे कि मैं अशुद्धि में था, इसलिए राम नाम नहीं ले सकता था। राम नाम अशुद्ध हो जाएगा।”

इतना कहकर कबीर ने अपने साथियों से कहा, “ले लो इनके डंड-कमंडल। जब ये रामानंद के शिष्य से नहीं जीत पाए, तो उनसे मिलकर क्या करेंगे?” रामानंद के शिष्यों ने शंकराचार्य के डंड-कमंडल ले लिए।

जाते समय शंकराचार्य ने पूछा, “हे रामानंद के श्रेष्ठ शिष्य! क्या अपना नाम बता सकोगे?” इतना कहना था कि कबीर के एक साथी ने कहा, “इनका नाम कबीर है।”

शंकराचार्य ने कबीर को प्रणाम किया और चले गए।

इधर कबीर ने अपने साथियों से कहा कि गुरुजी का पता लगाओ कि वे कहां चले गए? जब उन्हें ढूंढ़ा गया, तो वे उपलों के बिटौरे में छिपे मिले। शिष्य ने आवाज लगाई, “गुरुजी, बाहर आ जाओ। शंकराचार्य भाग गए।”

यह सुनकर पहले तो रामानंद को विश्वास नहीं हुआ। फिर भी पूछा, “यह कैसे हो गया?” शिष्य ने उत्तर देते हुए कहा, “कबीर ने शास्त्रार्थ में हरा दिया और उनके डंड-कमंडल छीन लिए।”

बिटौरे से निकलकर रामानंद अपने शिष्यों के पास पहुंचे। कबीर के पास आकर रामानंद खड़े हो गए और उन्हें ध्यान से देखने लगे। कबीर जैसे ही रामानंद के पैर छूने के लिए झुके, तो रामानंद ने रोक कर पूछा, ‘कबीरा तू कबसे वैरागी?’ आज से तू मेरा गुरु है।

About

The main objective of this website is to provide quality study material to all students (from 1st to 12th class of any board) irrespective of their background as our motto is “Education for Everyone”. It is also a very good platform for teachers who want to share their valuable knowledge.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *