Goswami Tulstidas “गोस्वामी तुलसीदास” Hindi Essay, Paragraph in 1200 Words for Class 10, 12 and competitive Examination.
गोस्वामी तुलसीदास
Goswami Tulstidas
“कविता करके तुलसी न लसै,
कविता लसी पा तुलसी की कला।”
कविता रचने से तुलसीदास धन्य नहीं हुए बल्कि वह कविता धन्य हो गई जिसे अपनी लेखनी से उन्होंने रच दिया। इससे अधिक तुलसी की काव्य-कला के विषय में कुछ कहना आवश्यक नहीं हैं। तुलसी विश्व साहित्य में सर्वश्रेष्ठ रचनाकार के रूप में अपनी पहचान के मुहताज नहीं है।
कवि कुल-कुमुद दिवाकर तुलसीदास हिन्दी काव्य-जगत् में अपनी उज्ज्वल आभा के लिए अमर हैं। तुलसी की कला वस्तुतः अद्वितीय है, उनकी तुलना किसी से करना सूर्य को दीपक दिखाने जैसा है।
प्रायः महान् विभूतियों के जन्म असाधारण परिस्थितियों में होते रहे हैं राम का जन्म पिता राजा दशरथ की वृद्धावस्था में पुत्र न होने की चिन्ता में घोर निराशा की घड़ी में हुआ था। कृष्ण का जन्मपिता वासुदेव और माता देवकी के बन्दीगृह में रहने की अवस्था में हुआ था। तुलसीदास का जन्म भी तब हुआ था तब सम्पूर्ण भारत यवनों के पैरों से कुचला जा रहा था। हिन्दू जाति अपना भौतिक और आध्यात्मिक गौरव खो चुकी थी। सांस्कृतिक प्रकाश उससे कोसों दूर चला गया था।
दुःख का विषय है कि एक मनीषी का जीवन-वृत्त आज भी भारतीय विद्वानों के बीच विवाद का विषय बना हुआ है। गोस्वामी जी का जन्म अति निर्धन सरयूपारीण ब्राह्मण कुल में बांदा जिले के अन्तर्गत (उ. प्र.) राजापुर गांव में हुआ था। अधिकतर विद्वानों के मत से उनका जन्म संवत् 1554 में हुआ था। इसके पिता का नाम आत्माराम दूबे और माता का नाम हुलसी था। अशुभ घड़ी में जन्म लेने के कारण इनके माता-पिता का प्यार इन्हें नहीं मिल सका। इनके बाल्यकाल में ही दोनों (माता-पिता चल बसे। तुलसी की स्वोक्ति के आधार पर बात सत्य प्रतीत होती है-
जननि जनक तज्चो जनमि करय बिनु विधि हू सृज्यो अब डेरे, तनु तज्यो कुटिल कीट ज्यों तज्यौ मातु पिता हूँ।
अपनी बाल्यावस्था के दैन्य पर प्रकाश डालते हुए एक स्थान पर तुलसीदास ने कहा है-
वारे ते ललात बिललात द्वार-द्वार दीन ।
जानत हौं चारि फल चारि ही चनक कौ ।
इस प्रकार मातृ-पितृ स्नेह से वंचित तुलसी जिनका वास्तविक नाम ‘राम बोला’ था, अनाथ होकर साधुओं की शरण में पहुँचे। महात्मा नरहरिदास ने रामकथा सुना-सुनाकर बालक तुलसी के मन राम भक्ति के संस्कार भर दिए। कुछ बड़ा हो जाने पर काशी के शेष सनातन ने सम्पूर्ण शास्त्रों की शिक्षा दी।
सर्वविद्या पारंगत होकर तुलसी गांव लौटे, रत्नावली नामक एक ब्राह्मण कुमारी से विवाह किया। यौवन के उन्माद ने उन्हें इतना आसक्त कर दिया कि पत्नी के मायके जाने पर ये भी पीछे-पीछे पहुँच गए। पत्नी की लज्जावृत्ति ने रात्रि के एकान्त में तुलसी की भर्त्सना की-
लाज न लागत आप को दौरे आय हुं साथ ।
घिम् घिम् ऐसे प्रेम को कहा कहौं मैं नाथ ॥
अस्थि चर्ममय देह मम तामें ऐसी प्रीति ।
जो होती श्री राम मँह होति न तो भव भीति ॥
ये वचन क्या थे, वज्र का प्रहार था जिसने तुलसी के हृदय पर लगे मोहकपाट को ध्वस्त कर दिया। धन्य हो नारि, तुम्हारे त्याग ने हिन्दू जाति को महाकवि तुलसी दिया। सर्वप्रथम तुलसीदास काशी गए। काशी में उन्होंने वेदों, पुराणों और शास्त्रों का मंथन किया, फिर अयोध्या चले गए। अयोध्या में ही उन्होंने विश्व विश्रुत महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ लिखना प्रारम्भ किया। काशी में रामचरितमानस समाप्त किया। यहाँ उन्होंने ‘विनय पत्रिका’, ‘दोहावली’, ‘रामाज्ञा प्रश्न’ और ‘कवितावली’ इत्यादि ग्रन्थों की रचना की। संवत् 1680 में काशी के ही ‘अस्सीघाट’ पर उनकी मृत्यु हो गई।
हिन्दी काव्य-साहित्य में जिस उच्च आसन पर गोस्वामी जी आसीन हैं, वहाँ तक अभी किसी की पहुँच नहीं है। अपनी सर्वतोमुखी प्रतिभा द्वारा उन्होंने हिन्दी काव्य की प्रचलित सभी रचना शैलियों में रामचरित की सुधा-धारा प्रवाहित करके उनमें पूर्ण सफलता प्राप्त की है। वीरगाथा काल की ‘छप्पई’ पद्धति का प्रयोग नामक ग्रन्थ की रचना की- ‘कवितावली’ में देखा जा सकता है। कबीरदास की दोहा पद्धति पर ‘दोहावली’
एक भरोसा एक बल एक आस विश्वास ।
एक राम धन स्याम हित चातक तुलसी दास ॥
जायसी की दोहा-चौपाई पद्धति पर गोस्वामी जी का ‘रामचरितमानस’ बहुत प्रसिद्ध है। उनमें चौपाई का एक उदाहरण द्रष्टव्य है-
कंकन किंकिन नुपुर धुनि सुनि ।
कहत लखन सम राम हृदय गुनि ॥
मानहुं मदन दुन्दुभी दीन्हीं ।
मनसाविस्व विजय कर दीन्हीं ॥
विद्यापति और सूरदास की गीत पद्धति पर गोस्वामी जी ने ‘गीतावली’ ‘कृष्ण गीतावली’ और ‘विनय पत्रिका’ की रचना की है। गंग आदि कवि की कवित्त-सवैया पद्धति पर गोस्वामी जी की कविता बनी है। एक सवैया द्रष्टव्य है-
दूलह श्री रघुनाथ बनै दुलही सिय सुन्दर मंदिर माहीं ।
गावति गीत सबै मिलि सुन्दरी, वेद………
राम के रूप निहारति जानकी, कंकन के नग की परछा हीं,
याते सबै सुधि भूल गई, कटि टेक रही पल टारतिनाहीं ॥
हिन्दी के किसी अन्य कवि को हम इस प्रकार विभिन्न शैलियों में रचना करते नहीं पाते हैं। भाषा पर गोस्वामी जी का पूर्ण अधिकार था। काव्य की दोनों तत्कालीन प्रचलित भाषाओं (अवधी और ब्रजभाषा) पर उनका पूर्ण अधिकार था। उक्त दोनों भाषाओं पर जैसा समान अधिकार गोस्वामी जी का है वैसा किसी अन्य कवि का नहीं है। सूर और जायसी जैसे श्रेष्ठ कवि भी केवल एक भाषा पर अधिकार रखते हैं।
गोस्वामी तुलसीदास जी अपने युग के प्रतिनिधि कवि हैं। ये रामकाव्य के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। उनका भाव और भाषा पर पूर्ण एवं समान अधिकार था। यद्यपि उनकी भाषा अवधी है तथापि उन्होंने अपने युग की प्रचलित सभी भाषाओं का प्रयोग किया है। उन्होंने प्रचलित समस्त छन्दों में रचनाएँ की हैं। उन्होंने अपने युग की सम्पूर्ण शैलियों में रचना करके यह सिद्ध कर दिया है कि उनमें काव्य-रचना की अपूर्व शक्ति थी। उन्होंने चन्द की छप्पई, कबीर का दोहा, सूर के पद और गीत, जायसी के दोहा-चौपाई, रीतिकारों का कवित्त-सवैया, रहीम के बरबै और ग्रामीणों की ‘सोहर’ शैलियों में काव्य-रचना कर अपनी अपूर्व काव्य-प्रतिभा का परिचय दिया है। बाह्य-दृश्य-चित्रण की दृष्टि से गोस्वामी जी हिन्दी के अन्य कवियों से ऊंचे हैं। चित्रकूट के प्राकृतिक दृश्य का जैसा सजीव और मनोहारी वर्णन तुलसी ने किया है वह दुर्लभ है! उक्ति का अनूठापन, भाषा की विविधता, अलंकारों की छटा और रसों का परिपाक-सभी उनके काव्य सौन्दर्य को बढ़ाने वाले हैं।
गोस्वामी जी की प्रबन्ध-पटुता का उदाहरण ‘रामचरितमानस’ है जो आज हिन्दू जन समूह का कंठहार बना हुआ है। उसमें रामकथा आदि से अन्त तक अबाध गति से प्रवहमान है और भिन्न-भिन्न घटनाएं शृंखला की कड़ियों की भांति एक-दूसरे से जुड़ी हुई है। कहीं भी कथा में शिथिलता नहीं आई है। चरित्र-चित्रण प्रबन्ध-पटुता का एक अंग है। गोस्वामी जी ने दशरथ, राम, लक्ष्मण, भरत, सीता, कैकेयी, मन्थरा, कौशल्या, मन्दोदरी आदि पात्र-पात्राओं के बहुत सुन्दर चित्र खींचे हैं। विषम परिस्थितियों में पात्र-पात्राओं को डालकर उनके चरित्र की विशेषताओं का उद्घाटन करना सफल महाकवि का कार्य है।
महाकवि गोस्वामी तुलसीदास का व्यक्तित्व भिन्न-भिन्न रूपों में हमारे सम्मुख उपस्थित हुआ है। वह एक साथ भक्त, साधक, दार्शनिक, सुधारक विवेचक और उपदेशक हैं। वे अपने सभी रूपों में अद्वितीय हैं। सारांश यह कि गोस्वामी तुलसीदास की कीर्ति-पताका भगवती वीणा पाणि के कर-कमलों में विद्यमान है। इसी एक कवि ने हिन्दी साहित्य को विश्व साहित्य के शिखर पर पहुँचा दिया। तुलसीदास जैसा कवि पाकर हिन्दी-साहित्य कृत-कृत्य हो गया और हिन्दू जाति का बेड़ा पार हो गया।
राम चरित-सरसिज मधुप पावन चरित नितान्त ।
जय तुलसी कवि-कुल-तिलक, कवित कामिनी कान्त ॥
गोस्वामी जी की रचनाएँ अपनी साहित्यिक विशेषताओं से परिपूर्ण हैं। रस्किन ने एक स्थान में लिखा है-
“आदर्श काव्य ग्रंथ शब्दशः नहीं, अक्षरशः पठनीय होते हैं।”-इस कसौटी पर विश्व के प्रायः सभी कवि विशिष्ट काव्य के गौरवपूर्ण पद से च्युत हो जाएंगे। परन्तु महाकवि तुलसीदास बिल्कुल और बराबर खरे उतरेंगे। उनके शब्द-शब्द में अश्क की बूंद है, पंक्ति-पंक्ति में सुधार का संदेश है और पृष्ठ-पृष्ठ में जीवन की ज्योति है।
श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं इसलिए उनके चरित-रचयिता हमारे प्रिय कवि अपनी मर्यादा पालिनी शक्ति के लिए हिन्दी क्या, विश्व-साहित्य में भी बेजोड़ हैं। तुलसी का वासना-विहीन प्रेम-वर्णन लोक मंगलकारी होने से बिहारी, विद्यापति, मतिराम, देव, कबीर, मीरा, रसखान, घनानन्द, सूरदास के प्रेम-वर्णनों से श्रेष्ठतर हैं।