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Atishyokti Alankar Ki Paribhasha aur Udahran | अतिशयोक्ति अलंकार की परिभाषा और उदाहरण

अतिशयोक्ति अलंकार

Atishyokti Alankar

alankar and rasa

अतिशयोक्ति का सन्धि विच्छेद करने पर दो पद प्राप्त होते हैं – अतिशय + उक्ति अर्थात् बढ़ाचढ़ाकर बातें करना। जब लोक सीमा का अतिक्रमण करके किसी वस्तु या विषय का वर्णन किया जाय, जिससे वह वर्णन अधिक प्रभावशाली और चमत्कारपूर्ण बन जाय, तो उस उक्ति को अतिशयोक्ति (बढ़ा-चढ़ाकर जो कि वास्तव में असम्भव हो) कहते हैं। इसमें लोक मर्यादा का उल्लंघन होता है। जैसे-

यह शर इधर गांडीव-गुण से, भिन्न जैसे ही हुआ।

धड़ से जयद्रथ का उधर सिर छिन्न वैसे ही हुआ।।   (जयद्रथ वध )

यहाँ तीर छूटने के साथ ही जयद्रथ का सिर कटना बताया गया है। यह प्राकृतिक रूप से असम्भव है। परन्तु इस उक्ति के द्वारा कवि का तात्पर्य यह दर्शाना है कि अर्जुन का तीर न केवल अत्यन्त तीव्र गति से गया वरन् वह अचूक भी था।

पड़ी अचानक नदी अपार, घोड़ा कैसे उतरे पार ।

राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार ।।

यहाँ भी राणा के सोचते ही उनका घोड़ा चेतक नदी के पार पहुँच गया। यह लोक सीमा के परे है। यहाँ कवि का उद्देश्य प्रभावशाली ढंग से यह बताना है कि घोड़ा अत्यंत वेग से नदी पार कर गया।

हनूमान की पूँछ में लगन न पाई आग।

लंका सारी जल गई, गये निशाचर भाग।।

देख लो साकेत नगरी है यही।

स्वर्ग से मिलने गगन में जा रही।

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