Adbhut Rasa Ki Paribhasha, Bhed, Kitne Prakar ke hote hai aur Udahran | अद्भुत रसकी परिभाषा, भेद, कितने प्रकार के होते है और उदाहरण
अद्भुत रस
Adbhut Rasa
परिभाषा – सहृदय के हृदय में स्थित विस्मय नामक स्थायी भाव का जब विभाव, अनुभाव और संचारी भाव से संयोग होता है, तब अद्भुत रस की निष्पत्ति होती है।
अद्भुत, अभूतपूर्व वस्तु या दृश्य को देखकर मन में जो आश्चर्य का भाव उत्पन्न होता है, वही अद्भुत रस का आधार है।
स्थायी भाव – विस्मय।
आलम्बन विषय – अद्भुत या अलौकिक वस्तु, व्यक्ति, या दृश्य।
आश्रय – दर्शक।
उद्दीपन विभाव – अद्भुतता या विचित्रता का निरूपण।
अनुभाव – रोमांच, दाँतों तले अंगुली दबाना आदि।
संचारी भाव – आवेग, भ्रांति, जड़ता, वितर्क आदि। उदाहरण –
एक अचंभा देखा रे भाई,
ठाड़ा सिंग चरावै गाई,
पहले पूत पीछे भई माई,
कुकुर को लै गई बिलाई ।
यहाँ स्थायीभाव – विस्मय। आश्रय – दर्शक। विषय – अचरज भरी घटनायें। उद्दीपन – सिंह द्वारा गाय चराना आदि। अनुभाव – रोमांच होना। संचारी भाव – जड़ता, भ्रांति, आवेग आदि।“यह सच है तो अब लौट चलो तुम घर को,”
चौके सब सुनकर अटल कैकेयी – स्वर को।
सबने रानी की ओर अचानक देखा,
वैधव्य – तुषारावृता यथा विधु-लेखा ।
यहाँ स्थायी भाव – विस्मय। आश्रय – आश्रम में उपस्थित जन समूह। विषय – कैकेयी। उद्दीपन – कैकेयी द्वारा राम से घर लौटने कहना। सबका रानी की ओर अचानक देखना। संचारी भाव – भ्रांति, दृढ़ता।
बिनु पद चलै सुनै बिनु काना,
कर बिनु कर्म करै विधि नाना।
आनन रहित समल रस भोगी,
बिनु वाणी-वक्ता बड़ जोगी ।
यहाँ स्थायी भाव = विस्मय, आश्चर्य। आश्रय = श्रोता, पाठक। विषय = ईश्वर, विचित्र कार्य, अलौकिक बातें। उद्दीपन – बिना पैर के चलना, बिना काम के सुनना, बिना हाथ के काम करना, बिना मुँह के खाना, बिना स्तंभ, रोमांच, दाँतों तले अंगुली दबाना। वाणी के बोलना। अनुभाव संचारी भाव = जड़ता ।