Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Prashan Patra ki Atmakatha”, ”प्रश्नपत्र की आत्मकथा” Complete Hindi Nibandh for Class 8, 9, 10, Class 12 and Graduation Classes
प्रश्नपत्र की आत्मकथा
Prashan Patra ki Atmakatha
जी हाँ, मैं हूँ प्रश्नपत्र ! प्रश्नपत्र भी ऐसा कि जिस को देवता तो क्या, नाम सुनते हा बड़ी-बड़ों के पसीने छुट जाया करते हैं। कइयों को तो मुझे छूते हुए हाथ-पैर और कलेजा तक काँपने लगते हैं। देखने के बाद सिर चकरा जाया करता और दिन में ही तार नजर आने लगते हैं। जिन्होंने अपनी पुस्तकों का ठीक से अध्ययन-स्मरण न कर परीक्षा की तैयारी नहीं की होती, उन की आँखों के सामने मुझे देखते हुए अन्धेरा . छाने लगता है। हाथ-पैर सुन्न से पड़ जाया करते हैं। कुछ देर तक बगलें झाँकते रहन के बाद ऐसे लोग अक्सर परीक्षा भवन से ही नौ दो ग्यारह हो जाया करते हैं। कर ऐसा दबदबा, इस तरह का आतंक छाया रहता है लापरवाह और पढाई-लिखाई नकार वाले आम व्यक्तियो के मन पर मुझ प्रश्न-पत्र का।
इसके विपरीत मैंने यह बात भी कई बार आँखों से देखी-सुनी है कि जो लोग सब तरह से पूरी तरह की तैयारी करके आया करते हैं, परीक्षा भवन में, मुझ पर नजर पड़ते ही उन की बाँछे खिल उठती हैं। सुदृढ़ हाथों से पकड़ आँखें जल्दी-से-जल्दी मुझे आरम्भ से अन्त तक पढ़ जाती हैं। पढ़ते-पढ़ाते-मानसिक उद्वेग के कारण उनका मुख और भी चौडा, होंठ और भी तरल, आँखें और भी चमकीली हो उठती हैं। उन की उँगलियाँ पैन पकड़ कर उत्तर-पुस्तिका पर उसी तरह नाचने-थिरकने लगती हैं, जैसे कोई कुशल नर्तकी रंगमंच की बिसात पर नाच-थिरक अपनी कला के कौशल दिखाने लगती है। कई बार मैंने अनुभव किया है कि कुछ परीक्षार्थी मुझे देख एक विचित्र से असमंजस और सम्मोहन में पड़ जाया करते हैं। उन्हें सूझ ही नहीं पाता कि कहाँ से शुरू करें और क्या लिखें। इस प्रकार की स्थिति समय नष्ट कर हानि पहुँचाने वाली ही साबित हुआ करती है। कई लोग तो अजीब ढीठ किस्म के हुआ करते हैं। वे कभी दाएँ झाँक कर एक वाक्य लिखेंगे, कभी बाएँ, कभी आगे और कभी पीछे। वैसा, ऐसा कर के ही तीन घण्टे ज्यों-त्यों बिताए, निरीक्षक महोदय से उत्तरपत्र छिनवाया और मुँह लटका कर चल दिए। आश्चर्य तो तब होता है, जब ऐसा करने वाले भी अक्सर सफल घोषित कर दिए जाते हैं।
हाँ, तो मैं हूँ एक प्रश्नपत्र ! मुझ पर लिखे प्रश्नों के उत्तर देने हैं आप लोगों ने एक निश्चित समय और स्थान पर निश्चित ही ढंग से। आप प्रश्नों के उत्तर सोचिए और लिखिए; तब तक मैं जन्म से लेकर अब तक की अपनी यात्रा का हाल सुनाता हूँ धीरे-धीरे। नहीं, इससे आप के कार्य में किसी भी तरह की विघ्न-बाधा नहीं पड़ने दूँगा-कतई नहीं। हाँ, मैं पहले वन में एक नन्ही कोंपल के रूप में फूटा। जंगल की अदृश्य देवी या प्रकृति माता ने कभी धरती के भीतरी तत्त्वों के माध्यम से, कभी हवा-वर्षा के माध्यम से, कभी लू के अनुसार धूप-ताप आदि सहा कर अपना स्नेहिल और ममतामय दूध पिला कर मेरा लालन-पालन किया। मैं धीरे-धीरे बढ़ा होता हुआ पहले नन्हा-सा पौधा और उसी सारी प्रक्रिया से गुजरता हुआ कुछ वर्षों बाद एक भरा-पूरा जवान बन गया। अर्थात् मैंने एक सम्पूर्ण विकसित वृक्ष का रूप धारण कर लिया। तब पक्षी डालियों पर बैठ चहचहाया करते, मुझे बड़ा ही अच्छा लगता। कई पक्षी तो मुझ पर घोंसला बना कर भी रहने लगे। मुझ पर आने वाले जगली फूल जंगल की शोभा बढ़ा देते। मेरी छाया में थके-माँदे यात्री, पशु-पक्षी घण्टों तक बैठ कर विश्राम करते रहते। इस प्रकार माँ प्रकृति की गोद में मेरा जीवन बड़ा सुखी और शान्त था।
फिर एक दिन कुछ लोग कुल्हाड़ियाँ लेकर आए और मेरा अंग-अंग काटने लगे। मेरे प्रत्येक अंग यानि डाली को काटने के बाद उन्होंने फिर मेरा तना भी जड के पास से काट दिया। फिर मुझ पर आरा चला पहले गोलाकार टुकड़े बनाए और ट्रक पर लाद कर एक बड़े कारखाने के आँगन में खुले ही फेंक दिया। कुछ दिन वहीं पर पड़ा रह अपने भाग्य पर आँसू बहाता रहा। एक दिन कुछ मजदूरिने आई, मुझे टोकरियों में भरा और एक बड़ी-सी टंकी में डाल दिया। कुछ ही देर में घर-घररी की आवाज के साथ मैं वहीं चक्कर खाता मलीदा-सा बनता रहा। जब पूरी तरह से मलीदा-सा बन गया तो एक नली से गुजर कर मुझे एक भट्टी में झोंक दिया गया। इस तरह कई रासायनिक प्रक्रियाओं और मशीनों से गुजरने के बाद मुझे एक पूर्णतया नया स्वरूपाकार मिलता गया। फिर एक दिन कुछ लोगों को कहते सुना-‘कागज का यह लाट भी तैयार।
वहाँ से मुझे काट-छाँट, सजा-संवार, सफाई से बाँध और ट्रकों पर लाद कर शहर भेजा गया। वहाँ से प्रेस में गया, छपा और आज अनेक भागों में बँट कर आप सब के हाथों में हूँ। आप सबके बुद्धि, विवेक और परिश्रम की जाँच-परख करने वाला मानदण्ड बना हुआ हूँ। याद रखो, लगातार मेरी तरह मिट्टी में मिल और फिर हर स्थिति में प्राणी जगत के शुभ की भावना से भरे रह कर, निरन्तर परिश्रम करते और कष्ट सहते हए भी जो व्यक्ति विचलित नहीं हुआ करता, वही मेरे जैसा साफ-सुथरा और चिकना रूप-रंग तो पाया ही करता है, महत्त्वपूर्ण भी बन जाया करता है-जैसे कि मैं प्रश्नपत्र इस समय आप सभी के लिए बना हुआ हूँ।