Meri Priya Pustak – Ramcharitmanas “मेरी प्रिय पुस्तक : रामचरितमानस” Hindi Essay, Paragraph in 800 Words for Class 10, 12 Students.
मेरी प्रिय पुस्तक : रामचरितमानस
Meri Priya Pustak – Ramcharitmanas
प्रत्येक युग में मानव हृदय अपने काव्य साहित्य में ही आत्मशान्ति के मूल को खोजता रहा है। रामचरितमानस इस मानव को आत्मशांति की अलग दुनिया में ले जाता है जहाँ शिष्टाचार, सदाचार और सद्व्यवहार को ही सर्वोपरि माना गया है। जहाँ लज्जा मनुष्य का आभूषण बन जाती है, जहाँ आत्मा में झांकने पर परमात्मा साक्षात् दिख जाते हैं।
‘स्वान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा
भाषा निबन्ध मति मंजुल मातनोति ।‘
ज्ञान की राशि को हमारे जीवन में बिखेर देने में पुस्तकों का अपूर्व योगदान है। ऐसे तो प्रत्येक पुस्तक हमारे जीवन पर कुछ-न-कुछ प्रभाव छोड़ती है पर हमें देखना है कि कौन-कौन-सी पुस्तक हमारे जीवन में व्यापक और गहरा यानी अमिट प्रभाव छोड़ पायी है। अपने-अपने दृष्टिकोण के अनुरूप प्रत्येक व्यक्ति की पसन्द होगी। संस्कार और वातावरण के चलते व्यक्ति की रुचि बदलती हैं। जिन्हें धर्म और अध्यात्मक के प्रति विशेष ममता होगी वे सम्भवतः वैदिक संस्कृत साहित्य को ही श्रेष्ठ समझेंगे। इसी प्रकार कुछ लोगों की दृष्टि में दर्शन, कुछ की दृष्टि में राजनीति और फिर कुछ की दृष्टि में साहित्य की पुस्तक ही उत्तम होगी। मेरी सर्वप्रिय पुस्तक रामचरितमानस है इसके रचियता हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ कवि-कुल- शिरोमणि तुलसीदास हैं।
रामचरितमानस एक महत्त्वपूर्ण रचना है, यह आर्य धर्म की प्रज्वलित दीपशिखा है। भक्ति की निर्मल धारा है, गृहस्थ जीवन की पथ प्रदर्शिका है समाज और राजनीति शास्त्र की टिप्पणी है, काव्य की देदीप्यमान मणि है। रामकथा का प्रचार-प्रसार तुलसी से पहले भी था, पर तुलसी की रामकथा के द्वारा जितनी अधिक शक्ति से जनता को सात्विक, कर्मशील और धर्मशील बनाया गया उतना अन्य रचनाओं से संभव नहीं हो सका। तुलसी ने राम के कल्याणकारी स्वरूप का यथार्थ चित्रण कर राम को भी अमर, प्रातःस्मरणीय, पूजनीय और जन-जन का कष्ट हर और हृदय सम्राट बना दिया।
मानस हमारे जीवन को ऊंचा उठाने में बहुत सहायक सिद्ध हुआ। इसमें आदर्श चरित्रों का जैसा चित्रण हुआ है वैसा अन्यत्र दुर्लभ है। इनमें महान् चरित्र को जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में डालकर ग्रन्थकार ने यह दिखा है कि वे आदर्श पुत्र, आदर्श पति, आदर्श मित्र, आदर्श वीर, शरणागत वत्सल, धर्मप्रणव मानव, विश्व बंधु हैं। वे विश्व धर्म प्रतिमूर्ति है।
मानस का पात्र आदर्श ही नहीं हैं, बल्कि उनके पारस्परिक सम्बन्ध भी अनुकरणीय है। मानस में पिता, पुत्र, पति, पत्नी, भाई, बहन, गुरु, शिष्य, स्वामी सेवक आदि सम्बन्धों का निर्वाह आदर्श रूप में किया गया है। अगर मानस के पात्रों के आचरण के अनुकूल हम अपना आचरण बना ले तो हमारे परिवार और समाज में लगे विषाक्त कीटाणुओं को नष्ट करने के लिए ये पात्र रामबाण प्रमाणित हो सकते हैं।
तुलसी का रामचरितमानस भारतीय संस्कृति का महान् संरक्षक है। भारतीय दर्शन और ज्ञान के प्रमुख अध्याय यहीं मिलेंगे। काव्य परम्परा से दिव्य बनी हुई यह पुस्तक पवित्र साधना, सामाजिक आदर्श और सफल विश्वासों की पुस्तक है। इसमें नाश के खण्डहर में सृजन के फूल मुस्कुराते हैं। नृशंसता और दानवता के ऊपर मानवता जीत की मोहर लगाती है-यही वह सांस्कृतिक सन्देश है जो मानस की पंक्ति-पंक्ति में है। रामचरितमानस संस्कृति के टूटे अव्यवों को समेटने का पवित्र काव्य है। रामचरितमानस की साहित्यिक महत्ता की समानता अन्य कोई रचना नहीं कर सकती हैं।
रामचरितमानस प्रबन्ध काव्य है। गोस्वामी जी की प्रबन्ध-पटुता इसमें पूर्ण रूप से प्रकट हुई है। रामकथा आदि से अन्त तक अबाध गति में प्रवाहित हुई है और अभिन्न घटनाएं शृंखला की कड़ियों की भांति एक-दूसरे से जुड़े हुई है। कहीं भी कथा शैथिल्य नहीं आने पाया है। सफल चरित चित्रण एवं संवाद भी प्रबन्ध-पटुता के अंग है। रामचरितमानस में राम, भरत, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, दशरथ, रावण, कैकेयी कौशल्या, मंदोदरी आदि पात्र, पात्रओं के बहुत मान्य चित्र अंकित है। इसकी सर्वप्रियता का प्रमुख कारण धार्मिक विशृंखलित वातावरण में एकता की स्थापना है। मानस में धर्म नीति के साथ राजनीति का सुन्दर चित्रण मिलता है। रामायण के अनुसार राजा को प्रजा वत्सल, विवेकी, दयालु, न्यायशील होना चाहिए। उसे धर्मनुसार व्यवहार करना चाहिए। गोस्वामी जी ने समाज के प्रधान या मुखिया जन प्रतिनिधि या राजा के विषय में कहा है-
मुखिया मुख ते चाहिए खान-पान को एक ।
पाले पौषै सकल अंग तुलसी सहित विवेक ॥
गोस्वामी जी प्राचीन काल से चल रहे सनातन धर्म के अनुयायी थे, इसलिए उन्होंने वर्ण और आश्रम धर्म को मुख्यतः श्रेष्ठ ठहराया है। वे सामाजिक उत्थान तथा सामाजिक व्यवस्था के लिए ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र को अपने-अपने वर्ण धर्मानुसार चलने का उपदेश देते हैं। उन्हें व्यक्तिगत जीवन में ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास आदि आश्रमों का अनुपालन इष्ट है।
विश्व-साहित्य का अमूल्य रत्न ‘रामचरितमानस’ मेरी प्रिय पुस्तक है आर्य सभ्यता, आर्य संस्कृति, आर्य धर्म का कोष है- ‘रामचरित्रमानस’ सच पूछा जाए तो हिन्दुओं में नवजीवन का संचार करने वाला तथा उन्हें नीति एवं मर्यादा का पाठ पढ़ाने वाला हिन्दी साहित्य में यदि कोई ग्रन्थ है तो वह ‘रामचरितमानस’ है। मानस से विकट परिस्थितियों में डगमगाती हुई हिन्दू जाति की रक्षा हुई है। यह उसी का प्रभाव है कि प्रत्येक हिन्दू उसके महत्त्व पर श्रद्धा करता है, सदाचार की ओर उन्मुख होता है, पूज्यजनों को मस्तक झुकाता है, विपत्ति में धैर्य रखता है, राम भक्ति का अनुसरण करता है। धन्य है रामचरितमानस और धन्य है इसके प्रणेता भक्त-शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास।