Hindi Essay-Paragraph on “Bharat mein Gathbandhan Sarkar” “भारत में गठबंधन सरकार” 800 words Complete Essay for Students of Class 10-12 and Competitive Examination.
भारत में गठबंधन सरकार
Bharat mein Gathbandhan Sarkar
जहां कहीं भी बहमत पर आधारित सरकार बनती है और किसी एक दिल को सरकार बनाने के लिए बहुमत नहीं मिल पाता तो वैसी स्थिति में कई राजनीतिक दलों के गठबंधन से बहुमत हासिल की जाती है और सरकार बनाई जाती है। गठबंधन की आवश्यकता तब महसूस होती है, जब विधायिका में किसी एक राजनीतिक दल को स्पष्ट बहमत नहीं मिल पाता है। गठबंधन निर्वाचन के पहले भी होता है और बाद में भी। चुनाव पूर्व हुए गठबंधन में, गठबंधन वाले सभी दल अपने-अपने पक्ष में जनमत जुटाने में गठबंधन-धर्म का पालन करते हैं और सरकार से बाहर रहकर भी वहीं काम करते हैं। गठबंधन के द्वारा जब सरकार बनती है तो भी सरकार का नेतृत्व गठबंधन का सबसे बड़ा दल ही करता है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि राजनीति की चालों के तहत किसी छोटे दल को भी सरकार बनाने का अवसर दिया जाता है और बड़ा दल ही भीतर या बाहर से उसका समर्थन कर देता है।
पिछले करीब डेढ़ दशक से हमारे देश में केंद्रीय सरकार और कई राज्य सरकारें गठबंधन से बनी हैं। इस अवधि में जितनी बार केंद्र या राज्य में सरकारें बनी गठबंधन से ही बनीं। यह भी एक राजनीतिक परिस्थिति है कि लगातार सरकारें गठबंधन से ही बन रही हैं। इतना तो सत्य है कि किसी राजनीतिक दल को जनता गुणों के आधार पर अधिक महत्त्व देने को तैयार नहीं है। यह राजनीतिक दलों की सैद्धांतिक-व्यावहारिक गिरावट का ही संकेत है। किसी भी दल के लिए यह परिस्थिति गौरव की बात नहीं है। विशेष रूप से उस दल के लिए यह बुरी बात है जो पर्व में बहमत हासिल कर सरकार बना लिया करता था। उसकी साख में निश्चित रूप से गिरावट आई, ऐसा माना जाएगा।
जन-जनता सभी राजनीतिक दलों से उसके क्रिया-कलाप से जब डूब जाती है, तब अन्य मन एक होकर अनिर्णय की स्थिति में किसी को वोट डालकर मतदाता धर्म की इतिश्री कर लेता है। दल के कार्यकर्ता भले ही प्रतिबद्ध होते हैं। आम भागरिक किसी दल के प्रति प्रतिबद्धता जाहिर नहीं करता है, तब हालत पैदा होती है कि किसी को बहुमत नहीं प्राप्त होता है।
जहाँ तक गठबंधन के औचित्य का प्रश्न है, एक अर्थ में गठबंधन बनने वाली सरकार से जनता को लाभ है। वह यह कि सभी दल की दृष्टि सरकार पर रहती है और विपक्षी ही नहीं, गठबंधन में शामिल दल भी सरकार पर पैनी नजर रखते हैं। इसमें जनता को नुकसान यह होता है कि सरकार छोटे-मोटे विवादों को सुलटने और सभी दलों को संतुलित रखने में सरकार की शक्ति का क्षय होता है। सरकार चलाने के निधारित अवधि को किसी तरह पूरा करने का भाव रहता है। सरकार गिरे नहीं, यह चिंता बनी रहती है और सरकार गिरने लगती है, तो किसी तरह बचा लेने की चिंता रहती है। गठबंधन की सरकार तभी तक विकास के कार्य कर सकती है, जब तक सरकार में उथल-पुथल नहीं होती है। जैसे ही यह सब शुरू होता है सरकार के गिरने का भय सताने लगता है। कई दलों को मिलाकर सरकार बनाने से नेतृत्व में जो दल रहता है उसे भारी मशक्कत उठानी पड़ती है। उसका काम मेंढक तौलने की तरह कठिन हो जाता है। नैतिकता की कमी के कारण राजनीतिक दलों को एक साथ मिलाकर चलना सचमुच कठिन कार्य है। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में 25 दलों का गठबंधन था। इस हालत में वाजपेयी का व्यक्तित्त्व ही सफलता का कारण था।
गठबंधन सरकार की यह विशेषता होती है कि वह देश की प्रगति के लिए जो भी कार्यक्रम बनाती है, उसमें सभी दलों की सहमति आवश्यक होती है। इस सरकार के द्वारा लिए गए निर्णय उसके विभिन्न राजनीतिक दलों के निर्णय माने जाते हैं। इसलिए कोई भी कार्य नीति निर्धारित करने के लिए सभी राजनीतिक दल विचार-विमर्श करते हैं और विचार-विमर्श के बाद कार्यनीति निर्धारित होती है। गठबंधन की सरकार उन्हीं देशों में सफलता से चलती है, जो देश विकसित है। अविकसित या विकासशील देशों की समस्या है कि अधिकांशतः जनता या राजनेता में वह विवेक या सूझबूझ नहीं होती, जो शिक्षा प्राप्त या शिक्षित लोगों में होती है।
एक प्रश्न यह भी उठता है कि ऐसी परिस्थिति क्यों आती है कि किसी एक दल को बहुमत नहीं मिल पाता है। इसक सरल उत्तर यह है कि जब जनता को सत्तारूढ़ दल से निराशा होती है और उसके कार्यकलाप से जनता नाखुश हो जाती है, तो वह विकल्प की तलाश करती है। जब कई बार ऐसा होता है कि जिसे बहुमत दिया जाता है, वही जनता से धोखा कर देता है, तो ऐसी हालत में बड़े-बड़े राजनीतिक दल एक-एक बार काठ की हांडी की तरह जनता की भावना रूप चूल्हों पर चढ़ जाते हैं। अंत में जनता को अहसास होता है कि सभी एक थैली के चट्टेबट्टे हैं। जब यह आम जनता सोच लेती है, तब कम प्रसिद्ध उम्मीदवार को भी मत देकर जितवा देती है। तब गठबंधन सकरार का महत्त्व बढ़ जाता है। जनता के आक्रोश, निराशा और अविश्वास का कुफल ही है कि वोट डालने के बाद जनता यह चाहती है कि कोई एक सरकार न बनाए। किसी एक दल की मनमानी या तानाशाही का भी अंत तभी होता है, जब बहमत नहीं मिलता है, जनता के वोट पर ही दल की जीत-हार निर्भर करती है। अतः वह अपने वोट (मत) कर महत्व समझना चाहिए और विवेकपूर्ण ढंग से अपने मत का उपयोग करना चाहिए।