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Hindi Essay on “Yadi mein Police Officer Hota”, “यदि मैं पुलिस अधिकारी होता” Complete Essay, Paragraph, Speech for Class 7, 8, 9, 10, 12 Students.

यदि मैं पुलिस अधिकारी होता

Yadi mein Police Officer Hota

मनुष्य के जीवन का कोई न कोई उद्देश्य अवश्य होता है। कोई भी मनुष्य बिना किसी उद्देश्य के इस संसार में नहीं रह सकता है और न ही वह जीवन में सफलता प्राप्त कर सकता है। जीवन यात्रा प्रारम्भ करने से पहले व्यक्ति को चाहिए कि वह जीवन का कोई एक लक्ष्य निर्धारित कर ले । शायद इसी को लक्ष्य करके कविवर हरिवंशराय बच्चन ने इस प्रकार कहा है-

पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले

परन्तु प्रश्न यह उठता है कि जीवन का उद्देश्य क्या होना चाहिए ? कैसा होना चाहिए ? उद्देश्य ऐसा होना चाहिए जिसमें जीवन की सम्पूर्णता हो, हमारा जीवन अधरा और व्यर्थ न हो । हवाई किले बनाना भी हमारे जीवन का उद्देश्य नहीं होना चाहिए ।

जब मैं अपने उद्देश्य के बारे में सोचता हूँ कि क्यों न में अपने पूर्वजों के काम को ही करूँ । यदि अपने पूर्वजों के ही काम को करूं तो मैं बहुत धनवान व्यक्ति बन सकता है क्योंकि आजकल धन की देवी लक्ष्मी की ही पूजा-यत्र-तत्र सर्वत्र होती है परन्तु दूसरे ही क्षण मैं अपने आप को धिक्कारने लगा । पैसा ! पैसा ।

पैसा ! क्या दुनियां में सब कुछ पैसा ही है। यद्यपि पैसा जीवन की आवश्यकता है किन्तु वही सब कुछ नहीं। जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता है मानवता की सेवा, दीन-दुखियों को सहारा देना और गिरे हुओं को उठाना । मेरी वह इच्छा पूरी होगी या नहीं परन्तु मैं अपने निश्चय पर दृढ़ हूँ । मैं एक पुलिस अधिकारी बनना चाहता हूं । मेरे चाचा जी पुलिस विभाग में डी.एस.पी.के पद पर आसीन थे। उन्होंने खूंखार किस्म के अपराधियों से मुकाबला करते हुए, इस समाज से अपराधियों को समाप्त करने के लिए अनेक प्रकार के अभियान चलाए तथा उसमें वह सफल भी हुए तथा पुलिस विभाग के गौरव को बढ़ाया । चाचा जी का आदर्श मुझे इसी पथ पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। मेरा मन यह कहता है कि तुम एक पुलिस अधिकारी बन सकते हो क्योंकि तुम्हारे अन्दर एक अदम्य साहस, आत्मविश्वास और अतुल शारीरिक बल है। मेरे मन में समाज सेवा और राष्ट्र सेवा का भाव भी है। मेरा यह मानना है हमारा राष्ट्र तभी उन्नति कर सकता है यदि उसमें से अपराधिक वृत्ति वाले लोगों को सुधारा जाए । यदि पुलिस अधिकारी सच्चाई और ईमानदारी के मार्ग पर चले तो निश्चय ही वह समाज की समुचित सेवा कर सकता है।

मैं इस बात से भली प्रकार से अवगत हूँ कि आज लोग पुलिस विभाग को सन्देह की दृष्टि से देखते हैं। वे समझते हैं पुलिस विभाग में रिश्वत का बोल बाला है। कुछ लोगों को यह भी सन्देह है कि लोगों पर अत्याचार करना, लोगों पर अकारण डंडे बरसाना, गरीबों पर अत्याचार करना पुलिस अपना परम कर्तव्य समझती है। आजकल तो कुछ पुलिस अधिकारी अशान्ति के सचक बनकर रह गए हैं। यद्यपि सारे पुलिस अधिकारी एक जैसे नहीं परन्तु बुरा कर्म करने वाले तो थोड़े होते हैं परन्तु बदनाम तो सारा विभाग होता है।

यदि मै सौभाग्य से एक पुलिस अधिकारी बन गया तो मैं इस विभाग का एक अंग बन कर इसकी खोई हुई प्रतिष्ठा वापस लाने का पूरा प्रयास करूँगा । इस स्थिति में परिवर्तन करके इसमें सुधार लाने का प्रयत्न करूँगा और पुलिस अधिकारी की पवित्र खाकी वर्दी पर लगा रिश्वत और भ्रष्टाचार का दाग सदा सदा के लिए समाप्त कर दूंगा । मैं कोशिश करूँगा कि शिकायत कर्ता की शिकायत प्राथमिकी में दर्ज करके, बिना किसी लोभ या लालच के अपने कर्तव्य का उचित पालन करते हुए उसकी जाँच करवाऊँ और अपराधी को पकड़ने का केवल आश्वासन ही देकर में कर्तव्य से मुक्त नहीं हो पाऊँ । जब तक उस अपराधी का उसकी असली जगह सीखचों के पीछे न पहँचा दूँ, चाहे वह व्यक्ति कितना भी विष्ठित नागरिक क्यों न हो और चाहे उसे किसी राजनीतिक नेता का संरक्षण क्यों न प्राप्त हो, मैं चैन से नहीं बैठूंगा। इसके लिए चाहे मुझे अपने प्राणों की बाज़ी भी क्यों न लगानी पड, परन्तु इस खाकी वर्दी पर जिसको मैंने समाज के लोगों की रक्षा करने के लिए पहन रखा है उस पर जरा भी आँच नहीं आने दूंगा।

पुलिस का कर्तव्य समाज की सेवा तथा उसका मार्ग दर्शन करके उसको सही रास्ता दिखाना है। स्वयं अनुशासन में रहकर दूसरों को अनुशासित करना है। पुलिस को अपराध की खोज के लिए मनोवैज्ञानिक सूझ बूझ से काम लेना चाहिए । धैर्य से जनता की शिकायतें सुनकर उन्हें दूर करने का प्रयास करना चाहिए।

यदि मैं पुलिस अधिकारी बन गया तो मैं अपने कर्तव्य को करने में जरा भी पीछे नहीं हटूंगा । अपराधियों को दण्ड दिलाने के लिए कानून और प्रशासन की सहायता करूँगा । मैं अपनी छवि ऐसे पुलिस अधिकारी की बनाऊँगा जिसे देखकर ही अपराधी, चोर, लुटेरे काँपने लगे और निर्दोष मुझे अपना मसीहा समझने लगें।

मैं सरकार से अपील करूँगा कि पुलिस कर्मचारियों को ज्यादा से ज्यादा वेतन दिया जाए और अधिक से अधिक सुविधाएँ दी जाएँ ताकि उनके जीवन की जरूरतें आसानी से पूरी हो सकें और उन्हें इधर उधर न झांकना पड़े । यदि मैं पुलिस अधिकारी बन गया तो मैं अपने आधीन काम करने वाले कर्मचारियों पर कड़ी निगरानी रखूगा और देखूगा कि कोई भी कर्मचारी किसी भी व्यक्ति के साथ मार-पीट या अनुचित व्यवहार करने का साहस न करे ।

यदि मेरी पलिस अधिकारी बनने की इच्छा पूरी हो गई तो मैं अपने अदम्य साहस और पूरे बल के साथ समाज में फैले भ्रष्टाचार को दूर करूँगा और जनता का सच्चा रक्षक बन कर अपने-पराए, ऊंच-नीच, निर्धन-धनवान आदि के भेद-भाव को दूर करूँगा और समाज में अपराधवृत्ति का नाश कर के शान्ति स्थापित करूंगा।

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