Home » Languages » Hindi (Sr. Secondary) » Hindi Essay-Paragraph on “Bharat mein Bhrashtachar ki Samasya” “भारत में भ्रष्टाचार की समस्या” 500 words Complete Essay for Students of Class 10-12 and Subjective Examination.

Hindi Essay-Paragraph on “Bharat mein Bhrashtachar ki Samasya” “भारत में भ्रष्टाचार की समस्या” 500 words Complete Essay for Students of Class 10-12 and Subjective Examination.

भारत में भ्रष्टाचार की समस्या

Bharat mein Bhrashtachar ki Samasya

प्राचीन भारत का दुनिया के लोगों ने अनुकरण किया और अपना गुरु माना है। आज उसी भारत में एक आम आदमी शिष्ट आचरण को तरजीह नहीं देता, बल्कि एक भी आदमी का चरित्र भ्रष्टाचार से खाली नहीं दिखता। सभी मंत्री, अधिकारी आदि सभी भ्रष्टाचार में संलिप्त दिखाई पड़ रहे हैं। भ्रष्टाचार किसी भी समाज और राष्ट्र के गर्त में गिरने का सबसे आखिरी द्वार है। भ्रष्टाचार एक कलंक है जिसके कारण भारत अन्य साधनों से संपन्न होता चरित्र बल से कमजोर होता जा रहा है।

आज भ्रष्टाचार हमारे देश में एक राष्ट्रव्यापी समस्या है। भ्रष्टाचार के प्रति सभी चिंतित हैं, पर समस्या का हल कोई भी नहीं करना चाहता। भ्रष्टाचार की सर्व सुलभता और सर्वव्यापकता के सामने किंचित शिष्ट-प्रबुद्ध लोग अवाक् हैं। उन्हें घुटन महसूस हो रही हैं। वे भ्रष्टाचारी, व्यंग्य, वक्रोक्ति, उलाहना आदि के माध्यम से शिष्ट लोगों की साधना भंग करने पर तुले हैं । वस्तुतः वैसे लोगों के उज्ज्वल चरित्र से फूटकर निकलने वाली प्रकाश-किरणों से अंधकार के साम्राज्य में खलल पैदा होती

स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् प्रशासन तंत्र से लेकर उद्योग-धंधे और वाणिज्यव्यवसाय तक, न्यायालयों और चिकित्सालयों से लेकर शिक्षा संस्थानों तक और देवालयों से लेकर धार्मिक ट्रस्टों तक भ्रष्टाचार का अखंड साम्राज्य कायम हो गया है।

डॉ. राहुल ने ठीक ही लिखा है-

भ्रष्टाचार चारित्रिक-नैतिक घोर पतन है।

इससे गिरता महागर्त में आप वतन है।

इसको रोको, नहीं पनपने दो हे भाई।

सदा बरक्कत देती अपनी नेक कमाई।

हमारे लोकतंत्र का विगत इतिहास बताता है कि केंद्र और राज्यों में सत्ताधारी दलों के मंत्रियों, सांसदों, विधायकों, दलीय नेताओं और प्रभावशाली सदस्यों में से अधिकांश में निजी अथवा दलीय स्वार्थ सिद्धि के लिए भ्रष्टाचार को भरपूर संरक्षण और बढ़ावा दिया। उन्होंने ग्राम पंचायतों से लेकर संसद भवन तक लोकतंत्र का मुंह काला किया। अपना वर्चस्व बनाने के लिए उन्होंने रिश्वत के बल पर दल बदलकर विरोधी दलों को अपने विधान सभाएं भंग करवाई। बहुमत के बल पर अपने स्वार्थ की रक्षा के लिए नये कानून बनाए।

आज भ्रष्टाचार के चलते राष्ट्रीय पूंजी के वास्तविक उपभोक्ता देश की आबादी के पांच प्रतिशत से कम है। उद्योग-धंधों के क्षेत्र में देश के सभी सार्वजनिक प्रतिष्ठान भ्रष्टाचार के चंगुल में फंस गए हैं। आर्थिक क्षेत्र में आज चोर-बाजारी, मुनाफाखोरी, कालाबाजारी और करों की चोरी जैसी नीतियां व्यापार और वाणिज्य पर नियंत्रण कर रही है। आगे पूंजीपतियों के आगे सरकार निःसहाय है। वह चाहकर भी भ्रष्टाचार पर नियंत्रण नहीं कर पा रही हैं।

साहित्य या किसी भी क्षेत्र में मिलने वाले पुरस्कार चापलूसी और चमचागिरी से प्रभावित हैं। जिससे कई बार पुरस्कार की घोषणा होने पर विवादित हो जाता है।

भारतीय जनमानस भ्रष्टाचार से व्यथित है। इस कारण, इस असाह्य रोग का इलाज साधना होगा। सरकार को कठोर निर्णय लेते हुए कड़े कानून बनाने होंगे। जनता को भी अपनी सहभागिता निभानी पड़ेगी। भ्रष्टाचारियों के लिए न्यायालय और दंड दोनों को सरल बनाना होगा। भ्रष्ट अधिकारी की जांच-पड़ाल तेजी से कर उसे बेनकाब करना होगा। संसद भवन में भी धन का प्रयोग करने वाले मंत्री और दलों पर प्रतिबंध लगाना पड़ेगा। तभी स्वच्छ भारत का निर्माण हो पाएगा।

About

The main objective of this website is to provide quality study material to all students (from 1st to 12th class of any board) irrespective of their background as our motto is “Education for Everyone”. It is also a very good platform for teachers who want to share their valuable knowledge.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *