Ek Vishvavidhyala ke bare me aapki dharna “एक विश्वविद्यालय के बारे में आपकी धारणा” Hindi Essay 500 Words for Class 10, 12.
एक विश्वविद्यालय के बारे में आपकी धारणा
Ek Vishvavidhyala ke bare me aapki dharna
स्वतन्त्रोत्तर भारत में विश्वविद्यालयों की संख्या में बहुत तेजी से वृद्धि हुई है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने उन्हें उदार अनुदानों की मंजूरी दी है। अति विशाल इमारतें विभिन्न शहरों और महानगरों में बनी हैं और इन्हें विद्या का केन्द्र समझा जाता है।. वास्तव में यह राजनीतिक षड्यंत्र का अखाड़ा सिद्ध हो रहा है जब कि उनसे ज्ञान और पाण्डित्य फैलाने की उम्मीद की जाती है। वे अनुशासनहीनता, हिंसा, हड़ताल और यहाँ तक कि बर्बरता का श्वास ले रही हैं। ईश्वर का घर अब शैतान के घर में तब्दील हो गया है।
ये इमारतें नहीं हैं जो विश्वविद्यालय बनाती हैं। यह शिक्षकों और छात्रों की योग्यता है। शिक्षक विश्वविद्यालय के जीवन-श्वास होते हैं। उनकी बेहतरी के लिए सबसे ज्यादा ध्यान देना चाहिए। वे विद्या के सच्चे उपासक हों, उन्हें अपने विषय के प्रति निष्ठावान और समर्पित होना चाहिए। लीकॉक ने खूब कहा है कि अगर उसे ऐसा शिक्षक मिले तो वह उन्हें खरीदेगा, उनकी खुशामद करेगा और अपने संस्थान को मजबूत बनाने के लिए वह उनका अपहरण भी कर सकता है। ऐसे शिक्षकों की सेवा प्राप्त करने के लिए कुछ भी करना चाहिए। ऐसे शिक्षक पढ़ाई के लिए उचित वातावरण तैयार करते हैं। छात्र ऐसे शिक्षकों की पूजा करते हैं। जैसे सूर्य के आते ही कुहासा गायब हो जाता है वैसे ही ऐसे शिक्षकों के आने से अनुशासनहीनता गायब हो जाती है।
एक विश्वविद्यालय को अन्धाधुंध छात्रों का नामांकन नहीं करना चाहिए। सिर्फ ऐसे छात्रों को ही दाखिला देना चाहिए जिन्हें वास्तव में पढ़ाई में रुचि हो। ‘योग्य दर्शक यद्यपि कम हैं’ आदर्श वाक्य होना चाहिए। एक शिक्षक पर छात्रों की भीड़ का बोझ नहीं होना चाहिए। एक अंक और दो गणक, बस इतना ही काफी है। अपने छात्रों से शिक्षक का निजी सम्पर्क होना चाहिए। जैसे एक दीपक दूसरों को प्रकाशित करता है उसे अपने छात्रों में कौतुक जगाना चाहिए। व्याख्यान सुनने से कहीं ज्यादा वाद-विवाद या तर्क से कोई ज्यादा सीख पाता है। छात्रों की ज्यादा संख्या ज्ञान के प्रसार में बाधा पहुँचाती है। वे सिर्फ आदेश और नकल को प्रोत्साहन देते हैं।
एक अच्छे विश्वविद्यालय को पुस्तकालय पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। विद्यार्थियों को उनको मुफ्त इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहन देना चाहिए। शिक्षक, मार्गदर्शक, दार्शनिक और एक मित्र का काम करेंगे तथा छात्र उनसे यह सब ग्रहण करेंगे।
पुस्तकालय की तरह प्रयोगशालाएँ भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण हैं। हम पुस्तक में जो कुछ भी पढ़ते हैं उसे प्रयोगशाला में जाँच सकते हैं। वे आधुनिक युग के मन्दिर हैं। उस पर जो धन व्यय होता है वह उचित व्यय होता है। उन्हें हमेशा कार्यशील रहना चाहिए। प्रयोग कभी न खत्म होने वाली तलाश है। यह सच्चाई का अनुसरण करता है। हमें खेलकूद को ज्यादा महत्त्व नहीं देना चाहिए। विश्वविद्यालयों में लघु खेलकूद और कसरत सही है किन्तु हमें दूसरे विश्वविद्यालय को दिखाने के लिए खेलकूद को प्रतीक पूजा बनाकर मैच और टूर्नामेंट नहीं आयोजित करने चाहिए। ये अध्ययन में बाधा उत्पन्न करते हैं। विश्वविद्यालयों में शांत और सौम्य वातावरण होना चाहिए। विश्वविद्यालय के शिक्षकों और छात्रों दोनों को मौन कार्यकर्त्ता की तरह अपना कार्य करना चाहिए।