Home » Languages » Hindi (Sr. Secondary) » Bharat mein Rashtriya Ekta “भारत में राष्ट्रीय एकता” Hindi Essay, Paragraph in 1200 Words for Class 10, 12 and competitive Examination.

Bharat mein Rashtriya Ekta “भारत में राष्ट्रीय एकता” Hindi Essay, Paragraph in 1200 Words for Class 10, 12 and competitive Examination.

भारत में राष्ट्रीय एकता

Bharat mein Rashtriya Ekta

भारत एक विशाल देश है। विश्व की लगभग पन्द्रह प्रतिशत जनता इस देश में निवास करती है। इसका एक-एक राज्य इतना विशाल है कि यूरोप के अनेक देशों से बड़ा है। यहाँ अनेक जाति, धर्म, भाषा वाले लोग निवास करते।

इनकी प्राकृतिक संरचना में विविधता है। उत्तर में नागाधिराज हिमालय अपनी ऊँची-ऊँची शृंखलाओं के साथ खड़ा है तो दक्षिण में हिन्द महासागर अपनी गहराई में सानी नहीं रखता। अरब सागर और बंगाल की खाड़ी भी अपनी उत्ताल लहरों से इसके चरणों को पखारते हैं। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक और कच्छ से लेकर कोहिमा तक यह देश अनेकानेक विचित्रताओं और विविधताओं को समेटे हुए है। एक ओर गंगा-यमुना का मैदान है तो दूसरी ओर संसार में सर्वाधिक वर्षा वाला चेरापूंजी नामक स्थान । यहाँ जितने भयानक बाढ़ के दृश्य देखे जाते हैं, उसी समय में उतने ही भयानक सूखा के दृश्य। एक ओर धरती जगमग और लोग अपने घरों और प्राणों को बचाने के लिए बेचैन और दूसरी ओर प्यास के कारण दरारें पड़ी धरती और सूखे होंठों पर जीभ फिराते हुए जीव-जन्तु। एक ओर टाटा और बिरला जैसे धनाढ्य उद्योगपति, दूसरी ओर दो वक्त के भोजन को तरसता मजदूर दीनू का परिवार। एक ओर गेहूँ पर अवलम्बित लोग, दूसरी ओर मछली और चावल का भोजन करने वाले हैं न विविधताओं और विचित्रताओं का देश?

ये विविधताएं यथार्थ हैं तो इन विविधताओं के बीच विद्यमान एकता भी यथार्थ है। फूलों के विभिन्न रंग और रूप हैं किन्तु उनकी सुगन्ध एक है, उनका उपवन एक है। विविध प्रकार के पक्षी हैं, किन्तु उनका आकाश एक है। विभिन्न प्रकार के पशु हैं किन्तु उनकी एक धरती है। विभिन्न धर्मों, जातियों और भाषाएँ बोलने वाले लोग हैं, किन्तु उनकी संस्कृति एक है। यह देश एक रहा है और इसकी हस्ती मिटी नहीं। इसका कारण यह है कि सारी विविधताएं और अनेकतायें बाह्य हैं, हम भीतरी तौर पर, भावना के स्तर पर, संस्कृति के स्तर पर, कहीं एक सूत्र में भी बंधे हैं। इस एकता के जोड़-तोड़ में जो तत्व निर्णायक भूमिका निभाते हैं, वे हैं-धर्म, जाति, भाषा और साहित्य, क्षेत्रीयता एवं आर्थिक-सामाजिक असमानता ।

धर्मों की दृष्टि से देखें तो पायेंगे कि भारत में अनेक धर्मावलम्बी निवास करते हैं। भारत ने लोकतांत्रिक शासन-प्रणाली स्वीकार की है। और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को अपनाया है। धर्मनिरपेक्षता से आशय धर्म-विहीनता अथवा हैं। किसी धर्म-विशेष के अनुयायी को सरकार की ओर से विशेष सुविधा असुविधा धर्म-विमुखता न होकर सर्वधर्म-सम्भाव है। सरकार की दृष्टि से सभी धर्म समान नहीं दी जायेगी। अपने व्यापक अर्थ में धर्म ऐसे कार्यों के समूह का नाम है, जो स्व के साथ-साथ पर-कल्याण के लिए किए जाते हैं। धर्म समान्तर और सम्प्रदायों में विभक्त हो जाता है। और इन सबके अलग-अलग आराध्यक, अलग-अलग धर्म-ग्रन्थ और अलग-अलग पूजा-पद्धतियों का प्रचलन होता है। राजनीतिज्ञ इसी स्तर पर घुसपैठ करते हैं और लोगों को विभक्त करने का षड्यंत्र रचते हैं। ‘अमुक कानून अमुक धर्म के खिलाफ हैं’ अथवा ‘अमुक धर्म पर प्रहार किया जा रहा है’ जैसे नारेनुमा वाक्यों के सहारे राजनेता कभी-कभी सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं और धर्म परस्पर जोड़ने के बजाय तोड़ने का कार्य करने लगता है।

जाति-पांति की भावना भी हमारी एकता को बाधित करती है। इस देश में जाति का निर्माण कार्य के आधार पर हुआ, किन्तु बाद में इस कार्य भावना में भी ऊँच-नीच की स्थिति पैदा हो गई। अतः ब्राह्मण को सर्वश्रेष्ठ और शूद्रों को नीच माना जाने लगा। वस्तुतः धर्म कर्म है। यदि वह दुष्कर्म नहीं है तो इससे क्या फर्क पड़ता है कि वह किसके द्वारा किया जा रहा है। किन्तु नहीं इस देश में अनेक जातियों को अछूत ही मान लिया गया और किसी न किसी रूप में आज भी यह भेदभाव कायम है।

जाति-पांति के भेदभाव और विद्वेष बढ़ाने में राजनीति की भी प्रमुख भूमिका रही। लोकतंत्र में चुनावों का बड़ा महत्त्व है। हमारे यहाँ चुनावों का आधार क्रमशः कार्यक्रमों, सिद्धांतों और योजनाओं से हटकर जाति-पांति ही बनता गया है। जाति-पांति का उन्मूलन करने की बात कहने वाले राजनेता चुनावों के अवसर पर देखते हैं कि अमुक क्षेत्र में अमुक जाति का बहुमत है। अतः उसी जाति के नेता को दल का टिकट देना है। इससे जहाँ जाति-पांति के बीच विद्वेष फैलता है, वहीं एक ही जाति के अन्दर भी तनाव उत्पन्न होता है।

भारत में अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं। अठारह भाषाओं को तो राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृति मिली हुई है, अनेक भाषायें ऐसी हैं जिनकों वह स्वीकृति नहीं हुई है, अनेक भाषाएँ ऐसी हैं किन्तु साहित्य की दृष्टि से सम्पन्न हैं। भिन्न-भिन्न भाषाएँ होने पर भी इनमें कहीं-न-कहीं एकजुटता भी विद्यमान है। उत्तर भारत का हिन्दी, पंजाबी, सिंधी, गुजराती, मराठी, बंगाल, उड़ीया और असमी आदि भाषाओं का तो मेल उद्गम संस्कृत है ही दक्षिण की तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और मलयालम भाषायें दूसरे परिवार की होकर भी संस्कृत से अत्यधिक प्रभावित हैं। इसी प्रकार सभी भाषाओं ने एक दूसरी भाषा से अनेक शब्दों को ग्रहण किया है। शाब्दिक स्तर पर ही यह समानता हो ऐसी बात नहीं, साहित्य के स्तर पर भी यह समानता देखी जा सकती है। रामायण, महाभारत और श्रीमद्भागवत ऐसे ग्रन्थ हैं। जिनका प्रभाव इस देश के सभी भाषाओं पर पाया जाता है। राम कथा प्रायः हर भाषा में किसी न किसी प्रकार से विद्यमान है। महाभारत की कथा भी प्रत्येक भाषा में लिखी गई है। इतना होने पर भी देश में शाब्दिक विद्वेष देखने को मिलता है। किन्तु वह अभी तक राज-काज की भाषा के रूप में पूर्णतः स्वीकृति नहीं हो पाई है। उसके रास्ते में कोई भारतीय भाषा रोड़ा नहीं बनी है। बल्कि अंग्रेजों और अंग्रेजी मानसिकता से उसे चोट पहुँची है। लोक जब-तब हिन्दी, अंग्रेजी का बखेड़ा उठा बैठते हैं और लोगों को देश, देश को, देश की एकता को अखण्डत करने का षड्यन्त्र रचते हैं।

एकता को खतरा क्षेत्रीयता और सामाजिक एवं आर्थिक असमानता से भी है। प्रायः देखा जाता है कि संसद और विधान सभाओं और सामाजिक एवं आर्थिक असमानता से भी है। प्रायः देखा जाता है कि संसद और विधान सभाओं में जो जनप्रतिनिधि चुनकर जाते हैं, वे अपने क्षेत्र का विकास करते हैं। इनमें जो भी अधिक प्रभावशाली होता है, वह विकास के नाम पर मिलने वाली समस्त जनसुविधाओं को अपने क्षेत्र में ही केन्द्रित कर लेना चाहता है। इससे कुछ क्षेत्रों में विकास की गति आकाश छूने को लगती है और कुछ क्षेत्रों में वह धरती पर रेंग रही होती है। सामाजिक आर्थिक असमानता भी वर्गद्वेष को बढ़ावा देती है। ऊंच-नीच का भेदभाव, गरीब-अमीर का अन्तर इतना बढ़ जाता है, जिससे राष्ट्रीय एकता खतरे में पड़ जाती है।

अन्ततः फिर ‘इकबाल’ की पंक्ति की ओर ध्यान दें, इतने खतरे होते हुए भी हम एक हैं और अभी तक हमारा अस्तित्व बना हुआ है। चाहे वह राम हों, चाहे वह कृष्ण हों, चाहें विक्रमादित्य हों, हर्ष और अशोक हों, चाहे अकबर हों, और चाहे महात्मा गांधी। बुद्ध और महावीर भी यहाँ इसलिए पूज्य हैं। रामायण और महाभारत को सारे देश में सम्मान मिला है। गंगा, गोदावरी और कावेरी को सभी लोग पवित्र मानते हैं। चारों धामों और सातों पुरियों में सभी की निष्ठा हैं। अजन्ता और एलोरा की गुफाओं की कला सभी को आकृष्ट करती हैं। ताजमहल और लालकिला सभी के लिए गर्व की वस्तु है।

आज आवश्यकता है-एकता के इन सूत्रों की अधिकाधिक मजबूत करने की। क्षुद्र स्वार्थों और संकुचित दृष्टिकोण को त्याग कर ही हम अपनी राष्ट्रीय अखण्डता की रक्षा कर सकते हैं और ऐसा करके हम अपने अस्तित्व को बचाये रखने में सफल हो सकते हैं।

(1200 शब्दों में )

About

The main objective of this website is to provide quality study material to all students (from 1st to 12th class of any board) irrespective of their background as our motto is “Education for Everyone”. It is also a very good platform for teachers who want to share their valuable knowledge.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *