Hindi Essay, Moral Story “Goo ka kida goo me hi khush rehta hai ” “गू का कीड़ा गू में ही खुश रहता है” Story on Hindi Kahavat for Students of Class 9, 10 and 12.
गू का कीड़ा गू में ही खुश रहता है
Goo ka kida goo me hi khush rehta hai
एक गुबरैला था। वह लगभग अपने आकार की गू की गोली बनाकर कभी आगे के पैर से बढ़ाता और जब उसे गोली चढ़ाई पर चढ़ानी होती तो उलटा चलता। पीछे के पैरों से गोली को चढ़ाता। कभी गोली लुढ़कती, तो उसके साथ खुद भी ऊपर-नीचे लुढ़कता हुआ नीचे आ गिरता। यह उसका रोजाना का काम होता।
खेत से लगा हुआ बाग था। बाग में तरह-तरह के फूल लगे हुए थे। एक दिन गुबरैला उड़ता हुआ बाग में जा पहुंचा। वहां उसे फूलों की गंध बहुत अच्छी लग रही थी। उधर से फूलों पर बैठता हुआ एक भौंरा उसके पास से निकला। गुबरैला को देखकर भौरे को तरस आ गया। भौरे ने पूछा, “गुबरैला भाई, तुम्हें यहां कैसा लग रहा है?”
गुबरैले ने कहा, “यह तो स्वर्ग है भाई। यह मेरे भाग्य में कहां?” भौरे ने कहा, “भाग्य-वाग्य को छोड़। इसका सुख तू भी ले सकता है। तू मेरे साथ रहने लग।”
गुबरैले ने भौरे की बात मान ली और दोनों साथ-साथ रहने लगे। बहुत जल्दी दोनों पक्के दोस्त हो गए। जब बाग से दूसरे बाग जाना होता, तो भौंरा गुबरैले को अपनी पीठ पर बैठा लेता और उड़ जाता। गुबरैला भी अब तरह-तरह के फूलों की सुगंध लिया करता और मकरंद का पान किया करता।
एक दिन भौंरा कहीं जा रहा था। गुबरैला उसकी पीठ पर बैठा था। खेतों से होते हुए निकला। खेतों में फसल खड़ी हुई थी। खेतों में मेड़ के किनारे-किनारे रमास की फलियां और फूल लगे हुए थे। उन फूलों पान करने के लिए उसका मन हो आया। जब भौंरा रमास के फूलों के पास आया, तो गुबरैला की नजर गू पर पड़ी। गुबरैला कुदकर गू के पास पहुंच गया। भौंरा ने साथ चलने के लिए बहुत कहा, लेकिन वह टस-से-मस नहीं हुआ।
भौंरा बिना मकरंद पिए वहां से चला आया। यह दृश्य एक किसान देख रहा था। किसान के मुंह से निकल पड़ा, ‘गू का कीड़ा गू में ही खुश रहता है।‘