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Anushasan “अनुशासन” Hindi Essay 500 Words for Class 10, 12.

अनुशासन

Anushasan

अनुशासन का तात्पर्य है अपने प्रति शासन अर्थात् किसी ऐसे व्यक्ति या विशेष अधिकारियों के आदेश के विरुद्ध कोई ऐसा कार्य न करना जो राष्ट्रहित में न हो। यदि जीवन में अनुशासन न हो तो अराजकता फैल जायेगी, जीवन अस्त-व्यस्त हो जायेगा और कोई कार्य योजना से नहीं हो पायेगा। किसी एक कार्य का दूसरे से कोई सम्बन्ध नहीं रहेगा जिससे किसी कार्य का भी निष्पादन सही प्रकार से नहीं हो पायेगा।

प्रकृति में भी व्यवस्था महत्त्वपूर्ण है, यदि कारण है कि असंतुलन में विभिन्न प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। उदाहरण के रूप में, पृथ्वी, चन्द्रमा और तारे कुछ विशेष नियमों के अनुसार सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते हैं। यहां तक कि पशु भी अपने नेता के अनुशासन में रहते हैं। शहद के छत्ते में मधुमक्खियों का जीवन अनुशासन का एक नमूना है। मनुष्य के शरीर को ही देखें कि किस प्रकार से शरीर के विभिन्न अंग एक-दूसरे का सहयोग करते हैं और सम्पूर्ण शरीर की देखभाल और विकास के लिए अनुशासित रूप से कार्य करते हैं। समाज के प्राचीन ढाँचे में असभ्य लोग भी अपने कबीले के नियमों का पालन करते थे। सभ्य लोग अपने परिवार के मुखिया के आदर्शों तथा बातों को महत्व देते हैं।

घर वह प्राथमिक पाठशाला है जहाँ अपने माता-पिता और बड़ों की आज्ञा पालन द्वारा हम अनुशासन जैसा आदर्श गुण सीखते हैं। इस प्राथमिक पाठशाला को पार करके जब हम शिक्षा संस्थाओं में कदम रखते हैं तो अनुशासन का महत्त्व बहुत बढ़ जाता है क्योंकि विद्यार्थी जीवन आगे आने वाले जीवन के संघर्ष के लिए हमें तैयार करता है। खेल के मैदान में भी अनुशासन की कोई कम आवश्यकता नहीं है। एक अनुशासित टीम, चाहे कमजोर ही क्यों न हो, ऐसी प्रतिद्वंद्वी टीम से बेहतर होती है जो यद्यपि शक्तिशाली है परन्तु असंगठित है।

समाज में भी अनुशासन की कमी से व्यवस्थाएँ भंग हो जाती हैं। यदि समाज के सभी लोगों को अपनी मनमानी करने दी जायेगी तो समाज छिन्न-भिन्न हो जाएगा और इसकी प्रगति रुक जायेगी। किसी देश के युवकों में अनुशासन का अभाव राष्ट्रीय सुरक्षा को भी खतरे में डाल सकता है।

सेना में तो अनुशासन अति आवश्यक है। यहाँ एक क्षण की आना-कानी से हार और मृत्यु का सामना करना पड़ सकता है। कोई भी कठिनाई, भय और यहाँ तक कि साक्षात् मृत्यु भी किसी सैनिक को अपने कमांडर के आदेश पालन करने से नहीं रोक सकती, चाहे आदेश अनुचित या गलत ही क्यों न हो।

फिर भी, कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो अनुशासन के विरुद्ध होते हैं। उनकी धारणा यह है कि इससे मौलिकता का हनन होता है और पहल करने की शक्ति समाप्त हो जाती है। उनके अनुसार, अनुशासित लोग मशीन के हिस्से बन जाते हैं जबकि मनुष्य कोई मशीन नहीं है। इसलिए उससे यह आशा नहीं की जानी चाहिए कि वह एक आज्ञाकारी सेवक बना रहे।

अनुशासन के सम्बन्ध में उपरोक्त धारणा सही नहीं है। यह तो अधिनायकवाद की चरम अवस्था है। अनुशासन मौलिक होना चाहिए। लोगों द्वारा कोई काम करने और कोई विचार रखने पर कोई आपत्ति नहीं है। अनुशासन की माँग तो केवल यह है कि आपकी कोई योजना और व्यवस्था होनी चाहिए।

अनुशासन एक बहुमूल्य सम्पत्ति है। जीवन इसके बिना आधारहीन है यह गलती को रोकने का दण्ड, मनुष्य के बिना सोच-विचार के कार्यों पर नियन्त्रण है। इसका प्रयोजन यह देखना है कि कहीं ऐसा न हो कि स्वतंत्रता स्वच्छंदता में बदल जाए।

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