Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Match Fixing-ek Kalank” , “मैच फिक्सिग-एक कलंक” Complete Essay for Class 10, Class 12 and Graduation Classes.
मैच फिक्सिग–एक कलंक
Match Fixing-ek Kalank
भ्रष्टाचार–भ्रष्टाचार मायावी राक्षस है। इसके दस नहीं, असंख्य सिर हैं। जब यह राक्षस खेलों में खेल दिखाता है तो अनेक करतब दिखाता है। मैच फिक्सिग भ्रष्टाचार रूपी दानव का नया पैंतरा है। कश्ती के बारे में फिक्सिंग की गाथाएँ पहले भी सनने में आती थीं। उसमें जीत-हार दो ही पहलवानों पर निर्भर होती है। अतः यदि एक को भी साध लिया जाए तो मैच का परिणाम मनचाहा हो सकता है। अतः मैच फिक्सिग का रोग सबसे पहले कुश्ती में आया।
नूरा कुश्ती–फिक्स खेल को दिखावटी खेल भी कह सकते हैं। व्यंग्य की भाषा में इसे नूरा कुश्ती कहते हैं। इसमें कौन जीतेगा, कौन हारेगा-यह पहले से तय होता है। पहलवान या खिलाड़ी केवल निर्देशों के अनुसार खेल का नाटक करते हैं। परिणाम पहले से तय होता है। ऐसे खिलाड़ियों को हारने और जीतने के पैसे मिलते हैं। अतः उन्हें नज़र पैसे पर रखनी होती है, खेल पर नहीं।
कारण–मैच फिक्सिंग की बीमारी क्यों शुरू हुई? निश्चित रूप से किसी पहलवान या खिलाड़ी की रुचि फिक्सिंग में नहीं हो सकती। खिलाड़ी तो अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन करके वाहवाही लूटना चाहता है या धन कमाना चाहता है। सच्चे खिलाड़ी की नज़र धन कमाने पर कम, श्रेष्ठ प्रदर्शन पर अधिक होती है।
वास्तव में मनोरंजन करने वाले व्यवसायियों ने लोगों की खेल-रुचि से पैसा कमाने के लिए सोची-समझी योजना तैयार की। अतः जैसे मनोरंजन के लिए किसी नर्तकी को नचाया जाता है, गायक को गवाया जाता है। उसी प्रकार खिलाड़ियों को पैसे देकर खिलाया गया। पहलवान को कहा गया कि तुम्हें पैसे के लिए खेलना है। तुम्हें जीतने के लिए नहीं, धन पाने के लिए खेलना है। अतः खेलने का नाटक करना है और हमारे निर्देशों का पालन करना है। तुम असली शेर नहीं, सर्कस के शेर हो।
क्रिकेट में फिक्सिग–जिस खेल में जन-रुचि अधिक होती है, उसमें फिक्सिग भी अधिक होती है। आजकल क्रिकेट सबसे अधिक लोकप्रिय है। इसलिए जुआरी और सट्टेबाज सबसे अधिक सट्टा इस पर लगाते हैं। कई बार सट्टे की यह राशि सैकड़ों करोड़ों तक चली जाती है। जब एक टीम के हारने-जीतने पर अरबों रुपये दाँव पर लगे हों तो व्यवसायी खिलाड़ियों को फुसलाना शुरू कर देते हैं। नैतिक रूप से कमजोर खिलाड़ी जल्दी फुसलाहट में आ जाते हैं। क्रिकेट में यही हुआ। कुछेक खिलाड़ियों ने जल्दी अमीर बनने के फेर में फिक्स मैच खेला। परिणामस्वरूप क्रिकेट कलंकित हो गई। खेल के दीवानों को झटका लगा। जो लोग अपने क्रिकेट-सितारों को अपना भगवान मानते थे, वे ठगे रह गए। हजारों रुपये की टिकट लेकर मैच देखने वाले दर्शकों के पावों के नीचे से जमीन सरक गई।
दुष्परिणाम–मैच-फिक्सिग सरासर धोखा है। यह पाप भी है और अपराध भी। यह दर्शकों की जेब पर डाका है और उनक विश्वासों पर की गई गहरी चोट है। इसे कानून द्वारा और जन-बहिष्कार द्वारा तुरंत रोका जाना चाहिए, वरना हर चीज़ पर से विश्वात उठ जाएगा और खेल सिर्फ तमाशा बनकर रह जाएँगे। किसी कवि ने ठीक ही कहा है
स्वार्थ, तृष्णा, लोभ की लगी हुई है सेल।
धर्म रहा न धर्म अरु, खेल रहा न खेल।।