Hindi Essay on “Kam Umar me Padhai ka Bojh”, “कम उम्र में पढ़ाई का बोझ” Complete Paragraph, Nibandh for Students
कम उम्र में पढ़ाई का बोझ
Kam Umar me Padhai ka Bojh
संकेत बिंदु -खो गया है बचपन–माता–पिता की इच्छाओं का दबाव –खेलने के समय का अभाव
वर्तमान समय में बच्चों का जीवन स्वाभाविक नहीं रह गया है। उनका बचपन जिस प्रकार का स्वतंत्र एवं खेलने वाला होना चाहिए, वैसा नहीं रह गया है। लगता है उनका बचपन कहीं खो गया है। ऐसी स्थिति क्यों उत्पन्न हुई है? आजकल बच्चों पर 2-3 वर्ष की आयु में ही पढ़ाई का बोझ डाल दिया जाता है। पढ़ाई की एक निश्चित उम्र होती है। यह कम से कम 5 वर्ष तो होनी चाहिए। कम उम्र में पढ़ाई का बोझ उन्हें बचपन जीने से वंचित कर देता है। बच्चों को माता-पिता की इच्छाओं का दबाव सहना पड़ता है। प्रत्येक माता-पिता अपने बच्चे को शीघ्र पढ़ा-लिखाकर एक सफल नौकरशाह या व्यापारी बना देना चाहते हैं। इसी चक्कर में बच्चों को खेलने का समय नहीं मिल पाता। बच्चे के विकास में खेलने का भी काफी महत्त्व होता है। पढ़ाई का बढ़ता बोझ बच्चे को गंभीर प्रकृति का बना देता है। उसे बचपन जीने का अवसर ही नहीं मिल पाता।