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Yamak Alankar Ki Paribhasha aur Udahran | यमक अलंकार की परिभाषा और उदाहरण

यमक अलंकार

Yamak Alankar

alankar and rasa

एक ही शब्द प्रयुक्त हो,

जब कविता में कई बार।

यमक वहाँ कहलायेगा,

जहाँ अर्थ बदले बार-बार।

परिभाषा जब काव्य में एक ही शब्द कई बार आये और हर बार उसका अर्थ बदल जाये तो वहाँ पर यमक अलंकार होता है।

ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहनवारी,

ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहाति हैं।

कंद मूल भोग करें, कंद मूल भोग करें।

तीन नेर खातीं तों, वे तीन बेर खातीं हैं।

भूखन सिथिल अंग, भूखन सिथिल अंग।

विजन डुलातीं ते, विजन डुलातीं हैं।

भूषन भनत वीर सिवराज तेरे त्रास,

नगन जड़ाती थीं वे, नगन जड़ाती हैं।

यहाँ पहले घोर मंदर का अर्थ है – भव्य महल और दूसरे घोर मंदर का अर्थ है पहाड़ की अंधेरी गुफा। तीसरी पंक्ति में पहले वे भगवान को कंद- मूल का भोग लगाया करतीं थीं, अब स्वयं कंद-मूल खाकर गुजारा करतीं हैं। चौथी पंक्ति में ‘तीन बेर’ का प्रयोग दो बार हुआ है। एक स्थान पर तीन बेर का अर्थ है तीन बार और दूसरे स्थान पर अर्थ है तीन बेर (फल)। पाँचवीं पंक्ति में ‘भूखन सिथिल अंग’ का पहला अर्थ है – भूख न लगने से अंग शिथिल होना। दूसरी बार प्रयुक्त ‘भूखन सिथिल अंग’ का अर्थ है भूखे रहने के अंगों का शिथिल होना। छठवीं पंक्ति में ‘विजन डुलातीं’ का पहला अर्थ है – पूरे घर को नचाना। दूसरी बार प्रयुक्त ‘विजन डुलातीं’ का अर्थ है – स्वयं हाथ से पंखा डुलाना। अंतिम पंक्ति में ‘नगन जड़ाती’ का पहला अर्थ है – नग-नगीनों से जड़ी रहती थीं। दूसरी बार प्रयुक्त ‘नगन जड़ाती’ का अर्थ है – वस्त्र की कमी से शीत में नग्न ठिठुरती हैं। अतः यहाँ यमक अलंकार है।

कनक- कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय।

या खाये बौरात जग, वा पाये बौराय।

यहाँ कनक शब्द दो बार प्रयुक्त हुआ है और दोनों बार अर्थ भिन्न है। अर्थात् पहले ‘कनक’ का अर्थ ‘धतूरा’ और दूसरे ‘कनक’ का अर्थ ‘सोना’ है। दोनों व्यक्ति को मदहोश कर देते हैं। दोनों में एक दूसरे से सौ गुना अधिक नशा होता है। एक को खाकर और दूसरे को पाकर मनुष्य पागल हो जाता है।

माला फेरत जुग भया, गया न मनका फेर।

कर का मनका डारि के, मनका मनका फेर।

यहाँ मनका शब्द की आवृत्ति चार बार हुई है। पहले और तीसरे स्थान पर ‘मनका’ का अर्थ है – हृदय का, जबकि दूसरे स्थान पर ‘मनका’ का अर्थ है – माला के मोती और चौथे स्थान पर ‘मनका’ का अर्थ है – सच्ची भक्ति। अतः यहाँ यमक अलंकार है।

रहिमन सोई पीर है, जो जाने पर पीर।

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