Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Antariksh Prayogshala”, ”अन्तरिक्ष प्रयोगशाला” Complete Hindi Anuched for Class 8, 9, 10, Class 12 and Graduation Classes
अन्तरिक्ष प्रयोगशाला
Antariksh Prayogshala
आज विज्ञान ने प्रकति को अपनी चेरी बना लिया है। आज व्यक्ति अपने मनोकुल पशानिक तरीकों से बनावटी बादलों द्वारा वर्षा कर लेता है। इसके साथ ही अनेक मृत लागा के पार्थिव शरीरों को जीवित करने के लिए रासायनिक पदार्थों के सहयोग से सुरक्षित क्खा गया है। उधर रूस में अन्तर्राष्ट्रीय जीव विज्ञान प्रयोगशाला मास्को में प्रसिद्ध प्रज्ञानिक हकदीद साहब बिना प्रकृति (स्त्री) के बच्चे को बनाने का प्रयास कैमिकल्स पदार्थों प्लास्टिक बोतल में कर रहे हैं। इधर विगत दिवसों में वैज्ञानिकों को परमाणु विस्फोट ऊर्जा प्राप्त करने में सफलता मिली है। 20 जुलाई 1969 ई० की रात्रि को 1 बजकर 48 मिनट पर अमेरिकी अपोलो यान के ‘ईगल’ से मानव ने चन्द्रतल पर अवतरण किया. ती ऐसा प्रतीत हुआ कि अब उसका चिरसंचित स्वप्न साकार हो गया है। किन्तु वैज्ञानिक मस्तिष्क की उडान अभी जारी थी।
वह तो सम्पूर्ण अन्तरिक्ष पर अपना साम्राज्य चाहता था। संयुक्त राज्य अमेरिका के केप केनेडी, फ्लोरिडा से 14 मई 1973 को रात्रि के 11 बिजे एक धमाके ने संपूर्ण विश्व को इस दिशा में उठाए गए उसके पहले कदम की सूचना दी। यह कदम अन्तरिक्ष में एक वैज्ञानिक प्रयोगशाला की स्थापना का था जिसे में ‘स्काई लैब’ नाम दिया गया। यह अंतरिक्ष प्रयोगशाला मानव रहित थी और इसे लगा आठ माह, 4 जनवरी 1974 तक पृथ्वी की कक्षा में प्रतिस्थापित रहना था। स्काई 88 टन भार की, तीन शयन कक्षों जैसे गृह के रूप में बनायी गई थी। इस में 582 से युक्त प्रयोगशाला थी। इसके शीर्ष पर एक दूरदर्शी यंत्र लगा था। इसके द्वारा तीन विभिन्न दलों को भेजकर 290 परीक्षण करना उद्देश्य था । विज्ञान की इस अभूतपूर्व उपलहिः से सम्पूर्ण विश्व उल्लसित एवं उत्कण्ठित हो उठा था।
इस अन्तरिक्ष प्रयोगशाला को सटर्न वी रॉकेट के माध्यम से पृथ्वी से लगभग 27- मील ऊपर कक्षा में प्रतिस्थापित किया गया था; परन्तु इसके द्वारा पृथ्वी की परिक्रमा प्रायः । करने के दो घण्टे बाद ही इसमें गम्भीर दोष उत्पन्न हो गया। वास्तव में हुआ यह कि – 30 फुट लम्बे सौर पर जिनसे सूर्य से प्राप्त ऊर्जा द्वारा स्काई लैब में यन्त्रों की बैटरी – को चार्ज एवं विद्युत् जनन होना था, जाम हो गये। दूसरे इसमें लगे एल्यूमिनियम के पार्थक्य .. नष्ट हो गये और सूर्य की ऊष्मा से प्रयोगशाला में अत्यधिक ताप बढ़ गया जिससे समस्त अनुसंधानिक यन्त्रों के फूंक जाने की आशंका हो गई।
अंतरिक्ष वैज्ञानिकों का पहला दल स्काई लैब की उड़ान के दूसरे दिन एक अपोलो यान द्वारा पृथ्वी छोड़ने वाला था, वैज्ञानिकों की आपात्कालीन बैठक में प्रथम दल में भेजे जाने वाले अन्तरिक्ष वैज्ञानिकों की अपोलो उड़ान को स्थगित कर उन्हें स्काई लैब में उत्पन्न दोषों के निराकरण करने का प्रशिक्षण दिया गया। साथ ही साथ प्रयोगशाला को सूर्य से कुछ दूसरी ओर ग्राऊंड-मिशन-कंट्रोल द्वारा घुमा दिया।
स्काई लैब के छोड़े जाने के चौदह दिन बाद चार्ल्स कोनार्ड (जूनियर), पाल जेविल्ज तथा डॉ० जोसफ पी० करविन को 2600 मिलियन डालर की राशि से निर्मित प्रयोगशाला के दोषों के निवारण के लिए भेजा गया। इनमें कोनार्ड सबसे अधिक अनुभवी थे, यह ‘अपोलो 12’ में चाँद पर उतरने वाले दल के सदस्य थे। डॉ० जोसफ अंतरिक्ष । उड़ान पर जाने वाले प्रथम चिकित्सक थे। विल्ज एक वायुयानीय अभियन्ता थे। ये यात्री अपने साथ तीन पर्तो वाली सोने-चाँदी की ऐसी छतरियाँ ले गए थे जिन्हें स्काई लैब पर तान देने से उसकी सूर्य प्रखर ताप से रक्षा हो सके। ये अन्तरिक्ष यात्री अपने अपोलो यान को स्काई लैब से जोड़कर एक टनल में से अन्तरिक्ष प्रयोगशाला में प्रवेश कर गए और साथ लाई उस छतरी को लैब पर तान दिया। फिर लैब की छत पर बैठकर स्तम्भ को ठीक कर विद्युत् पूर्ति का प्रबन्ध किया। यह कार्य बड़ा खरतनाक था जिसे इन यात्रियो। ने बड़ी कुशलता से किया था।
दोष निवारण के बाद अन्तरिक्ष यात्रियों ने 28 दिन रह कर वहाँ विभिन्न परीक्षण किए। इन्होंने विशेष प्रकार के छ: कैमरों के द्वारा, हिम के पिघलने, फलों की बीमारियों के फैलने आदि तथ्यों पर अनुसन्धान किया। इन्होंने सूर्य तथा पृथ्वी के विशेष चित्र हजारों मीटर लम्बी फिल्मों पर लिए। ये वैज्ञानिक अपने साथ 6 चूहे और 600 कीडे भी ले गए थे। जिन पर इन्होंने यह परीक्षण किया कि दिन और रात के चक्र से मुक्त होने की दशा पर क्या प्रभाव पड़ता है। इस इस दल को अधिकांश सफलता प्राप्त हुई।
प्रथम दल के वापस आने के उपरान्त सात सप्ताह तक स्काई लैब मानव रहित रहा। फिर द्वितीय दल में अमेरिका के कमांडर एलन बीन, ओवेन गेरियर और लोडस्मा को 56 दिवसीय अंतरिक्ष यात्रा के अपोलोयान से रवाना किया गया। इस दल के दो यात्री 56 दिवसीय अंतरिक्ष यात्रा के लिए अन्तिम चरण में स्काई लैब से बाहर-किरणों के स्रोतों के चित्र लेने को निकले। दो जेटों में रासायनिक ईंधन बाहर आने का दोष पैदा हो गया। ग्राउंड कंट्रोल मिशन ने दो अन्तरिक्ष यात्रियों के बचाव दस्तों का प्रबन्ध किया; लेकिन ईश्वर की अनुकम्पा से दल ने ह्यूस्ट के अंतरिक्ष-केन्द्र को सूचित किया कि इनका अपोलो यान ठीक हो गया है।
26 सितम्बर 1973 को यह स्काई लैब का द्वितीय दल कुछ तथ्य लेकर पृथ्वी पर वापस आ गया। भू-गर्भ में छिपे विविध खनिजों और खनिज-तेलों की खोज में अभूत-पूर्व सफलता मिलने की संभावना हुई।
अन्तिम चरण में 15 नवम्बर सन् 1973 को यह अंतरिक्ष यात्रा प्रारम्भ होकर 85 ‘ दिनों के बाद यह मिशन 8 फरवरी सन् 1974 को कमांडर गेरिल्ड कर, वैज्ञानिक डॉ० गिब्सन तथा चालक योग के सहित सूर्य ग्रहण की स्थिति में सूर्य तथा कोटुतेक नाम पुच्छ तारे के चित्र लेकर वापस आ गया था।
जुलाई 1975 में फिर एक अपोलो ने आकाश में भ्रमण किया। कुछ विशेष उपचारों के लिए अन्तरिक्ष में चिकित्सा केन्द्र खोलने की योजना डॉ० चार्ल्स बेदी के मतानुसार बनी थी। संक्षेप में ‘स्काई लैब’ अन्तरिक्ष वैज्ञानिकों की एक महानतम सफलता कहलायी।