Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Atmasamman”, ”आत्म-सम्मान” Complete Hindi Anuched for Class 8, 9, 10, Class 12 and Graduation Classes
आत्म-सम्मान
Atmasamman
निबंध संख्या:- 01
प्राचीन युग में सभी भारतीयों में आत्म-सम्मान की भावना कूट-कूट कर भरी थी। पर कुछ काल तक पराधीन अवस्था के कारण वह प्रायः लुप्त-सी हो गई थी। अब हम स्वतंत्र हैं। हमें इस भावना को जगाना है। यही मनुष्यता की सीढ़ी है। इसको न पाकर हम पशु के समान ही रह जाते हैं।
आत्म-सम्मान की रक्षा के लिए आत्म-विश्वास को आगे रखना पड़ता है। इसी के बल पर आत्म-सम्मान का प्रासाद खड़ा हो जाता है। हमारे मन की आकाँक्षाओं पर जब तक हमें पूर्ण विश्वास न होगा तब तक हम उनको पूर्ण करने में असमर्थ रहेंगे। इसी कमी की पूर्ति आत्म-विश्वास के द्वारा हो जाती है। इसके लिए हमें अहंकार और स्वार्थ की भावना को त्याग देना चाहिए। प्रायः देखा गया है कि बहुत से लोग अपने स्वार्थ के लिए झूठ बोलते हैं, चोरी करते हैं और धोखा आदि देते हैं। इतना ही नहीं, समय पड़ने पर वे अपनी आत्मा और सम्मान को कौड़ियों के बदले दे डालते हैं। ऐसे व्यक्ति से आत्म-सम्मान कोसों दूर भाग जाता है। अतः उन्हें चाहिए कि वे ऐसे जीवन से दूर रहकर अपनी आत्मा को निष्कलंक और पवित्र बनाएँ। तभी उनका राष्ट्र में सम्मान हो सकेगा।
आत्म-सम्मान ही ऐसी निर्मल धारा है जो कि हमारी कलुषित भावनाओं को खो पता है। ऐसी पवित्र धारा में स्नान करके हम अपने वर्तमान और भविष्य को उज्ज्वल बना लेते है। देश को हम पर अभिमान होता है। हमारी आत्मा सुख और शान्ति में रहती है. हमारे साथी हमें विश्वास की दृष्टि से देखते हैं। समाज में हमें सम्मान प्राप्त होता है. इसी के बल पर हम अपनी संस्कृति और सभ्यता की रक्षा कर सकते हैं। इसी के सफलता हमारे कदमों को चूमती रहती है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को आत्म-सम्मानी होना चाहिए।
आत्म-सम्मान
Atmasamman
निबंध संख्या:- 02
मनुष्य और पशुओं में एक मुख्य अंतर है-आत्मसम्मान के भाव की। पशु के साथ आप कैसा ही घटिया व्यवहार करें, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता, परंतु मनुष्य आत्मसम्मान के लिए ही जीवित रहता है। जो जाति, पीढ़ी आत्मसम्मान का भाव नहीं रखती है, वह पराधीन रहती है। आत्मसम्मान मनुष्यता की पहली सीढ़ी है। इसके लिए आत्मविश्वास को बनाए रखना जरूरी है। हमारे मन की आकांक्षाओं पर जब तक हमें पूर्ण विश्वास नहीं होगा तब तक हम उनको पूर्ण करने में असमर्थ रहेंगे। हमें अहंकार व स्वार्थ भाव त्याग देना चाहिए। कुछ लोग झूठा आत्मसम्मान रखते हैं तथा समय पड़ने पर वो इसे कौड़ियों के भाव बेच डालते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने जीवन का विनाश कर लेते हैं। आत्मसम्मान ऐसी निर्मल धारा है जिसमें हम स्नान करके अपने वर्तमान व भविष्य को उज्ज्वल बना लेते हैं तथा भूतकाल के कलंक को मिटा लेते हैं। इसी के बल पर हम अपनी संस्कृति व सभ्यता की रक्षा करते हैं।