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Rashtrapita Mahatma Ghandi “राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी” Hindi Essay, Paragraph in 1000 Words for Class 10, 12 and competitive Examination.

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी

Rashtrapita Mahatma Ghandi

भारतीय संस्कृति की ‘धर्मपरायणता’ अपनी विशेषता है। इसी की आस्था से प्रत्येक भारतीय के अन्तस् में गीता का श्लोक यदा यदा हि धर्मस्य… गूँजता है। अब धरा पर अन्याय होता है, मानव-आत्मा उससे चीत्कार कर उठती ह, तभी प्रभु किसी महापुरुष के रूप में अवतरित होते है। राष्ट्रपिता गांधी जी ऐसे ही महापुरुष के अवतार थे। अपने जीवन-काल में अपने जिस मार्ग का भारतीयों को निर्देश किया, वह पूर्णत! भारतीयता से ओत-प्रोत था। उस समय हम दासता की श्रृंखला में आबद्ध थे। हम अपने गौरव और स्वाभिमान को खो बैठे थे। न हम कुछ कह सकते थे न -रुचि अनुकूल कुछ कर सकते थे? जीवन पर सरकार का कड़ा नियंत्रण था। हम पूर्ण पराधीन और असहाय थे। जीवन के सभी विकास अवरुद्ध थे। अतः किसी कोने में अकेले बैठकर रोना ही हमारे भाग्य की धरोहर थी। ऐसे विपरीत समय में गांधी जी ने हमारा प्रतिनिधित्व किया। उनके वरेण्य त्याग एवं बलिदान में देश स्वाधीन हुआ, पराधीनता की बेड़ियां कट गईं, अब हम देश के और देश हमारा था । पूज्य बाबू को पाकर हम सर्वस्व पा गए थे।

राष्ट्रपिता गांधी जी का पूरा नाम मोहनदास करमचन्द गांधी था। आपके पिता करमचन्द गांधी काठियावाड़ में पोरबन्दर के दीवान थे। यहाँ गांधी जी का 2 अक्टूबर 1869 को जन्म हुआ। आपकी माता पुतलीबाई अधिकतर पूजा-पाठ और ईश्वरोपासना में ही व्यस्त रहती थीं। इसी स्थान पर शैशव के अनेक चित्र गांधी जी ने उतारे थे। लगभग सात वर्ष की अवस्था में ही आपको गांव की एक पाठशाला में प्रवेश दिला दिया गया। लेकिन पढ़ने में इनका मन नहीं लगता था। घण्टी बजते ही वहाँ पहुँच जाते और बन्द होते ही घर वापस आ जाते थे। बस यही इनकी दुनिया थी। संकोची स्वभाव इन्हें किसी के सम्पर्क में आ जाने से रोकता था। यह माता के परम आज्ञाकारी और भक्त थे। सन् 1887 में आपने मैट्रिक पास की और 1888 ई. में बैरिस्टरी के अध्ययन के लिए लन्दन चले गए। वहाँ भी आप सामान्य दीन की भांति रहते थे। सन् 1891 में आप वहाँ से भारत लौटे। सन् 1895 में आपके छात्रों पिता का स्वर्गवास हो गया।

विदेश यात्रा से लौटने पर बम्बई में आपने वकालत आरम्भ की लेकिन असफल रहे। उन्हीं दिनों एक मुकदमे की पैरवी करने के लिए आपको दक्षिण अफ्रीका जाना

पड़ा। लन्दन के पश्चात् यह आपकी दूसरी विदेश यात्रा थी। रंग-भेद नीति के कारण अंग्रेज वहाँ उसे भारतीयों के साथ बड़ा अन्याय करते थे। एक दिन आप पगड़ी पहनकर भी अदालत में गए। वहाँ उसे उतारने के लिए विवश किया गया लेकिन आपके स्वाभिमान ने यह स्वीकार नहीं किया। इसके उपरान्त रेल, होटल आदि स्थानों पर तरह-तरह के अपमान भी इन्हें सहने पड़े। जिसमें दीन भारतीयों के साथ होने वाले इस प्रकार के दुर्व्यवहार का आपको ज्ञान हुआ। बस उसी क्षण आपके हृदय में स्वदेश प्रेम का जागरण हुआ। आपने शासन के विरोध में आन्दोलन किया। जिसकी सफलता से भारतीयों के सूखे हृदय हरे हो गए। देश-प्रेम के उत्साह के वेग से उनकी धमनियों में रक्त दौड़ने लगा। वहाँ भारतीयों के सम्मान की रक्षा हुई।

भारत लौटने पर आपने वकालत में विफल होने के कारण राजनीति को अपना क्षेत्र चुना। वह कांग्रेस के प्रतिनिधि हो गए और नरम दल के अग्रगण्य नेता। 1914 के प्रथम विश्वयुद्ध में आपने स्वाधीनता पाने की लालसा से अंग्रेजों की जी-तोड़ सहायता की परन्तु विपरीत ही परिणाम प्रत्यक्ष हुए। रोलेट-एक्ट पास हुआ और फिर पंजाब के जलियांवाला बाग के हत्याकांड से तो आग की एक लहर ही देश में व्याप्त हो गई।

सन् 1919-1920 में आपने सत्याग्रह आन्दोलन चलाया। फलतः जेल जाना पड़ा। पुनः 1930 में देशव्यापी नमक-आन्दोलन चला। 1939 में आपको गोलमेज कॉन्फ्रेस (Round Table conference) में आमंत्रित किया गया जहाँ आपके भाषण को सुनकर अंग्रेज दाँतों तले उँगली दबा लिए। बस 1938 में कांग्रेस को प्रत्येक प्रान्त में अपना मंत्रिमण्डल बनाने की अनुमति मिल गई। सन् 1938 में जब पुनः द्वितीय विश्वयुद्ध हुआ तब आपने अंग्रेजी सरकार की सहायता करने से मना कर दिया और पूर्ण स्वतंत्रता की माँग की। इसके पश्चात् सन् 1942 में ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन छेड़ दिया गया, उस समय आप अन्य नेताओं के साथ जेल में थे। लेकिन इस आन्दोलन ने प्रत्येक भारतीय को देश रक्षा के लिए जागृत कर दिया। विदेशी शासन की नींव हिलने लगी। तब से निरन्तर गांधी जी के महत्त्वपूर्ण त्याग एवं बलिदान से 15 अगस्त, 1947 को देश स्वाधीन घोषित हुआ। लेकिन उसकी संगठित शक्ति द्विभाजित हो गई-हिन्दुस्तान हिन्दुओं का और पाकिस्तान मुसलमानों का राष्ट्र बना। पूज्य बापू की इस नीति से देश के अन्य अनेक कर्णधार क्षुब्ध हो उठे और फिर इस क्षुब्धावस्था में 30 जनवरी, 1948 की संध्या के लगभग 6 बजे राष्ट्रपिता गांधी जी को नाथूराम गोडसे ने अपनी पिस्तौल का निशाना बनाकर आत्मशान्ति ली। देश में त्राहि-त्राहि मच गई। घर-घर में एक उदासी और शोक का वातावरण छा गया।

सचमुच गांधी जी देश अवतार थे, भारतीय संस्कृति के आदर्श पात्र थे, मानवता के सच्चे उपासक थे। शोषण, हिंसा अन्याय और उत्पीड़न का आपने आजीवन विरोध किया। सत्य और अहिंसा आपके सबसे अधिक शक्तिशाली अस्त्र-शस्त्र थे हमारी स्वतंत्रता इसी अहिंसा का सुफल है। दीन-दुखियों के वह आजन्म सहायक रहे। हरिजनों एवं अछूतद्वार के लिए आपने अपना सर्वत्र अर्पण किया। राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रचार और प्रसार के लिए चरखा कातने के प्रयोग भारतीय जनता के लिए उनके अमर वरदान हैं। निष्कर्ष यही है कि राष्ट्रपिता गांधी जी भारतीय संस्कृति और विश्व-मानवता के पोषक और अन्याय अनाचार के प्रतिरोधक थे। उनकी आत्म-शक्ति महान् थी। उनका सत्य बल अनूठा था। निस्सेन्दह वह बुद्ध थे, ईसा के महान् ईश्वरीय अवतार थे। उनके आदर्श अनुकरणीय है, उनके उपदेश ग्रहणीय हैं और वह स्वयं हमारे लिए वन्दनीय है।

(1000 शब्दों में )

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