Atithi Devo Bhava “अतिथि देवो भव:” Complete Hindi Essay, Paragraph, Speech for Class 10, 12 and Graduate Students.अतिथि देवो भव:
अतिथि देवो भव:
Atithi Devo Bhava
भारत में परम्परागत रूप से किसी मेहमान को ईश्वर के बाद दूसरा दर्जा दिया जाता है और इसलिए वह अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है। प्रत्येक व्यक्ति से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने मेहमानों का ध्यान रखें और उन्हें किसी भी तरह की तकलीफ न दे। दूसरी ओर, मेहमान को अपने मेजबान के प्रति पूर्णतया वफादार होना पड़ता है क्योंकि वह उसके घर का नमक खाता है। वस्तुतः, ‘अरेबियन नाइट्स’ की प्रसिद्ध कहानी ‘अलीबाबा और चालीस चोर’ में चोरों का नेता केवल मिठाइयों की मांग करता है ताकि ऐसा न हो कि उसे अली बाबा के घर पर खाए गए नमक के साथ विश्वासघात करना पड़े। वास्तव में विश्व भर में मेहमानों के साथ ध्यानपूर्वक एवं आदर सहित बर्ताव किया जाता है विशेषता यह जापानियों तथा चीनियों में व्यापक रिवाजों का प्रचलन प्रतीत होता हैं जिनका वे आज भी पालन करते हैं परन्तु संभवतः उतने व्यापक ढंग से नहीं।
प्रसिद्ध चाय का रिवाज मूल रूप से एक चीनी परम्परा है जिसने स्थानीय रीति-रिवाज, पारिवारिक इतिहास तथा वैयक्तिक अभिरूचि के अनुसार विशेष रूप धारण कर लिया है। ऐतिहासिक दृष्टि से इसे वैवाहिक समारोह के रूप में माना जाता है जहां वर तथा वधू अपने माता-पिताओं तथा बड़ों के प्रति कृतज्ञता एवं आदर जताते हैं। दंपत्तियों द्वारा वर के माता-पिताओं को तथा कभी-कभी दोनों पक्षों के माता-पिताओं को चाय की पेशकश की जाती है। हांगकांग में यह रिवाज वर के माता-पिताओं के घर के मुख्य बैठक कक्ष में संपादित किया जाता है जहां सिर्फ परिवार के नजदीकी लोग होते हैं। काशीदाकारी की हुई गहरे लाल रंग की रेशमी पोशाक तथा घूँघट में देदीप्यमान वधू अपने वर के साथ घुटने के बल बैठ कर परलोक तथा इहलोक का शुक्रिया अदा करती है। उसके बाद वह वर के माता-पिता का दण्डवत अभिवादन करती है (जबकि वर, वधू के माता-पिता का अभिवादन करता है) तथा उन्हें चाय पेश करती है। बदले में उसे विवाह का उपहार मिलता है जो परिवार में उसकी स्वीकृति का प्रतीक होता है। ये उपहार प्रायः गहने के रूप में होते हैं तथा विशेषकर अत्यधिक मूल्यवान होते हैं। इसके बाद वधू, वर के भाई-बहन का झुक कर अभिवादन करती है जहां वह सर्वप्रथम सबसे बड़े भाई एवं उसकी पत्नी का अभिवादन करती है और इन्हें चाय पेश करती है। वे भी उसे गहने का उपहार अथवा एक लाल लिफाफे में “सौभाग्यशाली” रूपये-पैसे देते हैं। अब यह परंपरा उस रिवाज के लिए अधिक प्रसिद्ध है जिस रिवाज से पूर्वी देश के लोग अपने मेहमानों को चाय देते हैं। निकटवर्ती कोरिया में चाय पीने के समय मेहमानों को पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके बैठना होता है जबकि मेजबान को पूर्व की ओर दक्षिण दिशा की ओर अभिमुख उत्तरी स्थान राजा के लिए आरक्षित रहता है। पूर्वी देशों में लोगों में वृत्ताकार स्थिति में बैठने का कोई रिवाज प्रचलित नहीं है। आदर्शतः चाय तीन मेहमानों को दी जानी चाहिए। इनमें से सबसे बड़े को मेहमान की ओर अभिमुख होना चाहिए, दूसरे सबसे बड़े को उसकी दायीं ओर तथा सबसे छोटे को उसकी दायीं ओर बैठना चाहिए। सबसे बड़े मेहमान की तुलना सूरज से की जाती है, दूसरे सबसे बड़े की तूलना चांद से तथा सबसे छोटे की तुलना तारे से की जाती है।
हालांकि मोरक्को में चाहे शुक्रवार की रात हो अथवा शनिवार का मध्याह्न, शब्द भोजन के लिए आज कल एक दूसरे को आमंत्रित करना आम बात है जो एक अभूतपूर्व रिवाज है। विगत में प्रत्येक व्यक्ति को खुद का शब्द तैयार करना होता था और इस खुशी अथवा वरदान को उनसे छीनने की किसी की हिम्मत नहीं थी। तथापि यदि किसी तरह का निमंत्रण दिया भी जाता था तो मेहमान को शुक्रवार के अपराह्न से ही अपने मेजबानों के साथ शब्द की पूरी अवधि बितानी होती थी। उसकी मेजबानों द्वारा पूरी मेहमानवाजी की जाती थी और अपने शब्द (जो परंपरानुसार रविवार की सुबह तक चलता था) के लिए उन्हें कुछ भी नहीं देना होता था।
आतिथ्य-सत्कार अरब संस्कृति की आधारशिला है। बद्द जनजातियों के आविर्भाव के समय से ही रेगिस्तान के झुलसाने वाले भूभाग पर अप्रत्यक्ष संदेह के साथ एक दूसरे से मुकाबला करते समय एक साथ बैठकर भोजन को आपस में बांटने के समझौते से एक ऐसा गुप्त वादा किया गया जिसके अन्तर्गत संघर्षो को तब तक रोके रखने की बात थी जब तक वे एक दूसरे का साथ न छोड़े देते हों।
किसी जरूरतमंद व्यक्ति को आश्रय प्रदान करने की पश्तुनी परंपरा सदियों पुरानी है, शायद यही वह कारण है कि सउदी अरब में जन्म लेने वाला भिन्नमतावलंबी ओसामा बिन लादेन अफगानिस्तान में एक मेहमान के रूप में रहता है और न कि विश्वव्यापी आक्रमों में हजारों की मौतों के लिए वह न्यायिक जांचाधीन के रूप में। आश्रय, अलिखित संहिता जिसे पश्तुनवली अथवा पख्तुनवली कहा जाता है-पश्तुनों के रिवाज- का एक भाग है, जिसमें इस क्षेत्र के लोगों के लिए अपनी जान की कीमतों पर मर्यादा कायम रखना अपेक्षित होता है। इस संहिता के अन्तर्गत पश्तुनों द्वारा उन लोगों को संरक्षण अवश्य ही दिया जाना चाहिए जो संरक्षण चाहते हैं- चाहे वे भगोड़े अपराधी ही क्यों न हों- और पश्तुनवली का संरक्षण करने के लिए अपनी जान की बाजी लगा देते हैं। प्रायः पाकिस्तान में अपराध करने के बाद लोग गिरफ्तारी से बचने के लिए देश के अर्ध-स्वायत्त पश्तुन जनजातीय क्षेत्र में भाग जाते हैं जो अफगानिस्तान की सीमा पर है।
कुछ संस्कृतियों में मेहमान बनना अत्यधिक सुविधाजनक होता है क्योंकि वे आपका अपने ढंग से इतना ज्यादा ध्यान रखते हैं कि उनके हिसाब से चलने से इन्कार करने से गंभीर प्रतिक्रिया हो सकती है।
तथापि, सामान्य रूप से यह परिदृश्य व्यापक रूप से परिवर्तित हुआ प्रतीत होता है। परिवर्तित सोच के साथ-साथ आधुनिक जीवन शैलियों तथा रहन-सहन से मेहमान मेजबान संबंध अधिक सहज तथा अपेक्षाकृत कम बोझिल हो गया है, यह संबंध इस सीमा तक सरल हो गया है कि जब मेजबान असुविधा महसूस करता है तो मेहमान अवांछनीय प्रतीत होते हैं। एक समय था विशेषकर भारत तथा इंग्लैंड में कि जब मेहमान आते थे तो वे महीनों साथ ठहरते थे और कई बार शायद ही उन्हें परिवार के अन्य सदस्यों से अलग कहा जा सकता था। ऐसा आंशिक रूप से परिवहन के साधनों की सीमाबद्धता तथा उनके द्वारा लिए जाने वाले समय के कारण ही था जिससे आप जब इतनी कठोर यात्रा के बाद पहुंचते थे तो आपको इतनी जल्दी जाने के लिए शारीरिक रूप से फिट नहीं समझा जाता था। साथ ही, ऐसा प्रतीत होता है कि लोगों के पास आपको देने के लिए अधिक समय होता था तथा आपमें अभिरूचि होती थी। वर्तमान समय में लोगों के पास परिवार के अन्य सदस्यों के लिए मुश्किल से समय बचता है, मेहमानों की तो बात ही छोड़ दें।
उन दिनों संगति मनोरंजन का एक साधन हुआ करता था परन्तु अब लोग अपने घर तथा आस-पड़ोस में ही अपना मनबहलाव कर सकते हैं और उन्हें किसी और की जरूरत नहीं होती। टी.वी. तथा कम्प्यूटर लोगों को घरों में व्यस्त रखते हैं तथा क्लब, सिनेमा हाल, थियेटर तथा फन- पार्क इत्यादि उन्हें घर से बाहर व्यस्त रखते हैं। साथ ही, उन्हें या तो मेहमानों का सत्कार करने अथवा दोस्तों तथा सगे-संबंधियों के यहां भी जाने में समर्थ होने के लिए बहुत कुछ करना होता है। यदि वे नजदीक रहते हैं तो यात्रा के सरल साधन उनकी उसी दिन वापसी को संभव बनाते है और यदि वे बहुत दूर रहते हैं तो उन्हें अपने कार्य, ड्यूटी अथवा अपने बच्चों के स्कूल से दूर रहना असंभव लगता है।
अनेक अंग्रेजी साहित्य ग्रन्थ मेहमानों का सत्कार करने को तत्पर परिवारों पर केन्द्रित है तथा इनमें यह दर्शाया गया है कि किस तरह वे शहरों तथा गांवों में पार्टी में शामिल होते हैं। ब्रिटिशों ने उन पार्टी वाले रिवाजों को बहुत पहले ही छोड़ दिया तथा आगन्तुकों के दिन नियत कर दिए और आगन्तुक केवल खुले निमंत्रण वाले दिन ही आ सकते थे। शेष दिनों के दौरान लोग वांछनीय नहीं हैं। कारण निश्चित रूप से यह है कि लोगों को उन दिनों आने का कष्ट नहीं उठाना चाहिए जब वे मेजबान को घर पर पा ही न सकें।
साथ ही, इन दिनों जब प्रत्येक व्यक्ति से अपने स्वयं का काम करने की आशा की जाती है तो लोग अधिक आत्म केन्द्रित हो जाते हैं और दूसरे की खुशी के लिए लोगों की आवभगत करने की बहुत अधिक परेशानी उठाना आवश्यक नहीं समझते हैं।
अब केवल उन मेहमानों का स्वागत किया जाता है जो अत्यधिक अजीज होते है, शेष मेहमान अपना भाग्य कहीं और आजमा सकते हैं। अब लोग दूर के संबंधियों अथवा उनके मूल स्थान की जान-पहचान वालों की आवभगत करने के लिए अपने को नैतिक रूप से आबद्ध महसूस नहीं करते हैं। प्रत्याशित मेहमान भी होटल का कमरा बुक करके अपनी समय-सारणी के अनुसार अपने कार्य करने और अपने मेजबानों द्वारा मार्गदर्शन न दिए जाने को अधिक सुविधाजनक पाते हैं।
भोजन विश्व भर में सामाजिक संबंध बनाने तथा कायम करने का एक अत्यन्त ही महत्वपूर्ण भाग है। पुराने जमाने से ले कर वर्तमान समय तक, भोजन मिल-बांट कर खाने से सहभागियों में एक संबंध का जन्म होता है। दोस्तों, व्यावसायिक सहयोगियों अथवा राजनीतिक अथवा षडयंत्रकारी मित्रों के साथ आपस में औपचारिक दावत में भाग लेने से नए अथवा सतत संबंध बनते हैं और इसी भावना से जन्म, विवाह तथा मृत्यु के समय हमारे यहां पारंपरिक दावतें आज भी प्रचलित हैं। अत्यधिक खर्च तथा कठिनाई सहते हुए भी मेहमानों का स्वागत करने तथा उनका पूरा ध्यान रखने का रिवाज अभी भी हम पर बंधनकारी है। आज भी लोग कर्ज लेते हैं अथवा अपनी संपत्ति बेचते हैं जिससे कि वे पर्याप्त संख्या में महमानों का निमंत्रण करने तथा उनकी देखरेख संबंधी व्यवस्था कर सकें। एक अच्छा मेजबान समझा जाना आज भी गर्व की बात मानी जाती है।
जिन मेहमानों तथा मेजबानों की हम चर्चा कर रहे हैं, वे वैयक्तिक मेहमान तथा मेजबान होते हैं लेकिन अन्य प्रकार के मेहमान और मेजबान भी होते हैं जैसे कि शरणार्थी और मेजबान देश। ये अब तक के सर्वाधिक अवांछनीय मेहमान प्रतीत होते हैं, उतना अवांछनीय जितना कि खतरनाक वाइरस परपोषी शरीर के लिए होता है। भारत में रहने वाले बांग्लादेशी निवासी इसका साक्ष्य प्रस्तुत कर सकते हैं। ये मेहमान उतने अवांछनीय होते हैं कि उन्हें बुनियादी मानवीय आवश्यकताओं से भी वंचित किया जाता है और उन्हें दूर रखने के लिए युद्ध भी लड़े जाते हैं। यह ऐसे मेहमानों का अतिक्रमणशील स्वभाव तथा मेजबान देश के सामने उनके द्वारा प्रस्तुत खतरा ही है जिससे ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं। शरणार्थियों को उनके वापस अपने देशों में निर्वासन के पूर्व न केवल आश्रय से ही वंचित रखा जाता है बल्कि उन्हें बंदीगृहों अथवा शिविरों में यातनाएं भी दी जाती हैं। उसी तरह, जिस तरह वाइरस को दूर करने तथा उन्हें मारने के लिए भी हम विष लेपित सभी तरह की कड़वी गोलियां खाते हैं।
इस परिदृश्य के दूसरी ओर ऐसा पर्यटक है जो प्रायः सदा ही एक वांछनीय मेहमान रहा है क्योंकि वह राजस्व प्रदान करता है तथा कई बार मेजबान देश की जनसंख्या के संपोषण को समर्थ बनाता है। ऐसे मेहमान को विभिन्न माध्यमों से अत्यधिक आकर्षित किया जाता है। उसे मेजबान देश का पर्यटन करने के लिए लुभाया एवं प्रोत्साहित किया जाता है। उसकी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सभी प्रयास किए जाते हैं और ध्यान दिया जाता है, यहां तक कि कभी-कभी मेजबान देश के सदस्यों की कीमत पर भी, जिससे कि वे सुखद यादें अपने साथ वापिस ले जाएं। भारत में गोवा में तथा दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में प्रचलित पीडोफिलिया इसका एक उदाहरण है। वस्तुतः पर्यटन के कारण कभी-कभी स्थान का व्यावसायिकीकरण हो जाता है और उस क्षेत्र की पारिस्थितिकी के लिए खतरा उत्पन्न हो जाता है, और रेस्तरां तथा होटलों के निर्माण के लिए लोगों की भूमि का अधिग्रहण होने पर जनसंख्या आवासविहीन हो जाती है।
तथापि, सेवा उद्योग ही ऐसा क्षेत्र है जो अभी-भी वस्तुतः मेहमान को ईश्वर के ठीक बाद अथवा ईश्वर का साकार रूप मानता है, क्योंकि उनका विशिष्ट अस्तित्व मेहमानों पर ही निर्भर रहता है और इसलिए मेहमान को अप्रसन्न करना मेजबान की अन्तिम सोच होगी। आज उपभोक्ता ईश्वर के समान है और वैश्विकीकरण और औद्योगिकीकरण की संपूर्ण प्रणाली उसी संकल्पना के आसपास घूमती हुई प्रतीत होती है। यदि आज अमेरिका सर्वाधिक प्रतिष्ठित देश है और किसी भी मंच पर सर्वाधिक वांछनीय मेहमान है तो ऐसा इसलिए है क्योंकि यहां विश्व में सर्वाधिक उपभोक्ता हैं। शोधों से पता चला है कि अमेरिका की ‘सुपर शक्ति’ की स्थिति का कारण मूलतः इस तथ्य की वजह से है कि आज यह विश्व का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। अमेरिका सबसे बड़ा खरीदार अथवा उपभोक्ता है और इसलिए अपने मेजबान देशों, ऐसे देश जिसकी अर्थव्यवस्था अमेरिका को किए जाने वाले निर्यात पर निर्भर होती है, का सर्वाधिक प्रतिष्ठित मेहमान है। हालांकि यह खेद की बात है कि यह सर्वश्रेष्ठ मेजबान नहीं है। अब अधिकांश विदेशी इस देश में अवांछनीय है हालांकि आवश्यकता लोगों को इस देश में आने के लिए प्रेरित करती है और मेहमानों की आवश्यकता उन्हें इस देश में जीविका के साधनों की खोज करने के लिए विवश करती है। जैसी स्थिति लोगों के साथ है वैसी ही स्थिति देशों के साथ भी हैं, सर्वश्रेष्ठ मेजबान सर्वदा सर्वाधिक वांछनीय मेहमान नहीं बन सकते हैं और सर्वश्रेष्ठ मेहमान सर्वदा सर्वाधिक वांछनीय मेजबान नहीं बन सकते हैं।