Hindi Essay on “Gaya Samay Phir Haath Nahi Aata”, “गया समय फिर हाथ नहीं आता” Complete Hindi Essay, Paragraph, Speech for Class 7, 8, 9, 10, 12 Students.
गया समय फिर हाथ नहीं आता
Gaya Samay Phir Haath Nahi Aata
जीवन में हुई प्रत्येक हानि को किसी न किसी प्रकार पुनः प्राप्त किया जा सकता जैसे धन के नष्ट होने पर मेहनत करके उसे दुबारा प्राप्त किया जा सकता हे,स्वास्थ्य खराब होने पर दवाइयों के सेवन से पुनः स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जासकता है । परन्तु जीवन के जो सनहरी और कीमती पल एक बार व्यतीत हो गए, लाख चाहने पर भी वापस लौट कर नहीं आते । वक्त कैसे गुज़र जाता है इस का पता ही नहीं चलता न तो इसके आने का पता चलता है और न ही जाने का।
समय न तो मनुष्य की प्रतीक्षा करता है और न ही परवाह । मनुष्य को चाहिए कि वह एक पल,एक क्षण या एक दिन भी जीवन में व्यर्थ न गवाएँ क्योंकि जीवन के एक अंश को व्यर्थ जाने देने का अर्थ है अपने सम्पूर्ण जीवन को व्यर्थ गँवाना । जो व्यक्ति समय को नष्ट करता है, समय आने पर समय उसके जीवन को नष्ट कर देता है । कुछ लोग काम को टालते रहते हैं और कहते हैं यह काम कल करूँगा, कल किया जाएगा । उन्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए क्योंकि मनुष्य के कल की बात को कौन जानता है कि कल को क्या होना है । पल का भरोसा नहीं, क्या भरोसा कल का । सन्त कबीर कहते हैं-
काल्ह करै जो अज कर, आज करै सो अब ।
पल में परलै होयेगी, बहुरि करेगा कब ॥
जीवन की सफलता का रहस्य समय के सदुपयोग में ही छुपा हुआ है । जीवन में सफलता उन्हीं व्यक्तियों को मिलती है जो अपना एक क्षण भी व्यर्थ नहीं गंवाते बल्कि उसका अधिक से अधिक सदुपयोग करते हैं । इतिहास इस बात का साक्षी है जिन लोगों ने समय का सदुपयोग नहीं किया वे जीवन की दौड़ में पीछे रह गए। वाटरलू युद्ध में नेपोलियन के हारने का कारण यही था कि उसका जनरल निश्चित स्थल पर केवल ‘पाँच मिनट’ देर से पहुंचा था और नेपोलियन को बन्दी की उपाधि से विभूषित कर दिया गया ।
बुद्धिमान व्यक्ति अपने विश्राम के समय का भी सदुपयोग अच्छे अच्छे ग्रन्थों का अध्ययन करके या प्रभु का भजन करके करता है । मूर्ख व्यक्ति का समय लडाई झगड़ों में या व्यर्थ के विवाद में नष्ट होता जाता है । समय के सदुपयोग से मनुष्य को आत्मिक आनन्द और शारीरिक सुख दोनों प्राप्त होते हैं । समय की दुरुपयोगिता से मनुष्य के विचार ही दूषित नहीं होते बल्कि उसका नैतिक पतन हो जाता है ।
समय पर सोना, समय पर उठना, समय पर भोजन करना, आदि अर्थात् सारा काम समय पर करना यही आत्मोन्नति का मार्ग है । समय की अपेक्षा करके व्यक्ति अपना प्रयोजन सिद्ध नहीं कर सकता। समय पर और यथासम्भव समय पूर्व कार्य करना ही समय को साथ रखता है । मनुष्य को भी समय के साथ निरन्तर आगे बढ़ना चाहिए । प्रगति का यही रहस्य है । किसी भी काम को देर से मत शुरू करो, एक बार आरम्भ में देर हो जाने से अन्त तक काम में देरी होती रहती है। इसलिए कुछ अल्पबुद्धि वाले मनुष्य विघ्न के भय से कार्य आरम्भ नहीं करते, मध्यम बद्धि वाले मनुष्य कार्य का आरम्भ करके विघ्न बाधा उपस्थित होने पर कार्य छोड़ देते हैं, उत्तम लोग बारम्बार विघ्न होने पर भी आरम्भ किए हुए कार्य को नहीं छोड़ते ।
हमें अपने कुछ समय का उपयोग अपने समाज और राष्ट्र की उन्नति में भी करना चाहिए क्योंकि हमारा अपने समाज और राष्ट्र के प्रति भी कुछ कर्त्तव्य है । मनुष्य का परम कर्त्तव्य है कि वह समय का सदुपयोग करता हुआ केवल अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए समय का उपयोग करे परन्तु उसका जीवन तभी धन्य माना जाएगा जब वह अपनी उन्नति के साथ साथ समाज और देश की उन्नति और कल्याण के लिए थोड़ा समय निकाले ।
आलस्य ही मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है । सुकरात का कहना है-“जो कुछ नहीं करता केवल वही आलसी नहीं है, आलसी वह भी है जो अपने काम से भी अच्छा काम कर सकता है परन्तु करता नहीं ।” आलसी व्यक्ति का अधिकांश जीवन सोने,खाने पीने, व्यर्थ घूमने फिरने, राग रंग में व्यर्थ चला जाता है जिससे न तो वह विद्यार्थी जीवन में अपनी पढ़ाई पूरी कर पाता है और न ही बड़े हो कर गृहस्थी का भार सम्भाल सकता है । ऐसा व्यक्ति न तो कोई अपना भला कर पाता है और न ही वह अपने समाज और देश का ही कुछ हित कर सकता है ।
समय परिवर्तनशील है । समय हर पल हर क्षण बदलता रहता है । समय की गति बड़ी तेज़ है ।
आदमी को चाहिए वक्त से डर कर रहे ।
कौन जाने किस घड़ी, वक्त का बदले मिज़ाज़ ॥
गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते–‘समय जात नहिं लागहि बारा‘ अर्थात् समय बदलते देर नहीं लगती । एक प्रसिद्ध कहावत है-“वक्त और समुद्र की लहरें किसी का इन्तज़ार नहीं करती हैं ।”
यदि हम अपनी और अपने समाज और राष्ट्र की उन्नति चाहते हैं तो हमें समय के सदुपयोग की कला सीखनी चाहिए । विशेषकर विद्यार्थियों को तो समय का अधिक से अधिक सदुपयोग करके अपने जीवन को सफल बनाना चाहिए क्योंकि-‘गया वक्त फिर हाथ नहीं आता’।
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